अष्ट लक्ष्मी रूप एवं पूजन विधि स्तुति
माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये माँ लक्ष्मी के अष्टरुपों का नियमित स्मरण करना शुभ फलदायक माना गया है. अष्टलक्ष्मी स्त्रोत कि विशेषता है की इसे करने से व्यक्ति को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह विशेष रुप से शुभ माना जाता है. अगर कोई भक्त यदि माता लक्ष्मी के अष्टस्त्रोत के साथ श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृद्धि व धन में बढोतरी होती है।
व्यापारिक क्षेत्रों में वृद्धि करने में अष्टलक्ष्मी स्त्रोत और श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है. श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है. पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है. इसे करते समय शास्त्रों में कहे गये सभी नियमों का पालन करना चाहिए और पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए. शुक्रवार के दिन से इसे आरंभ करते हुए जब तक हो सके करें।
इसका प्रारम्भ करते समय इसकी संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए और संख्या पूरी होने पर उद्धापन अवश्य करना चाहिए. प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है. लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए.
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पूजन विधि
स्त्रोत का पाठ करने के लिए घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए तथा ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए. साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए उन्हें प्रणाम करना चहिए, इसके पश्चात उक्त मंत्र बोलना चाहिए. पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी कि कथा का श्रवण भी किया जा सकता है. माँ लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाना चाहिए और धूप, दीप, गंध और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए.
॥ श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः ॥
आदिलक्ष्मीः
सुमनोवन्दितसुन्दरि माधवि चन्द्रसहोदरि हेममयि
मुनिगणकाङ्क्षितमोक्षप्रदायिनि मञ्जुलभाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजिते सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदनकामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
धान्यलक्ष्मीः
अयि कलिकल्मषनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमयि
क्षीरसमुद्भवमङ्गलरूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
धैर्यलक्ष्मीः
जय वरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमयि
सुरगणविनुते अतिशयफलदे ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचिनि साधुसमाश्रितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धैर्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
गजलक्ष्मीः
जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि बहुदे शुभकलहंसगते
रथगजतुरगपदादिसमावृतपरिजनमण्डितराजनुते ।
सुरवरधनपतिपद्मजसेविततापनिवारकपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि गजलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
सन्तानलक्ष्मीः
अयि खगवाहे मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि सन्मतिदे
गुणगणवारिधे लोकहितैषिणि नारदतुम्बुरुगाननुते ।
सकलसुरासुरदेवमुनीश्वरभूसुरवन्दितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
विजयलक्ष्मीः
कमलनिवासिनि सद्गतिदायिनि विज्ञानविकासिनि काममयि
अनुदिनमर्चितकुङ्कुमभासुरभूषणशोभि सुगात्रयुते ।
सुरमुनिसंस्तुतवैभवराजितदीनजानाश्रितमान्यपदे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि विजयलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
ऐश्वर्यलक्ष्मीः
प्रणतसुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमयि
मणिगणभूषितकर्णविभूषणकान्तिसमावृतहासमुखि ।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामितवरदे कल्पलते
जय जय हे मधुसूदनकामिनि ऐश्वर्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
धनलक्ष्मीः
धिमिधिमिधिन्धिमिदुन्दुमदुमदुमदुन्दुभिनादविनोदरते
बम्बम्बों बम्बम्बों प्रणवोच्चारशङ्खनिनादयुते ।
वेदपुराणस्मृतिगणदर्शितसत्पदसज्जनशुभफलदे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धनलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
।इति श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः सम्पूर्णा।
अष्टलक्ष्मी स्तुति
माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये माँ लक्ष्मी के अष्टरुपों का नियमित स्मरण करना शुभ फलदायक माना गया है. अष्टलक्ष्मी स्त्रोत कि विशेषता है की इसे करने से व्यक्ति को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह विशेष रुप से शुभ माना जाता है. अगर कोई भक्त यदि माता लक्ष्मी के अष्टस्त्रोत के साथ श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृद्धि व धन में बढोतरी होती है।
व्यापारिक क्षेत्रों में वृद्धि करने में अष्टलक्ष्मी स्त्रोत और श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है. श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है. पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है. इसे करते समय शास्त्रों में कहे गये सभी नियमों का पालन करना चाहिए और पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए. शुक्रवार के दिन से इसे आरंभ करते हुए जब तक हो सके करें।
इसका प्रारम्भ करते समय इसकी संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए और संख्या पूरी होने पर उद्धापन अवश्य करना चाहिए. प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है. लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए.
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पूजन विधि
स्त्रोत का पाठ करने के लिए घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए तथा ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए. साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए उन्हें प्रणाम करना चहिए, इसके पश्चात उक्त मंत्र बोलना चाहिए. पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी कि कथा का श्रवण भी किया जा सकता है. माँ लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाना चाहिए और धूप, दीप, गंध और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए।
माँ लक्ष्मी के 8 रूप माने जाते है। हर रूप विभिन्न कामनाओ को पूर्ण करने वाला है। नवरात्रि दिवाली और हर शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की वंदना करने से असीम सम्पदा और धन की प्राप्ति होगी
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