अक्षय तृतीया पौराणिक महात्म्य अक्षय तृतीया व्रत विधि अक्षय तृतीया के दान एवं खरीददारी शीघ्र विवाह और धन प्राप्ति के लिए शुभ उपाय जैनियों में अक्षय तृतीया की मान्यताएँ
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं, यह सनातन धर्मियों का प्रधान त्यौहार है, इस दिन दिये हुए दान और किये हुए स्त्रान, होम, जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त होता है – सभी अक्षय (जिसका क्षय या नाश ना हो) हो जाते हैं इसी से इसका नाम अक्षय हुआ है,
अक्षय तृतीया अभिजीत मुहुर्त
स्वयंसिद्ध साढेतीन मुहूर्त के रुप में अक्षय तृतीया का बहुत अधिक महत्व है। धर्म शास्त्रों में इस पुण्य शुभ पर्व की कथाओं के बारे में बहुत कुछ विस्तार पूर्वक कहा गया है. इनके अनुसार यह दिन सौभाग्य और संपन्नता का सूचक होता है. दशहरा, धनतेरस, देवउठान एकादशी की तरह अक्षय तृतीया को अभिजीत, अबूझ मुहुर्त या सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा जाता है.
क्योंकि इस दिन किसी भी शुभ कार्य करने हेतु पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती. अर्थात इस दिन किसी भी शुभ काम को करने के लिए आपको मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता नहीं होती. अक्षय अर्थात कभी कम ना होना वाला इसलिए मान्यता अनुसार इस दिन किए गए कार्यों में शुभता प्राप्त होती है. भविष्य में उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
हिन्दू समुदाय के अतिरिक्त जैन धर्म के लोग भी इस तिथि को बहुत महत्व देते है। इस दिन बिना पंचांग या शुभ मुहूर्त देखे आप हर प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषण आदि की खरीदारी, जमीन या वाहन खरीदना आदि को कर सकते है। पुराणों में इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान या अन्य किसी भी तरह का दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है। इतना ही नहीं इस दिन किये जाने वाला जप, तप, हवन, दान और पुण्य कार्य भी अक्षय हो जाते है।
आज के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों उच्च राशि मे होते है।अतः मन और आत्मा दोनों से बलवान रहते है,तो आज आप जो भी कार्य करते है वो मन और आत्मा से जुड़ा रहता है ऐसे में आज का किया पूजा पाठ और दान पुण्य बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी होते है।
इसी तिथि को नर नारायण, परशुराम और हयग्रीव – अवतार हुए थे; इसलिये इस दिन उनकी जयन्ती मनायी जाती है तथा इसी दिन त्रेतायुग भी आरम्भ हुआ था, अतएव इसे मध्याह्न व्यापिनी ग्रहण करना चाहिये, परंतु परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे; इसलिये यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाये तो उस दिन अक्षयतृत्तीया, नर नारायण जन्मोत्सव, परशुराम जन्मोत्सव और हयग्रीव जन्मोत्सव सब सम्पन्न की जा सकती हैं और यदि द्वितीया अधिक हो तो परशुराम जन्मोत्सव दूसरे दिन होता है।
यदि इस दिन गौरी व्रत भी हो तो गौरी विनायकोपेता के अनुसार गौरीपुत्र गणेश की तिथि चतुर्थी का सहयोग अधिक शुभ होता है। अक्षय तृत्तीया बड़ी पवित्र और महान फल देने वाली तिथि है, इसलिये इस दिन सफलता की आशा से व्रतोत्सवादि के अतिरिक्त वस्त्र, शस्त्र और आभूषणादि बनवाये अथवा धारण किये जाते है तथा नवीन स्थान, संस्था एवं समाज वर्ष की तेजी मंदी जानने के लिये इस दिन सब प्रकार के अन्न, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओं और व्यक्तिविशेषों के नामों को तौलकर एक सुपूजित स्थान में रखते हैं और दूसरे दिन फिर तौलवर उनकी न्यूनाधिकता से भविष्य का शुभाशुभ मालूम करते हैं, अक्षय तृत्तीया में तृत्तीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र ये तीनों हों तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है, किसान लोग उस दिन चन्द्रमाके अस्त होते समय रोहिणी का आगे जाना अच्छा और पीछे रहे जाना बुरा मानते हैं
स्त्रात्वा हुत्वा च दत्त्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत् !! ( भारते )
यत्किञ्चिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु !
तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता !!
