सीता अष्टमी (जानकी जन्मोत्सव)
हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के दिन जानकी जयंती का पर्व मनाया जाता है। जानकी जन्मोत्सव को सीता अष्टमी और श्री जानकी (सीता) नवमी भी कहा जाता है। वैवाहिक जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिये इस दिन माँ सीता और प्रभु श्री राम की पूजा की जाती है। इस दिन माता सीता की पूजा की शुरुआत की गणेश जी और अंबिका जी की अर्चना से की जाती है। इसके बाद सीता जी की मूर्ति या तस्वीर पर पीले फूल, कपड़े और श्रृंगार का सामान चढ़ाकर पूजन किया जाता है।
सीता अष्टमी कथा
एक बार जब राजा जनक हल से धरती जोत रहे थे। तभी उनका हल किसी कठोर चीज से स्पर्श हुआ जब राजा जनक ने देखा तो वहां से उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ। उस कलश में एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक के कोई संतान नहीं थी, वे उस कन्या को अपने साथ ले आए। इस कन्या का नाम ही सीता रखा गया। राजा जनक की जेयष्ठ पुत्री होने के कारण ये जनक दुलारी कहलायीं। माता सीता को लक्ष्मी जी का ही स्वरूप माना जाता है। जानकी जयंती के दिन दिन माता सीता की विधि-विधान से पूजा की जाती है। तो चलिए जानते हैं सीता अष्टमी का महत्व और पूजा विधि…
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कैसे मनाएं सीता अष्टमी पर्व-
1. सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें।
2. चौकी पर सीताराम का चित्र स्थापित करें
3. सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें. उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें।
4. माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें।
5. माता सीता की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र ओर सोलह श्रृंगार का समान जरूर चढ़ाना चाहिए।
6. भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं और उसके बाद मां सीता की आरती करें।
7. आरती के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
8. दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें।
9. शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें
सीता अष्टमी का महत्व
सीता अष्टमी पर व्रत रखने वालों को सौभाग्य, सुख और संतान की प्राप्ति होती है. परिवार में समृद्धि बनी रहती है.