Site icon RadheRadheje

जानें पंचायतन (पाँच देवताओ) की पूजा का महत्त्व एवं विधि 

पंचायतन (पाँच देवताओ) की पूजा का महत्त्व एवं विधि Importance and method of worship of Panchayatan (Five Gods) 

हिन्दू पूजा पद्यति में किसी भी कार्य का शुभारंभ करने अथवा जप-अनुष्ठान एवं प्रत्येक मांगलिक कार्य के आरंभ में सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता, एक ही परमात्मा पांच इष्ट रूपों में पूजे जाते है।

एक परम प्रभु चिदानन्दघन परम तत्त्व हैं सर्वाधार ।

सर्वातीत, सर्वगत वे ही अखिलविश्वमय रुप अपार ।।

हरि, हर, भानु, शक्ति, गणपति हैं इनके पांच स्वरूप उदार ।

मान उपास्य उन्हें भजते जन भक्त स्वरुचि श्रद्धा अनुसार ।। (पद-रत्नाकर)

निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव 

परब्रह्म परमात्मा निराकार व अशरीरी है, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान असंभव है । इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार रूप में पांच देवों को उपासना के लिए निश्चित किया जिन्हें पंचदेव कहते हैं । ये पंचदेव हैं- विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति।

आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् ।

पंचदैवतभित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।

एवं यो भजते विष्णुं रुद्रं दुर्गां गणाधिपम् ।

भास्करं च धिया नित्यं स कदाचिन्न सीदति ।। (उपासनातत्त्व)

अर्थात सूर्य, गणेश, देवी, रुद्र और विष्णु- ये पांच देव सब कामों में पूजने योग्य हैं, जो आदर के साथ इनकी आराधना करते हैं वे कभी हीन नहीं होते, उनके यश-पुण्य और नाम सदैव रहते हैं

वेद-पुराणों में पंचदेवों की उपासना को महाफलदायी और उसी तरह आवश्यक बतलाया गया है जैसे नित्य स्नान को। इनकी सेवा से ‘परब्रह्म परमात्मा’ की उपासना हो जाती है ।

अन्य देवताओं की अपेक्षा इन पांच देवों की प्रधानता ही क्यों ?

अन्य देवों की अपेक्षा पंचदेवों की प्रधानता के दो कारण हैं

१. पंचदेव पंचभूतों के अधिष्ठाता (स्वामी) हैं।

पंचदेव आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन पंचभूतों के अधिपति हैं

सूर्य वायु तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी अर्घ्य और नमस्कार द्वारा आराधना की जाती है ।

गणेश के जल तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि सृष्टि के आदि में सर्वत्र ‘जल’ तत्त्व ही था ।

शक्ति (देवी, जगदम्बा) अग्नि तत्त्व की अधिपति हैं इसलिए भगवती देवी की अग्निकुण्ड में हवन के द्वारा पूजा करने का विधान हैं ।

शिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा करने का विधान हैं ।

विष्णु आकाश तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं ।

२. अन्य देवों की अपेक्षा इन पंचदेवों के नाम के अर्थ ही ऐसे हैं कि जो इनके ब्रह्म होने के सूचक हैं।

विष्णु अर्थात् सबमें व्याप्त, शिव यानी कल्याणकारी, गणेश अर्थात् विश्व के सभी गणों के स्वामी, सूर्य अर्थात् सर्वगत (सभी जगह जाने वाले), शक्ति अर्थात् सामर्थ्य ।

संसार में देवपूजा को स्थायी रखने के उद्देश्य से वेदव्यासजी ने विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग पुराणों की रचना की। अपने-अपने पुराणों में इन देवताओं को सृष्टि को पैदा करने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाला अर्थात् ब्रह्म माना गया है। जैसे विष्णुपुराण में विष्णु को, शिवपुराण में शिव को, गणेशपुराण में गणेश को, सूर्यपुराण में सूर्य को और शक्तिपुराण में शक्ति को ब्रह्म माना गया है।

अत: मनुष्य अपनी रुचि अथवा भावना के अनुसार किसी भी देव को पूजे, उपासना एक ब्रह्म की ही होती है क्योंकि पंचदेव ब्रह्म के ही प्रतिरुप (साकार रूप) हैं। उनकी उपासना या आराधना में ब्रह्म का ही ध्यान होता है और वही इष्टदेव में प्रविष्ट रहकर मनोवांछित फल देते हैं। वही एक परमात्मा अपनी विभूतियों में आप ही बैठा हुआ अपने को सबसे बड़ा कह रहा है वास्तव में न तो कोई देव बड़ा है और न कोई छोटा।

एक उपास्य देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।

पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि अनुसार ।।

(पद रत्नाकर)

पंचदेव और उनके उपासक 

विष्णु के उपासक ‘वैष्णव’ कहलाते हैं,

शिव के उपासक ‘शैव’ के नाम से जाने जाते हैं, गणपति के उपासक ‘गाणपत्य’ कहलाते हैं, सूर्य के उपासक ‘सौर’ होते हैं, और शक्ति के उपासक ‘शाक्त’ कहलाते हैं । इनमें शैव, वैष्णव और शाक्त विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं ।

पंचदेवों के ही विभिन्न नाम और रूप हैं अन्य देवता 

शालग्राम, लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, गोविन्ददेव, सिद्धिविनायक, हनुमान, भवानी, भैरव, शीतला, संतोषीमाता, वैष्णोदेवी, कामाख्या, अन्नपूर्णा आदि अन्य देवता इन्हीं पंचदेवों के रूपान्तर (विभिन्न रूप) और नामान्तर हैं ।

पंचायतन में किस देवता को किस कोण (दिशा) में स्थापित करें ? 

पंचायतन विधि 

पंचदेवोपासना में पांच देव पूज्य हैं। पूजा की चौकी या सिंहासन पर अपने इष्टदेव को मध्य में स्थापित करके अन्य चार देव चार दिशाओं में स्थापित किए जाते हैं। इसे ‘पंचायतन’ कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन पाँच देवों की मूर्तियों को अपने इष्टदेव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम है। इसे ‘पंचायतन विधि’ कहते हैं। जैसे

विष्णु पंचायतन 

जब विष्णु इष्ट हों तो मध्य में विष्णु, ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में सूर्य और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी।

सूर्य पंचायतन

यदि सूर्य को इष्ट के रूप में मध्य में स्थापित किया जाए तो ईशान कोण में शिव, अग्नि कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में विष्णु और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी ।

देवी पंचायतन 

जब देवी भवानी इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में सूर्य रहेंगे

शिव पंचायतन

जब शंकर इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में शक्ति का स्थान होगा।

गणेश पंचायतन

जब इष्ट रूप में मध्य में गणेश की स्थापना है तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में सूर्य तथा वायव्य कोण में शक्ति की पूजा होगी।‌

शास्त्रों के अनुसार यदि पंचायतन में देवों को अपने स्थान पर न रखकर अन्यत्र स्थापित कर दिया जाता है तो वह साधक के दु:ख, शोक और भय का कारण बन जाता है।

देवता चाहे एक हो, अनेक हों, तीन हों या तैंतीस करोड़ हो, उपासना ‘पंचदेवों’ की ही प्रसिद्ध है। इन सबमें गणेश का पूजन अनिवार्य है। यदि अज्ञानवश गणेश का पूजन न किया जाए तो विघ्नराज गणेशजी उसकी पूजा का पूरा फल हर लेते हैं।

Must Read Puja Tips: जानें पूजा में यंत्रों का महत्त्व क्यों ?

Exit mobile version