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भक्तवत्सल क्यों कहा जाता है श्री कृष्ण को

भक्तवत्सल क्यों कहा जाता है श्री कृष्ण को

आप सभी श्रीकृष्ण के अनेकों नाम सुने होंगे कभी रणछोर तो कभी बांकेबिहारी कभी दामोदर तो कभी भक्तवत्सल.

भगवान के ये सब नाम उनके लिलाओ के अनुसार पड़े है

उन्हीं नामों में प्रभु का एक नाम भक्त वत्सल भी है।

सबसे सुन्दर नाम भक्तवत्सल है!

जिसकी व्याख्या में शब्द कम पड़ते है.

जिसने भी भगवान की सच्चे दिल से भक्ति की भगवान उसके कष्टों का हरण कर लिए…. चाहे वो किसी भी धर्म सम्प्रदाय का हो महिला, वृद्ध, कुबड़ा, अँधा यहां तक कि उनका शत्रु ही क्यों न हो सबका मान रखा है.

आपको उदहारण भी दे देते है. सबसे पहले उनके पालक माता पिता को ही ले लीजिये अपने पूर्व जन्म में वसु थे, उनके संतान नहीं थी और उन्होंने भगवान की कठोर तपस्या की. तब भगवान ने उन्हें पुत्र रूप में पालित होने का वचन दिया जिससे दोनों का जीवन धन्य हुआ.

बाल सखा सुदामा कथा तो सबको पता है 

सखा ने शर्म से घर की स्थिति नहीं बताई पर भगवान तो अंतर्यामी है, जानते थे की घर जाते ही पत्नी भक्त को फिर कोसेगी, इसी कारण बिन मांगे ही उन्हें अपार सम्पदा दे दिए।

द्रौपदी का चीर हरण उस सभा में हो रहा था जहां इतिहास पुरुष भीष्म पितामह ,अर्जुन ,भीम सरीखे ऐसे दिग्गज बैठे थे जो अकेले ही विश्व को मिटा सकते थे, पर दुशासन को न रोक पाये.

परम भगवान् कृष्ण चीर बढ़ा द्रौपदी का मान रखा.

सखा अर्जुन को दुर्लभ गीता का ज्ञान दिया.

सुलह की कोशिश में राजमहल आने पर दुर्योधन का सेवा न लेकर भक्त विदुर के यंहा साग, केले के छिलके खाए.

भक्त मीरा का विष अमृत कर डाला, सर्प को तुलसी की माला बना दिया.

कर्मा बाई की निष्काम भक्ति से प्रसन्न उनका खिचड़ी खाया.

नानी बाई के मायरे में सांवल शाह बन मायरा भरा.

राजा बलि कर दर पर तीन महीने इंतजार किया.

नाइ तक बने और सादना कसाई का भी उद्धार किया.

सूरदास को गड्ढे से निकला

कुब्जा को ठीक किया जो की कुबड़ी थी.

कालिया नाग से गायों को बचाया.

अपने माता पिता को पापी कंस का वध कर बचाया,

मथुरा वासियों को द्वारिका ले गए ऐसे असंख्य उदहारण है जिसमे परम भगवान् श्री कृष्ण ने भक्तों का सम्मान किया उनका लाज रखा और इसी कारण भक्त वत्सल कहलाये.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हरे राम राम हरे हरे।।

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