कलयुग यानी इस युग के परम देवता भगवान हनुमान है, इसलिए बजरंग बाण का पाठ मंगलवार और शनिवार को पढने से आपका मंगल भी मजबूत होता है, जिसके चलते आप पर आने वाली मुशकिलें टल जाती है।

जानें बजरंग बाण सिद्ध करने की विधि

इस लेख में हम हनुमान जी के बजरंग बाण के रात्रि में किये जाने वाले पाठ के विषय में बता रहे है। वैसे तो बजरंग बाण का नियमित रूप से पाठ आपको हर संकट से दूर रखता है। किन्तु अगर रात्रि में बजरंग बाण को इस प्रकार से सिद्ध किया जाये तो इसके चमत्कारी प्रभाव तुरंत ही आपके सामने आने लगते है। अगर आप चाहते है अपने शत्रु को परास्त करना या फिर व्यापर में उन्नति या किसी भी प्रकार के अटके हुए कार्य में पूर्णता तो रात्रि में नीचे दिए अनुसार बजरंग बाण पाठ को अवश्य करें।

विधि इस प्रकार है : – 

किसी भी मंगलवार को रात्रि का 11 से रात्रि 1 बजे तक का समय सुनिश्चित कर ले, बजरंग बाण का पाठ आपको 11 से रात्रि 1 तक करना है, सबसे पहले आप एक चौकी को पूर्व दिशा की तरफ स्थापित करें अब इस चौकी पर एक पीला कपडा बिछा दे, अब आप इस मंत्र को एक कागज पर लिख कर इसे फोल्ड करके इस चौकी पर रख दे।

मंत्र इस प्रकार है : 

“ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” 

अब आप चौकी के दायें तरफ एक मिटटी के दिए में घी का दीपक जला दे। आपको इस चौकी के सामने आसन पर बैठ जाना है। इस प्रकार आपका मुख पूर्व दिशा कर तरफ हो जायेगा और दीपक आपके बाएं तरफ होगा। अब आप परमपिता परमेश्वर का ध्यान करते हुए इस प्रकार बोले : – हे परमपिता परमेश्वर मै(अपना नाम बोले ) गोत्र (अपना गोत्र बोले ) आपकी कृपा से बजरंग बाण का यह पाठ कर रहा हु इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें। अब आप ठीक 11 बजते ही इस मंत्र का जाप शुरू कर दे

” ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ”

इस मंत्र को आप 15 मिनट तक जाप करें, ध्यान रहे मंत्र में जहाँ पर फट शब्द आता है वहा आप फट बोलने के साथ -साथ 2 उँगलियों से दुसरे हाथ की हथेली पर ताली बजानी है।

अब आप 11 बजकर 15 मिनट से और रात्रि 1 बजे तक लगातार बजरंग बाण का पाठ करना प्रारंभ कर दे। ध्यान रहे बजरंग बाण पाठ आपको याद होना चाहिए। किताब से पढ़कर बिलकुल न करें जैसे ही 1 बजता है आप बजरंग बाण के पाठ को पूरा कर अब आप फिर से इस मंत्र

ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्  का जाप 15 मिनट तक करें। अब आप कागज पर लिखे हुए मंत्र को जला दे। इस प्रकार आपका यह बजरंग बाण का पाठ एक ही रात्रि में सिद्ध हो जाता है।

बजरंगबाण पाठ 

दोहा

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

सिया पति राम जय जय राम मेरे प्रभु राम जय जय राम।।

चौपाई

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।

बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जय जय जय धुनि सुरपुर में भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।

जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।

ऊँकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।

ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब कांपै।।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

दोहा

प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।।

सिया पति राम जय जय राम मेरे प्रभु राम जय जय राम।।

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