जैनियों में अक्षय तृतीया की मान्यताएँ
हिंदुओं के साथ साथ जैन समुदाय में भी अक्षय तृतीया का महत्व है. जैन धर्म में यह दिन उनके प्रथम चौबीस तीर्थंकर में से एक, भगवान ऋषभदेव से जुड़ा है. ऋषभदेव ही बाद में जा कर भगवान आदिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए. ऋषभदेव जैनी भिक्षु थे. इन्होंने ही जैन धर्म में आहराचार्य जैनी साधुओं तक आहार (भोजन) पहुंचाने का तरीका” प्रचारित किया था। जैनी भिक्षु कभी खुद के लिए भोजन नहीं पकाते तथा कभी भी किसी से कुछ नहीं मांगते, जो कुछ भी उन्हें लोग प्रेम से दे देते, वे उसे खा लेते.
अक्षय तृतीया के पीछे जैन समुदाय में बहुत ही रोचक कथा है. ऋषभदेव ने अपना राज्य पाठ अपने 101 पुत्रों के बीच बाँटते हुए संसार की मोह माया त्याग दी. उन्होने छः महीने तक बिना भोजन तथा पानी के तपस्या की और फिर उसके बाद वे भोजन की आवश्यकता में ध्यान से बाहर बैठ गए. यह जैनी संत आहार की प्रतीक्षा करने लगे। लोगों ने ऋषभदेव को राजा समझकर उन्हें सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, हाथी, घोड़े, कपड़े और कुछ ने तो अपने राजा को खुश करने के लिए अपनीपुत्री तक दान में दे दी। परंतु ऋषभदेव को यह सब नहीं चाहिए था, वे तो सिर्फ भोजन के एक कौर की चाह में थे.
इसलिए ऋषभदेव फिर से एक साल की तपस्या के लिए चले गए और उन्हें सालभर तक उपवास रखना पड़ा. फिर एक साल बाद राजा श्रेयांश हुए जिन्होने अपने “पूर्व-भाव-स्मरण” (पिछले जन्म के विचार जानने की शक्ति) से ऋषभदेव के मन की बात समझी और उनका उपवास तुड़वा कर उन्हें गन्ने का रस पिलाया. यह दिन अक्षय तृतीया का दिन था. उस दिन से आजतक तीर्थंकर ऋषभदेव के उपवास का महत्व समझते हुए जैन समुदाय अक्षय तृतीया के दिन उपवास रखकर गन्ने के रस से अपना उपवास खतम करते हैं. इस प्रथा को “पारणा” कहते हैं।
अक्षय तृतीया के दान एवं खरीददारी
राशि के अनुसार करें इसकी खरीदारी
मेष सोना, पीतल।
वृष चांदी, स्टील।
मिथुन सोना, चांदी , पीतल।
कर्क चांदी, वस्त्र।
सिंह सोना, तांबा।
कन्या सोना, चांदी, पीतल।
तुला चांदी, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर।
वृश्चिक सोना, पीतल।
धनु सोना, पीतल, फ्रिज, वाटर कूलर।
मकर सोना, पीतल, चांदी, स्टील।
कुंभ सोना, चांदी, पीतल, स्टील, वाहन।
मीन सोना, पीतल, पूजन सामग्री व बर्तन।
ग्रहों से सम्बंधित दान:
सूर्य लाल चंदन, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, स्वर्ण, माणिक्य, घी व केसर का दान सूर्योदय के समय करना लाभप्रद होता है।
चंद्रमा चांदी, चावल, सफेद चंदन, मोती, शंख, कर्पूर, दही, मिश्री आदि का दान संध्या के समय में फलदायी है।
मंगल स्वर्ण, गुड़, घी, लाल वस्त्र, कस्तूरी, केसर, मसूर की दाल, मूंगा, ताम्बे के बर्तन आदि का दान सूर्यास्त से पौन घंटे पूर्व करना चाहिए।
बुध कांसे का पात्र, मूंग, फल, पन्ना, स्वर्ण आदि का दान अपराह्न में करें।
गुरु चने की दाल, धार्मिक पुस्तकें, पुखराज, पीला वस्त्र, हल्दी, केसर, पीले फल आदि का दान संन्ध्या के समय करना चाहिए।
शुक्र चांदी, चावल, मिश्री, दूध, दही, इत्र, सफेद चंदन आदि का दान सूर्योदय के समय करना चाहिए।
शनि लोहा, उड़द की दाल, सरसों का तेल, काले वस्त्र, जूते व नीलम का दान दोपहर के समय करें।
राहु तिल, सरसों, सप्तधान्य, लोहे का चाकू व छलनी व छाजला, सीसा, कम्बल, नीला वस्त्र, गोमेद आदि का दान रात्रि समय करना चाहिए।
केतु लोहा, तिल, सप्तधान, तेल, दो रंगे या चितकबरे कम्बल या अन्य वस्त्र, शस्त्र, लहसुनिया व बहुमूल्य धातुओं में स्वर्ण का दान निशा काल में करना चाहिए।
अक्षय तृतीया व्रत विधि
इस दिन उपर्युक्त तीनों जन्मोत्सव एकत्र होने से व्रती को चाहिये कि वह प्रातः स्त्रानादि से निवृत्त होकर ”ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकलशुभफलप्राप्तये भागवत्प्रीत्यर्थं सकल कामना संसिध्यर्थं देवत्रयपूजनमहं करिष्ये ”
