Pashupati Vrat Vidhi In Hindi: पशुपतिनाथ व्रत किसी भी महीने के सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से बड़े से बड़े संकट से भी मुक्ति मिल जाती है। ये व्रत कम से कम पांच सोमवार तक करने का विधान बताया गया है।

यदि आप पशुपतिनाथ व्रत रख रहे हैं तो आपको बता दें कि, यह व्रत लगातार 5 सोमवार तक किया जाता है. इसका मतलब यह कि पहले सोमवार से आखिरी सोमवार तक के बीच में कोई भी सोमवार छूटना नहीं चाहिए. इसके अलावा आपको यह भी ध्यान रखना है कि पहले सोमवार की पूजा जिस मंदिर में की है उसी मंदिर में अगले चारों सोमवार की भी पूजा करना होती है

इस व्रत में सुबह और शाम दोनों तक भगवान शंकर की विधि विधान पूजा की जाती है। पूजा के बाद जरूरतमंदों को दान जरूर करना चाहिए। चलिए जानते हैं पशुपति व्रत की विधि।

पशुपति व्रत विधि (Pashupati Vrat Vidhi In Hindi)

1. पशुपति व्रत जिस सोमवार से शुरू करने जा रहे हैं उस दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर पांच सोमवार व्रत करने का संकल्प लें।

2. इसके बाद अपने घर के पास के शिव मंदिर में जाएं।

साथ में पूजा की थाली भी लेकर जाएं। जिसमें धूप, दीप, चंदन, लाल चंदन, विल्व पत्र, पुष्प, फल, जल जरूर शामिल करें।

3. मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करें।

4. इसके बाद पूजा की थाली को घर आकर ऐसे ही रख दें।

5. फिर शाम के समय स्नान कर फिर से स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शिव मंदिर जाएं

6. सुबह तैयार की गई पूजा थाली में मीठा प्रसाद और छः दीपक भी रख लें।

7. प्रसाद को बराबर तीन भाग में बांट लें। जिनमें दो भाग भगवान शिव को चढ़ाएं और बचा हुआ एक भाग अपनी थाली में रख लें।

8. इसके बाद आप जो 6 दिए लाएं हैं उनमें से पांच दिए भगवान शिव के समक्ष जलाएं।

9. बचा हुआ दिया अपने घर पर ले जाएं और इस दिए को घर में प्रवेश करने से पहले मुख्य द्वार के दाहिने ओर जलाकर रख दें।

10. फिर घर में प्रवेश करने के बाद भोग का एक भाग खुद ग्रहण करें। इस बात का ध्यान रखें कि ये प्रसाद किसी और को खाने के लिए नहीं देना है।

11. इस व्रत में शाम में भोजन ग्रहण किया जा सकता है। बस इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन मीठा भोजन खाना है।

पशुपति व्रत के नियम (Pashupati Vrat Ke Niyam in Hindi)

1. इस व्रत में सुबह-शाम मंदिर जाना अनिवार्य है।

2. इस व्रत में शाम की पूजा सबसे मुख्य होती है।

3. ध्यान रखें कि व्रत करने वाले लोगों को दिन में सोना नहीं चाहिए।

4. इस व्रत में फलाहार कर सकते हैं।

5. यदि आप दुबारा से ये व्रत शुरू करना चाहते हैं तो एक सोमवार छोड़ कर उससे अगले सोमवार से व्रत प्रारंभ करें।

6. व्रत के दौरान दान पुण्य के कार्य भी करें।

पशुपति व्रत के फायदे (Pashupati Vrat Ke Fayde in Hindi)

पशुपति व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही भक्त की सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

पशुपतिनाथ व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और परेशानियां दूर होती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. पशुपतिनाथ व्रत के फ़ायदे ये हैं:

1. इस व्रत को करने से सभी परेशानियां दूर होती हैं.

2. इस व्रत को करने से बड़े से बड़े संकट से भी मुक्ति मिलती है.

3. इस व्रत को करने से हर मनोकामना पूरी होती है.

4. इस व्रत को करने से पाप धुल जाते हैं.

5. इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पशुपतिनाथ व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें: 

1. पशुपतिनाथ व्रत भगवान शिव को समर्पित है.

2. यह व्रत किसी भी महीने के सोमवार से शुरू किया जा सकता है.

3. इस व्रत में सुबह और शाम दोनों समय भगवान शिव की पूजा की जाती है.

4. इस व्रत के दौरान अपशब्द बोलने से बचना चाहिए.

5. पूजा के बाद जरूरतमंदों को दान करना चाहिए.

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Pashupati Vrat Kitne Kare

पशुपति व्रत कितने करे मुख्य रूप से सभी को पांच व्रत करने चाहिए। बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए की जब से आप व्रत शुरू करे उस दिन सोमवार होना आवश्यक है। उसके ठीक पांच सोमवार बाद व्रत को पूर्ण करे।

पशुपति व्रत कथा

शिव महापुराण और रूद्र पुराण में कई बार वर्णन आता है कि जो भक्त पशुपतिनाथ जी की कथा का श्रवण करता है , श्रवण मात्र से उसके सारे पापों का अंत हो जाता है, उसे असीम आनंद की प्राप्ति होती है और वह शिव का अत्यधिक प्रिय बन जाता है।

कथा शुरू करने से पहले अपने साथ कुछ पत्र (चावल के दाने) लेकर जाएं और ये पत्र उन सभी लोगों को दें जो एक साथ सुन रहे हों और जब कथा समाप्त हो तो इन पत्रों को मंदिर में चढ़ाएं इन्हीं इधर उधर ना फेंके।

एक बार की बात है भगवान शिव नेपाल की सुन्दर तपोभूमि से आकर्षित होकर एक बार कैलाश छोड़कर यहाँ आये और यहीं ठहरे। इस क्षेत्र में वह तीन सींग वाले हिरण (चिंकारा) के रूप में विचरण करने लगा। इसलिए इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र या मृगस्थली भी कहा जाता है। शिव को इस तरह अनुपस्थित देखकर ब्रह्मा और विष्णु चिंतित हो गए और दोनों देवता भगवान शिव की खोज में निकल पड़े।

इस रमणीय क्षेत्र में उसने एक देदीप्यमान, मोहक तीन सींग वाला मृग विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूपी शिव पर शक होने लगा। योग विद्या से ब्रह्मा जी ने तुरंत पहचान वान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान आशुतोष हैं। तुरंत ही ब्रह्मा जी उछल पड़े और मृग के सींग को पकड़ने की कोशिश करने लगे। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गए।

उसी सिंह का एक पवित्र टुकड़ा टूटकर यहां पर भी गिर गया जिसकी वजह से यहां महारुद्र जी का जन्म हुआ जो आगे चलकर पशुपतिनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए भगवान शिव जी की इच्छा के अनुसार, भगवान विष्णु ने भगवान शिव को मोक्ष देने के बाद, नागमती के ऊंचे टीले पर एक लिंग स्थापित किया, जो पशुपति के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

पशुपति व्रत कथा 

एक समय की बात है जब शिव चिंकारा का रूप धारण कर निद्रा ध्यान में मग्न थे। उसी वक्त देवी-देवताओं पर भारी आपत्ति आन पड़ी, और दानवों और राक्षसों ने तीन लोक में, स्वर्ग में त्राहि-त्राहि मचा दी तब देवताओं को भी यह स्मरण था कि इस समस्या का निदान केवल शंकर ही कर सकते हैं।

इसलिए वह शिव को वाराणसी वापस ले जाने के प्रयत्न करने के लिए शिव के पास गए। परंतु जब शिव ने सभी देवी देवताओं को उनकी और आते हुए देखा तो शिव ने नदी में छलांग लगा दी। छलांग इतनी तीव्र थी कि उनके सिंग के चार टुकड़े हो गए।

इसके पश्चात भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से पशुपतिनाथ जी की पूजा और व्रत करने का विधान आया।

ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भी व्यक्ति सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ पशुनाथ का व्रत करता है और विधि-विधान से पूजा करता है तो उसको सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है. उसके सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही उसके घर में खुशहाली आती है और जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है.

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