आमतौर पर शिवलिंग को गलत अर्थों में लिया जाता है, जो कि अनुचित है या उचित यह हम नहीं जानते। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है।वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है। बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।

ब्रह्मांड का प्रतीक ज्योतिर्लिंग 

शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है, कुछ लोग इसे यौनांगों के अर्थ में लेते हैं और उन लोगों ने शिव की इसी रूप में पूजा की और उनके बड़े-बड़े पंथ भी बन गए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने धर्म को सही अर्थों में नहीं समझा और अपने स्वार्थ के अनुसार धर्म को अपने सांचे में ढाला। शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरूप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।

स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, उर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग आदि। लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है।

ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। जो शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

शिवलिंग 

शास्त्रों में शिवलिंग का अर्थ बताया गया है अनंत अर्थात जिसकी न तो कोई शुरुआत है और न ही अंत। शिवलिंग भगवान शिव और माता पार्वती के आदि-अनादि एकल रुप है। शिवलिंग पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है, शिवलिंग बताता है कि न केवल पुरुष और न ही स्त्री दोनों का अलग-अलग इस संसार में कोई वर्चस्व नहीं है बल्कि दोनों समान हैं। शिवलिंग मानव द्वारा स्थापित किए गए हैं। इनमें से कुछ शिवलिंग मानव द्वारा निर्मित हैं तो कुछ स्वयंभू हैं और फिर उनको मंदिरों में स्थापित किया जाता है।

शिव का अर्थ है 

परम कल्याणकारी शुभ और लिंग का अर्थ है- सृजन ज्योति। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है।

1- मन, 2- बुद्धि, 3- पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4- पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह है। बिंदु रूप। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है। लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है। शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह तथ्य इस कथा से अलग है।

शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है। भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई।

शिव स्तुति मंत्र 

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान  शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।

ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के स्वयंभू का अवतार है। ज्योतिर्लिंग का अर्थ है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना। ज्योतिर्लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं होते हैं बल्कि वे स्वयंभू होते हैं और उनको सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाए रखने के लिए स्थापित किए गए हैं। शिवलिंग कई हो सकते हैं लेकिन ज्योतिर्लिंग केवल 12 हैं और ये सभी भारत देश में स्थित हैं। कहा जाता है कि जहां-जहां ज्योतिर्लिंग हैं, वहां भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में उत्पन्न हुए थे। 12 ज्योतिर्लिंग की वजह से पृथ्वी का आधार बना हुआ है और इसी कारण वह अपनी धुरी पर घूम रही है। साथ ही इसी की वजह से पृथ्वी पर जीवन यापन बना हुआ है।

Story of jyotirlinga ज्योतिर्लिंग की कथा

ज्योतिर्लिंग को लेकर शिव पुराण में एक कथा भी है। शिव पुराण अनुसार, एकबार ब्रह्माजी और विष्णुजी में इस बात को लेकर विवाद हो गया था कि दोनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है और दोनों ही अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने पर डटे हुए थे। इस भ्रम को दूर करने के लिए भगवान शिव एक ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए थे, जिसकी न तो कोई शुरुआत थी और न ही कोई अंत था। ज्योतिर्लिंग में से आवाज आई दोनों में से से कोई भी ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं देख पाया। उसके बाद तय हुआ कि ब्रह्माजी और विष्णुजी से श्रेष्ठ यह दिव्य ज्योति है। इसी ज्योति स्तंभ को ज्योतिर्लिंग कहा गया। वहीं लिंग का अर्थ प्रतीक है अर्थात भोलेनाथ का ज्योति के रूप में प्रकट होना और सृष्टि के निर्माण का प्रतिक।

ज्योतिर्लिंग स्तुति मंत्र 

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्॥

केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।

वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे॥

वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।

सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये॥

द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।

तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः॥

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