ऐसा संकल्प करके भगवान का यथाविधि षोडशोपचार से पूजन करे, उन्हें पञ्चामृत से स्त्रान करावे, सुगन्धित द्रव्य चढ़ाकर पुष्पमाला पहनावे और नैवेद्य में नर नारायण के निमित्त सेके हुए जौ या गेहूँ का सत्तू , परशुराम के निमित्त कोमल ककड़ी और हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पण करे, बन सके तो उपवास तथा समुद्र स्त्रान या गङ्गा स्त्रान करे और जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही चावल ईख के रस और दुध के बने हुए खाद्य पदार्थ ( खाँड़, मावा, मिठाई आदि ) तथा सुवर्ण एवं जलपूर्ण कलश, धर्मघट, अन्न, सब प्रकार के रस और ग्रीष्म ऋतु के उपयोगी वस्तुओं का दान करे तथा पितृश्राद्ध करे और ब्राह्मण भोजन भी करावे, यह सब यथाशक्ति करने से अनन्त फल होता है
यः पश्यति तृतीयायां कृष्णं चन्दनभूषितम् !
वैशाखस्य सिते पक्षे स यात्यच्युतमन्दिरम् !!
युगादौ तु नरः स्त्रात्वा विधिवल्लवणोदधौ !
गोसहस्त्रप्रदानस्य फलं प्राप्रोति मानवः !!
यवगोधूमचणकान् सक्तु दध्योदनं तथा !
इक्षुक्षीरविकाराश्च हिरण्यं च स्वशक्तितः !!
उदकुम्भान् सरकरकान् सन्नान् सर्वरसैः सह !
ग्रैष्मिकं सर्वमेवात्र सस्यं दाने प्रशस्यते !!
‘गन्धोदकतिलैर्मिश्रं सान्नं कुम्भं फलान्वितम् ।
पितृभ्यः सम्प्रदास्यामि अक्षय्यमुपतिष्ठतु !!
अक्षय तृतीया की पौराणिक प्रचलित कथा
अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया।
यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाखशुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं।
मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।
शादी में हो रही बाधा दूर करने के उपाय
इस उपाय को अक्षय तृतीया के दिन किया जाता है। इस दिन अक्षय मुहूर्त माना गया है। यह शुभ मुहूर्त है। यह उपाय रात के समय में किया जाता है।
1. आप को एक चौकी या पटिए पर पीला कपड़ा बिछाना चाहिए और पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाए।
2. पूजा स्थल पर मां पार्वती का चित्र रख लें।
3. चौकी पर एक मुट्ठी गेहूं रख दें।
4. गेहूं की ढेरी पर विवाह बाधा निवारण विग्रह (यंत्र) स्थापित करने के बाद चंदन अथवा केसर से तिलक लगा दें। यह पूरी प्रक्रिया ठीक से होने के बाद हल्दी की माला से इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
युवतियों के लिए यह मंत्र
ऊं गं घ्रौ गं शीघ्र विवाह सिद्धये गौर्यै फट्।
युवक करें इस मंत्र का जाप
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम।
तारणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोदभवाम।।
इस मंत्र की तीन-तीन माला 7 दिनों तक नियमित जपना चाहिए। अंतिम दिवस को इस सामग्री को मंदिर में ले जाकर देवी पार्वती के चरणों में समर्पित कर दें। इसे श्रद्धा और विश्वास से करने पर शीघ्र ही विवाह हो जाएगा। यह सिद्ध प्रयोग है, इसलिए मन में कोई संदेह न रखें। नहीं तो यह प्रभावशाली नहीं रहेगा।
अन्य सौभाग्य वर्धक उपाय
1. आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया से प्रारंभ करते हुए माता लक्ष्मी के मंदिर में प्रत्येक शुक्रवार धूपबत्ती व गुलाब की अगरबत्ती दान करने से जीवन में अचानक धन प्राप्ति के योग बनते
2. धनधान्य की वृद्धि के लिए अक्षय तृतीया को एक मुट्ठी बासमती चावल सर से 11 बार ऊसर कर बहते हुए जल में श्री महालक्ष्मी का ध्यान करते हुए व श्री मंत्र का जप करते हुए जल प्रवाह कर दें। आश्चर्यजनक लाभ होगा।
3. ऋण से मुक्ति के लिए अक्षय तृतीया पर कनकधारा यंत्र की लाल वस्त्र पर पूजा घर में स्थापना करें। पंचोपचार से पूजा करें। 51 दिन तक श्रद्धा से यंत्र का पाठ करें। धीरे-धीरे ऋण कैसे उतर गया, यह पता भी न चलेगा।
4. स्फटिक के श्रीयंत्र को पंचोपचार पूजन द्वारा विधिवत स्थापित करें। माता लक्ष्मी का ध्यान करें, श्रीसूक्त का पाठ करें।
5. जितना संभव हो सके, मंत्र ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नयै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् का कमलगट्टे की माला से नियमित जप करें। नियमित रूप से एक गुलाब अर्पित करते रहें।
इस प्रकार पूजा करके ऐसे श्रीयंत्र को आप इस दिन व्यावसायिक स्थल पर भी स्थापित कर सकते हैं। माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
6. अक्षय तृतीया का व्रत रखकर और गर्मी में निम्न वस्तुओं जैसे- छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने से भाग्योन्नति में बाधा पहुचाने वाली समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
7. अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखने से देवी लक्ष्मी आकर्षित होती हैं। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां भी समुद्र से उत्पन्न हुई हैं।
