“वासुदेव परा वेदा वासुदेव परा मखा :।
वासुदेव परा योगा वासुदेव परा क्रियाः ||28||
वासुदेव परं ज्ञानं वासुदेव परं तपः |
वासुदेवपरौ धर्मो वासुदेव परा गतिः ||29||”
ये श्लोक उन लोगों के लिए पर्याप्त है जो भगवान् की परिभाषा ढूँढ़ते हैं वासुदेव ही वेदों के सार हैं , वासुदेव ही यज्ञों के उदेश्य हैं , योग का उदेश्य भी वासुदेव को जानना ही हैं और कर्मों के फल वासुदेव से ही स्वीकृत होते हैं, वासुदेव से बड़ा कोई ज्ञान नहीं और तपस्या के उदेश्य भी वासुदेव ही हैं , जहां वासुदेव हैं वहीँ धर्म है और जहाँ वासुदेव नहीं वहां धर्म हो ही नहीं सकता.
धर्म सिर्फ एक है परम भगवान वासुदेव का श्रद्धा और प्रेम भाव के साथ सेवा करना
एकमात्र वासुदेव ही जीवन के आधार है
~श्रीमद भागवतम श्लोक 28 29 – अध्याय 2 – स्कन्द 1
ye laddo gopal aapke h?
Hello Sir mai ye janna chahti hoon ki ye thakur ji aapke hain yadi haan to aap please mujhe bata sakte hain ki itna sundar sringaar aap kahan se late hain unke liye mai bhi lana chahti hoon