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Kartik month Mahatmya fourth chapter: जानें कार्तिक माह माहात्म्य चौथा अध्याय

कार्तिक माह माहात्म्य चौथा अध्याय Kartik Month Mahatmya Fourth chapter 

माता शारदा की कृपा, लिखूं भाव अनमोल। 

कार्तिक माहात्म का कहूं, चौथा अध्याय खोल।। 

नारद जी बोले-

ऐसा कहकर भगवान विष्णु मछली का रूप धारण किया विन्ध्याचल पर्वत पर तप कर रहे महर्षि कश्यप की अंजली के जल में जा पहुँचे।

महर्षि कश्यप ने दया करके उसे अपने कमंडल में रख लिया। जब उसने बड़ा रूप धारण किया तो उन्होंने उसे कुएँ में डाल दिया। जब कुयें में भी न समा सकी तो उन्होंने उसे तालाब में फेंक दिया और जब वह तालाब में न आ सकी तो उन्होंने उसे समुद्र में डाल दिया। वह वहाँ पर भी बढ़ने लगी।

फिर उस मत्स्य रूपी नारायण ने उस शंखासुर को मार डाला। पश्चात शंख को हाथ में लेकर बद्रीवन में आ पहुँचे। बद्री नारायण में आकर उन्होंने सब ऋषि व महर्षियों को बुलाकर

आज्ञा दी कि पानी में इधर-उधर फैले हुये वेदों को ढूँढो और उन्हें शीघ्र मिला कर मेरे पास लाओ तब तक मैं देवताओं के साथ श्री प्रयाग राज में ठहरा हूँ।

इसके बाद सब ऋषि महर्षियों ने इन सब बीजों सब वेद मंत्रों को ढूँढ निकाला। उन वेदों में से जो-जो भाग जिस-जिस ऋषि को मिला वह उसी का हो गया।

उस उस भाग के उसी दिन से वह ही ऋषि कहलाये। सब वेदों को लेकर ऋषि-महर्षि प्रयागराज में आए और उन्होंने वे सब भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी को समर्पित कर दिये । ब्रह्मा जी वेदों को पाकर बड़े प्रसन्न हुए ।

उन्होंने देवताओं और ऋषियों के साथ अश्वमेघ यज्ञ किया। यज्ञ के अन्त में देवता, गन्धर्व, यक्ष, नाग भगवान विष्णु को दण्डवत करके प्रार्थना करने लगे। देवताओं ने कहा

हे देव हे जगन्नाथ हे प्रभो हमारी प्रार्थना सुनिये। हम लोगों के हर्ष का समय है। इसलिये आप हमें वरदान दीजिये। नष्ट हुये वेद पुनःश्रीब्रह्माजी को प्राप्त हो गये हैं। हे लक्ष्मीपते आपकी अनुकम्पा से हम देवताओं को यज्ञ का भाग भी मिला है। यह स्थान आपके प्रसाद से आज पृथ्वी भर में सर्व प्रधान पुण्य को बढ़ाने वाला, मुक्ति तथा भक्ति को प्रदान करने वाला हो, ब्रह्महत्या आदि पापों का नाश करने वाला, परम पवित्र और अक्षय फल देने वाला हो।

यह वरदान हमें दीजिए। भगवान विष्णु ने कहा- जो कुछ आप लोगों ने कहा है वह मेरा भी ध्येय है, जैसा आप लोगों ने कहा है कि यह स्थान आज से ब्रह्मक्षेत्र के नाम से पुकारा जायेगा।

इस स्थान पर गंगाजी व सूर्य पुत्री यमुना जी का संगम होगा। मैं श्री ब्रह्मा जी सहित यहाँ पर निवास करूँगा।

यहाँ पर किया हुआ जप-तप तथा दान महान फलदायक होगा। पहले जन्म किये हुये पाप ब्रह्महत्या आदि भी इस तीर्थराज में स्नान करने से नष्ट हो जायेंगे ।

जो लोग अपने पिता आदि को वहाँ लाकर तपर्ण व श्राद्ध करेंगे उनके पिता मेरे स्वरूप को प्राप्त करेंगे, वह तीनों प्रकार की मुक्ति को प्राप्त करेंगे

मकर संक्रांति पर माघमास में प्रातःकाल यहाँ आकर स्नान करने वालों के दर्शन मात्र से ही सब पाप मिट जाते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह सूर्य के तेज से अन्धकार का नाश हो जाता है।

हे मुनिश्वर! मेरे वचन ध्यान से सुनिए,

मैं सर्वत्र व्याप्त रहता हुआ भी हमेशा बद्रीनारायण में निवास करता हूँ सैंकड़ों वर्ष तक किसी दूसरे स्थान पर तप करने का जो फल मिलता है। वही फल यहाँ एक दिन में मिल जाएगा,

जो मनुष्य मेरे उस स्थान बद्रिकाश्रम का दर्शन करेंगे वह जीवन मुक्त हो जायेंगे और उनके समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे।

सूत जी बोले- ऐसा कहकर भगवान विष्णु अन्तर्ध्यान हो गये और देवतागण भी अपने अंशों को वहीं छोड़कर चले गये ।

जो मनुष्य कथा को श्रद्धा पूर्वक सुनते वह श्री प्रयागराज व बद्रिकाश्रम जीने व स्नान करने के समान फल प्राप्त करते हैं।

जय श्री कृष्ण

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