अक्षय तृतीया के विषय मे अन्य रोचक जानकारी
मान्यता के अनुसार त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई. गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे. इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है. इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।
यह दिन पृथ्वी के रक्षक श्री विष्णुजी को समर्पित है. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने श्री परशुराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. इस दिन परशुराम के रूप में विष्णुजी छटवी बार धरती पर अवतरित हुए थे, और इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी त्रेता एवं द्वापरयुग तक पृथ्वी पर चिरंजीवी (अमर) रहे. परशुराम सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदगनी तथा रेणुका के पुत्र थे. यह ब्राह्मण कुल में जन्मे और इसीलिए अक्षय तृतीय तथा परशुराम जयंती को सभी हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
यह दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है. अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।
महाभारत में अक्षय तृतीया की एक और कथा प्रचलित है. इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था. द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था।
अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है. जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे. सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया. तब से अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व बढ़ गया।
दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है. उनके अनुसार इस दिन कुबेर (भगवान के दरबार का खजांची) ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था. कुबेर की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा. कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनःप्राप्त करने का वरदान मांगा. तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी. इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है. लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ – साथ कुबेर का भी चित्र रहता है।
सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ भी इसी दिन हुआ था ।
ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी अक्षयतृतीया के दिन हुआ था ।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट अक्षयतृतीया के दिन खोला जाता है।
बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल अक्षयतृतीया ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है ।
अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी. इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी. इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था. इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे. इसी मान्यता के आधार पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है अर्थात इस दिन मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता. यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढाता है। एवं इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त भी हुआ था।
भारत के उड़ीसा में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है. इस दिन से ही यहाँ के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं।
अलग अलग प्रांत में इस दिन का अपना अलग ही महत्व है. बंगाल में इस दिन गणेशजी तथा लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी द्वारा अपनी लेखा जोखा (ऑडिट बूक) की किताब शुरू करने की प्रथा है. इसे यहाँ “हलखता” कहते हैं।
पंजाब में भी इस दिन का बहुत महत्व है. इस दिन को नए मौसम के आगाज का सूचक माना जाता है. इस अक्षय तृतीया के दिन जाट परिवार का पुरुष सदस्य ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाते हैं. उस रास्ते में जितने अधिक जानवर एवं पक्षी मिलते हैं, उतना ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन माना जाता है।
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