Site icon RadheRadheje

बिहार पंचमी: जानें श्री बाँकेबिहारी जी का प्राकट्य दिवस विशेष 

Bihar Panchami श्री बाँकेबिहारी जी का प्राकट्य दिवस विशेष 

ब्रज में प्रकटे हैं बिहारी, जय बोलो श्री हरिदास की।

भक्ति ज्ञान मिले जिनसे, जय बोलो गुरु महाराज की॥

विक्रम संवत 1562 में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर स्वामी हरिदास की भक्ति से प्रसन्न होकर वृंदावन के निधिवन में श्री बांके बिहारी जी महाराज का प्राकट्य हुआ था। उनके प्राकट्य उत्सव को बिहार पंचमी के नाम से मनाया जाता है। इसी दिन अप्रकट रहने वाले प्रभु साक्षात् नित्य वृन्दावन में निधिवन में प्रकट हुए थे। तीनो लोकों के स्वामी को इस दिन रसिक सम्राट स्वामी श्री हरिदास जी महाराज ने अपनी भक्ति से जीत लिया था और वो अपने सभी भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके सामने आ गए।

स्वामी श्री हरिदास जी निधिवन के कुंजो में प्रतिदिन नित्य रास और नित्य विहार का दर्शन किया करते थे, और अत्यंत सुंदर पद भी गाया करते थे। वो कोई साधारण मनुष्य नहीं थे, भगवान की प्रमुख सखी श्री ललिता सखी जी के अवतार थे। जब तक वो धरती पर रहे, उन्होंने नित्य रास में भाग लिया और प्रभु के साथ अपनी नजदीकियों का हमेशा आनन्द उन्हें प्राप्त हुआ। उनके दो प्रमुख शिष्य थे। सबसे पहले थे उनके अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी जिनको स्वामी जी ने ठाकुर जी की सेवा के अधिकार दिए और आज भी वृन्दावन में बांके बिहारी मन्दिर के सभी गोस्वामी जगन्नाथ जी के ही कुल के हैं। उनके दूसरे शिष्य थे उनके भतीजे श्री विठ्ठल विपुल देव जी। बिहार पंचमी के दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन भी होता है।

स्वामी जी के सब शिष्य उनसे रोज आग्रह किया करते थे कि वो खुद तो हर दिन नित्य विहार का आनन्द उठाते है कभी उन्हें भी यह सौभाग्य दें जिससे वो भी इस नित्य रास का हिस्सा बन सके। पर स्वामी जी ने कहा की सही समय आने पर उन्हें स्वतः ही इस रास का दर्शन हो जायेगा क्योंकि रास का कभी भी वर्णन नहीं किया जा सकता। इसका तो केवल दर्शन ही किया जा सकता है और वो दर्शन आपको भगवान के अलावा कोई नहीं करा सकता। स्वामी जी का एक कुञ्ज था वो जहाँ वे रोज साधना किया करते थे। उनके सभी शिष्य इस बात को जानने के लिए काफी व्याकुल थे कि ऐसा क्या खास है उस कुञ्ज में।

Must Read Banke Bihari Temple: जानें बांके नाम कैसे पड़ा ? जानें श्री बाँकेबिहारी जी की कहानी

एक दिन जिस दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन था, स्वामी जी ने सबको उस कुञ्ज में बुलाया। जब सब विठ्ठल विपुल देव जी के साथ उस कुञ्ज में गए तो सब एक दिव्या प्रकाश से अन्धे हो गए और कुछ नजर नहीं आया। फिर स्वामी जी सबको अपने साथ वह लेकर आये और सबको बिठाया। स्वामी जी प्रभु का स्मरण कर रहे थे, उनके सभी शिष्य उन का अनुसरण कर रहे थे, और सबकी नजरे उस कुञ्ज पर अटकी हुई थी और सब देखना चाहते थे कि क्या है इस कुञ्ज का राज। तो सबके साथ स्वामी जी यह पद गाने लगे।

माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे।

प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रही है न तरिहहिं जैसें॥

अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें।

श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें॥

स्वामी जी कि साधना शक्ति से उन दिन उन सबके सामने बांके बिहारी जी अपनी परम अह्लादनी शक्ति श्री राधा रानी के साथ प्रकट हो गए।

चेहरे पे मंद मंद मुस्कान, घुंघराले केश, हाथों में मुरली, पीताम्बर धारण किया हुआ जब प्रभु कि उस मूरत का दर्शन सब ने किया तो सबका क्या हाल हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वे अपनी पलक झपकाना भी भूल गए हुए हैं। और ऐसे बैठे मानो कोई शरीर नहीं बल्कि एक मूर्ति हैं।

स्वामी जी कहते है कि देखो प्रभु प्रकट हो गए हैं। प्रभु कि शोभा ऐसी ही है जैसी घनघोर घटा कि होती है। यह युगल जोड़ी हमेशा विद्यमान रहती है। प्रकृति के कण-कण में युगल सरकार विराजमान है। और ये हमेशा किशोर अवस्था में ही रहते हैं। स्वामी जी के आग्रह से प्रिय और प्रीतम एक दूसरे के अन्दर लीन हो गए और फिर वही धरती से स्वामी जी को एक दिव्या विग्रह प्राप्त हुआ जिसमे राधा और कृष्ण दोनों का रूप है और इसी विग्रह के माध्यम से ठाकुर जी हमें श्री धाम वृन्दावन में दर्शन देते हैं। यही कारण है कि ठाकुर जी का आधा श्रृंगार पुरुष का होता है और आधा श्रृंगार स्त्री का होता है।

यह त्यौहार श्री धाम वृन्दावन में आज भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। सुबह सबसे पहले निधिवन में प्रभु के प्राकट्य स्थल में जो भगवन में प्रतीक चरण चिन्ह है उनका पंचामृत अभिषेक किया जाता है। फिर एक विशाल सवारी स्वामी जी की वृन्दावन के प्रमुख बाजारों से होती हुई ठाकुर जी के मन्दिर में पहुँचती हैं।

स्वामी जी की सवारी में हाथी, घोड़े, कीर्तन मंडली इत्यादि सब भाग लेते हैं। सवारी के सबसे आगे तीन रथ चलते हैं। इनमे से एक रथ में स्वामी श्री हरिदास जी, एक में गोस्वामी जगन्नाथजी और एक रथ में विठ्ठल विपुल देव जी के चित्र विराजमान होते हैं। ये रथ राज भोग के समय ठाकुर जी के मन्दिर में पहुँचते हैं और फिर तीनो रसिकों के चित्र मन्दिर के अन्दर ले जाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ठाकुर जी हरिदास जी महाराज कि गोद में बैठकर उनके हाथों से भोग लगाते हैं।

यदि आपको किशोरी जी इस दिन अपने धाम वृन्दावन में बुला ले तो आपका सौभाग्य है परन्तु यदि किशोरी जी नहीं भी बुलाती हैं तो आप सुबह अपने घर पे ही बिहारी जी को भोग लगाये और संध्या के समय प्रभु की आरती करिये और उनके भजन में झूमते रहिये। आप पर कृपा जरूर बरसेगी। और आपको यह जानकार बहुत खुशी होगी कि इसी दिन भगवन श्री राम का जानकी जी के साथ विवाह भी हुआ था। इसलिए बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है।

Must Read Shri Banke Bihari: श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती क्यों नहीं होती जानें सत्य

Exit mobile version