अखण्ड द्वादशी विशेष जानें अखण्ड द्वादशी व्रत पूजन विधि
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है, जिसमें शुद्ध आचरण व सदाचार पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. अखण्ड द्वादशी तिथि के दिन किया गया व्रत पूजन धन, धान्य व सुख-समृद्धि देने वाला होता है. समस्त व्याधियों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला होता है इसके प्रभाव स्वरूप से समस्त पापों का नाश होता है व सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस व्रत की विधि एकादशी के समान ही होती है इसे करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.
इस तिथि पर पितृ तर्पण आदि क्रियाएँ की जाती है तथा श्रद्धा व भक्ति पूर्ण ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के दान हवन यज्ञादि क्रियाएँ भी की जाती हैं. ॐ नमो नारायणाय नमः आदि मंत्र जाप द्वारा भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. यह व्रत पवित्रता व शांत चित से श्रद्धा पूर्ण किया जाता है, यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है, इस व्रत को नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर श्रद्धा विश्वास पूर्ण करना चाहिए. व्रत पूजा के सारे नियम श्रद्धा पुर्ण करने पर यह व्रत पुत्र-पौत्र धन-धान्य देने वाला है.!
अखण्ड-द्वादशी व्रत का विधान भविष्य पुराण से
राजा युधिष्ठिर ने पूछा- श्रीकृष्ण व्रतोपवास, दान, धर्म आदि में जो कुछ वैकल्य अर्थात् किसी बात की न्यूनता रह जाय तो क्या फल होता है ? इसे आप बतलायें ।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- महाराज राज्य पाकर भी जो निर्धन, उत्तम रूप पाकर भी काने, अंधे, लँगड़े हो जाते हैं, वे सब धर्म-वैकल्य के प्रभाव से ही होते हैं। धर्म-वैकल्य से ही स्त्री-पुरुषों में वियोग एवं दुर्भगत्व होता है, उत्तम कुल में जन्म पाकर भी लोग दुःशील हो जाते हैं, धनाढ्य होकर भी धन का भोग तथा दान नहीं कर सकते तथा वस्त्र आभूषणों से हीन रहते हैं। वे सुख प्राप्त नहीं कर पाते। अतः यज्ञ में, व्रत में और भी अन्य धर्म कृत्यों में कभी कोई त्रुटि नहीं होने देनी चाहिये ।
युधिष्ठिर ने पुनः कहा – भगवन् यदि कदाचित् उपवास आदि में कोई त्रुटि हो ही जाय तो उसके निवारणार्थ क्या करना चाहिये ?
श्रीकृष्ण बोले- महाराज अखण्ड-द्वादशी व्रत करने से सभी प्रकार की धार्मिक त्रुटियाँ दूर हो जाती हैं। अब आप उसका भी विधान सुनें । मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को स्नानकर जनार्दन भगवान् का भक्तिपूर्वक पूजन कर उपवास रखना चाहिये और नारायण का सतत स्मरण करते रहना चाहिये। जितेन्द्रिय पुरुष पञ्चगव्य मिश्रित जल से स्नान करके जौ और व्रीहि (धान) से भरा पात्र ब्राह्मण को दान करे और फिर भगवान् से यह प्रार्थना करे।
सप्तजन्मनि यत्किंचिन्मया खण्डव्रतं कृतम् ।
भगवन् त्वत्प्रसादेन तदखण्डमिहास्तु मे ॥
यथाखण्डं जगत् सर्वं त्वयैव पुरुषोत्तम ।
तथाखिलान्यखण्डानि व्रतानि मम सन्तु वै॥
(उत्तरपर्व ७९ । १४-१५)
‘भगवन्! मुझसे सात जन्मों में जो भी व्रत करने में न्यूनता हुई हो, वह सब आपके अनुग्रह से परिपूर्ण हो जाय। पुरुषोत्तम! जिस प्रकार आपसे यह सारा जगत् परिपूर्ण है, उसी प्रकार मेरे खण्डित सभी व्रत पूर्ण हो जायँ।’
इस व्रत में चार महीने में व्रत की पारणा करनी चाहिये। चैत्रादि चार मास के अनन्तर दूसरी पारणा कर सत्तू-पात्र ब्राह्मण को देने का विधान है। श्रावणादि चार मास के अनन्तर तीसरा पारण कर नारायण का पूजन करते हुए अपनी शक्ति के अनुसार सुवर्ण, चाँदी, मृत्तिका अथवा पलाश-पत्र के पात्र में घृत दान करना चाहिये। संवत्सर पूर्ण होने पर जितेन्द्रिय बारह ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराकर वस्त्राभूषण देकर त्रुटियों के लिये क्षमा माँगनी चाहिये। इसमें आचार्य का विधिपूर्वक पूजन करने का भी विधान है। इस तरह से जो अखण्ड-द्वादशी का व्रत करता है, उसके सात जन्म तक किये हुए व्रत सम्पूर्ण फलदायक हो जाते हैं। अतः स्त्री-पुरुषों को व्रतों का वैकल्य दूर करने के लिये अवश्य ही इस व्रत को सम्पादित करना चाहिये।
अखण्ड द्वादशी पूजन विधि
Akhand Dwadashi पूजन के लिए प्रातःकाल स्नान पश्चात षोड़शोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और कथा श्रवण करते हुए भगवान का भजन किर्तन करना चाहिए. भोग लगाकर सभी को सदस्यों को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. परिवार के कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करना चाहिए. द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति एवं सुखी जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी व्रत में भगवान नारायण की पूजा श्वेत वस्त्र धारण करके, गंध, पुष्प, अक्षत आदि से करनी शुभदायक होती है.
अखण्ड द्वादशी महत्व विष्णु पुराण से
नारदजी विष्णु द्वादशी के विषय में ब्रह्माजी से पुछते हैं, नारद के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि हे नारद लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है. द्वादशी पूजन एवं कथा श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं. उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है,
वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है. जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है. जो मार्गशीर्ष माह में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं, विष्णु भगवान का पूजन संसाररूपी भव सागर में डूबे मनुष्यों को पार लगाता है।
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