हमारे सनातन धर्म में “पुरश्चरण” बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। मन्त्र जप की सामान्य विधि तो बहुत ही सरल है किन्तु उसी मन्त्र का पुरश्चरण एक कठिन कार्य है। किसी मन्त्र द्वारा अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए उसका पुरश्चरण करने का विधान है। पुरश्चरण क्रिया युक्त मन्त्र शीघ्र फलदायक होता है। पुरश्चरण करने के उपरान्त कोई भी कार्य या सिद्धी सरलता से प्राप्त की जा सकती है। आईए जानते हैं कि पुरश्चरण कैसे किया जाता है।

किसी मंत्र का प्रयोग करने से पहले उसका विधिवत सिद्ध होना आवश्यक है। उसके लिये मंत्र का पुरष्चरण किया जाता है। पुरष्चरण का अर्थ है मंत्र की पॉच क्रियाये, जिसे करने से मंत्र जाग्रत होता है और सिद्ध होकर कार्य करता है।

पहला है मंत्र का जाप 

दूसरा है हवन।

तीसरा है अर्पण।

चौथा है तर्पण।

पॉचवा है मार्जन। 

अब इनके बारे मे विस्तार से जानते है

1. मंत्र जाप

गुरू द्वारा प्राप्त मंत्र का मानसिक उपांशु या वाचिक मुह द्वारा उच्चारण करना मंत्र जाप कहलाता है। अधिकांश मंत्रो का सवा लाख जाप करने पर वह सिद्ध हो जाते है। लेकिन पुरश्चरण करने के लिए उपरोक्त मंत्र में अक्षरों की संख्या को एक लाख से गुना कर जितनी संख्या आये उसके बराबर जप जप का दशांश हवन हवन का दशांश अर्पण अर्पण का दशांश तर्पण का दशांश मार्जन करने पर पुरश्चरण की विधि शास्त्रोक्त रीति से पूर्ण मानी जाती है इस विधि से पुरश्चरण करने पर साधक के अंदर एक दिव्य तेज प्रस्फुरिट होता है तथा प्राप्त सिद्धि को दीर्घ काल तक स्थायी रख पाने का सामर्थ्य आता है।

2. हवन

हवन कुंड मे हवन सामग्री द्वारा अग्नि प्रज्वलित करके जो आहुति उस अग्नि मे डाली जाती है,

उसे हवन या यज्ञ कहते है। मंत्र जाप की संख्या का दशांश हवन करना होता है। मंत्र के अंत मे स्वाहा लगाकर हवन करे। दशांश यानि 10% यानि सवा साख मंत्र का 12500 मंत्रो द्वारा हवन करना होगा।

3. अर्पण

दोनो हाथो को मिलाकर अंजुलि बनाकर हाथो मे पानी लेकर उसे सामने अंगुलियो से गिराना अर्पण कहलाता है।

अर्पण देवो के लिये किया जाता है ।

मंत्र के अंत मे अर्पणमस्तु लगाकर बोले।

हवन की संख्या का दशांश अर्पण किया जाता है यानि 12500 का 1250 अर्पण होगा।

4. तर्पण

अर्पण का दशांश तर्पण किया जाता है।

यानि 1250 का 125 अर्पण करना है।

मंत्र के अंत मे तर्पयामि लगाकर तर्पण करें। तर्पण पितरो के लिये किया जाता है।

दाये हाथ को सिकोड़ कर पानी लेकर उसे बायी साइड मे गिराना तर्पण कहलाता है।

5. मार्जन

मंत्र के अंत मे मार्जयामि लगाकर डाब लेकर पानी मे डुबा कर अपने पीछे की ओर छिड़कना मार्जन कहलाता है।

तर्पण का दशांश मार्जन किया जाता है।

ये पुरष्चरण के पॉच अंग है इऩके बाद किसी ब्राहमण को भोजन कराना चाहे तो करा सकते है। मंत्र सिद्धि के बाद उसका प्रयोग करें। आपको अवश्य सफलता मिलेगी

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