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Bhishma Panchak जानें भीष्म पंचक व्रत के महत्व विधि और कथा

हिंदू धर्म में भीष्म पंचक का बहुत महत्त्व है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम जानते हैं। कार्तिक महीने में स्नान करने वाले इस व्रत को जरूर करते हैं। यह व्रत बहुत कल्याणकारी होता है। भीष्म पंचक कार्तिक महीने में देवोत्थान एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है। इन पाँच दिनों में पूजा कर व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। निःसन्तान व्यक्ति पत्नी सहित इस प्रकार का व्रत कर सकता है। मान्यता इस व्रत के प्रभाव से सन्तान की प्राप्ति होती है तथा वैकुण्ठ पाना चाहते हैं या इस लोक में सुख चाहते हैं उन्हें भी इस व्रत को करना चाहिए। 

इसके अलावा जो जातक निम्न लिखे मंत्र से पितामाह भीष्म को अर्घ्यदान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।  

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च।

 अपुत्राय ददाम्येतदुद्कं भीष्म्वर्मणे॥

 वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।

अर्घ्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे॥

अर्थात- जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है उन पुत्ररहित भीष्म्वार्मा को मैं यह जल देता हूँ। वसुओं के अवतार शांतनु के पुत्र आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।

Story of Bhishma Panchak भीष्म पंचक से जुड़ी कथा 

प्राचीन काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ तो पाण्डवों की जीत हुई पाण्डवों की जीत के उपरांत श्रीकृष्ण पाण्डवों को लेकर भीष्म पितामह के पास गए ताकि पितामह उन्हें कुछ ज्ञान दे सकें। सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शैय्या पर लेटे हुए श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से पाण्डवों को ज्ञान देने का अनुरोध किया। भीष्म ने कृष्ण की बात मान कर पाण्डवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म के बारे में ज्ञान दिया भीष्म ने यह ज्ञान पाण्डवों को पाँच दिनों तक दिया। ऐसा माना जाता है कि ये पाँच दिन भीष्म पंचक के ही है जो एकादशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है ज्ञान देने के पश्चात श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘भीष्म पंचक के यह पाँच दिन लोगों के लिए बहुत मंगलकारी होंगे और आने वाले दिनों में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा।

Avoid in Bhishma Panchak भीष्म पंचक में करें परहेज 

भीष्म पंचक बहुत पवित्र होता है इसलिए इस दौरान अन्न ग्रहण न करें। साथ ही इस समय फल-फूल दूध और दही का सेवन करें। साथ ही पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोक्षरण व गोबर-रस का मिश्रण) भी थोड़ी मात्रा में ग्रहण करें, तथा नहाने के पानी में थोड़ी मात्रा में गोक्षरण डालें फिर पवित्रता पूर्वक स्नान करें। साथ ही भीष्म पंचक के समय आप ब्रह्मचर्य का भी पालन करें।

इस व्रत को करने कि विधि 

इस व्रत का प्रथम दिन देवउठनी एकादशी को होता है। इस दिन भगवान नारायण अपने चार माह की योग निद्रा से जागते हैं। मान्याताओं के अनुसार श्री हरि को नीचे दिए मंत्र का उच्चारण करके उठाना चाहिए।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु॥

अर्थात- हे गोविन्द उठिए, उठए, हे गरुडध्वज, उठिए, हे कमलाकांत। निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिए।

भीष्म पंचक के पाँच दिनों में विशेष प्रकार की पूजा होती है। भीष्म पंचक व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मण्डप को गाय के गोबर से लीप कर बीच में एक वेदी बनाएं। वेदी पर ध्यान देकर तिल रख कर कलश स्थापित करें। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की होती है। इस व्रत के दौरान कार्तिक शुक्ल की एकादशी से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं। उन्हें पाँच दिनों तक सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही भीष्म पंचक के समय आप ब्रह्मचर्य का भी पालन करें।

इन पाँच दिनों में निम्नः मंत्र से भीष्म जी के लिए तर्पण करना चाहिए-

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।

भीष्मायैतद ददाम्यर्घ्यमाजन्मब्रह्मचारिणे॥

Significance of Bhishma Panchak भीष्म पंचक का महत्व 

भीष्म पितामह ने इन पाँच दिनों में पाण्डवों को ज्ञान दिया था इसलिए इस व्रत को ‘भीष्म पंचक’ नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का खास महत्त्व है। यह व्रत न केवल पहले किए गए संचित पाप कर्मों से मुक्ति दिलाता है बल्कि कल्याणकारी भी होता है। भीष्म पंचक व्रत बहुत मंगलकारी और पुण्यफलदायक माना जाता है। जो भी भक्त इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसे मृत्यु के पश्चात् मोक्ष तथा उत्तम गति की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने वाला व्रत सदैव स्वस्थ रहता है तथा प्रभु की कृपा उस पर बनी रहती है।

कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima 

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। साफ कपड़े पहनें। एक चौकी लें। उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर लक्ष्मीनारायण भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। धूप, दीप और अगरबत्ती जलाकर ईश्वर का ध्यान करते हुए पूजा करें। फिर पूरा दिन सत्कर्म करते हुए व्यतीत करें। ध्यान रहे कि हिंसात्मक गतिविधियां ना करें और ना ही अभद्र भाषा का इस्तेमाल करें। संभव हो तो ईश्वर का नाम या मंत्र जाप करें। भगवान् श्रीसत्यनारायण की कथा का श्रवण करें तथा शाम होने पर संध्या आरती कर फलों का भोग श्री लक्ष्मी नारायण को लगाएं। इसके बाद प्रसाद बांटें और स्वयं भी प्रसाद खाकर व्रत संपन्न करें।

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