क्या हैं पञ्चायतन शिला ?
सनातन हिंदू धर्म में इन पाँच शिलाओं का बहुत बड़ा महत्व है कहते हैं, केवल उनकी पूजन करने मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है यही पंचायतन देवता कहलाते हैं एवं यही शिला देवता का निर्गुण निराकार लिंगात्मक स्वरूप माना जाता है ।
1. सर्वप्रथम सोनभद्र नदी से मिलने वाली रक्त वर्ण की शिला इसे सोनभद्राशिला के नाम से भी जाना जाता है, इस शिला में साक्षात भगवान महागणपति निवास करते हैं ।
2. द्वितीय गोदावरी नदी में मिलने वाली स्वर्ण के समान दिखने वाली इसे स्वर्ण मुखी शिला के नाम से भी जाना जाता है इस शिला में साक्षात आदि शक्ति मां भगवती विराजमान होती हैं ।
3. तृतीय स्फटिक यह हिमालय के पर्वतों एवं भारत के अन्य क्षेत्रों में पाया जाता है यह पारदर्शी एवं श्वेत वर्ण की शिला है इसमें भगवान सूर्य नारायण अपने गृह मंडलों के साथ निवास करते हैं ।
4. चतुर्थ बांण लिंग यह नर्मदा भगवती के गर्भ से उत्पन्न कृष्ण एवं रक्त वर्ण की शिला होती हैं , यह गोल अथवा अंडाकार होती है इनमें महादेव भगवान सदाशिव साक्षात रूप से विराजमान रहते हैं ।
5. पञ्चम शालिग्राम यह कृष्ण गंडक नदी के गर्भ से उत्पन्न कृष्ण वर्ण की शिला होती है जिसमें चक्र की आकृति होती है, इनमें साक्षात भगवान पद्मनाभ विष्णु अपने समस्त शक्तियों के साथ विराजमान होते हैं ।
माना जाता है, इन पांचो का पूजन करने से समस्त ब्रह्मांड के सभी देवताओं का पूजन करने का पुण्य मिल जाता है इसीलिए विद्वान लोग यह श्रेष्ठ मानते हैं अपने इष्ट देवता को मध्य में विराजमान करके उनके चारों तरफ शास्त्रों में वर्णित तरीके से देवताओं को विराजमान करके उनका पूजन करना सनातनियों के लिए सर्वश्रेष्ठ है।हलाँकि शालिग्राम एवं बांण लिंग का व्यापार,शास्त्र सम्मत ना होने के कारण इसे अपराध की श्रेणी में माना जाता है ।।
‘पञ्चायतन‘ पञ्चदेव पूजन:सनातन धर्म में “पञ्चायतन” पूजा श्रेष्ठ मानी गई है।
ये पाँच देव हैं गणेश, शिव, विष्णु, दुर्गा (देवी) व सूर्य। शास्त्रानुसार प्रत्येक गृहस्थ के पूजागृह में इन पाँच देवों के विग्रह या प्रतिमा का होना अनिवार्य माना जाता है।अतः सनातन परंपरा में आस्था रखने वाले व्यक्तियों को इन सभी की पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए, यदि समय के अभाव में ऐसा नहीं कर पाते हैं तो इनके मंत्रों के द्वारा इन्हें प्रसन्न कर इनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं!पञ्चायतन पूजा को (पञ्चदेव पूजा) भी कहते हैं, धर्मग्रंथों में भी कहा गया है
“रविर्विनायकश्चण्डी ईशो विष्णुस्तथैव च।
अनुक्रमेण पूज्यन्ते व्युत्क्रमे तु महद् भयम्।।”
अर्थात उपासक को पंचदेवों में सबसे पहले भगवान सूर्य उनके बाद श्री गणेश, मां दुर्गा, भगवान शंकर और भगवान विष्णु को पूजना चाहिए।
“आदित्यं गणनाथं च देवी रुद्रं च केशवम्।
पंच दैवत्यामि त्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत॥”
अर्थात् :सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- ये पंचदेव कहे गए हैं। इनकी पूजा सभी माङ्गलिक कार्यों में करना चाहिए।
“सदा भवानी दाहिनी,सन्मुख रहें गणेश।
पञ्चदेव मिल रक्षा करें,ब्रह्मा विष्णु महेश।।”
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