
ललिता षष्ठी व्रत का विधि महत्व एवं फल (Lalita Shashthi fasting method, importance and benefits in Hindi)
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। इस व्रत का कथन भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं किया है. भगवन कहते हैं कि भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को किया गया यह व्रत शुभ सौभाग्य एवं योग्य संतान को प्रदान करने वाला होता है. हिन्दू पंचांग अनुसार शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित ललिता षष्ठी शुक्ल पक्ष के सुअवसर पर भक्तगण व्रत रखते हैं यह पर्व लगभग पूरे भारतवर्ष में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन अलग-अलग रुपों में मनाया जाता है इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है. संतान के सुख एवं उसकी लंबी आयु की कामना हेतु इस व्रत का बहुत महत्व है।
ललिता षष्ठी व्रत पूजन विधि (Lalita Shashthi Vrat Worship Method in Hindi)
प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके घर के ईशान कोण में पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर व्रत के लिए आवश्यक सामग्री जैसे भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, माता गौरी और शिव भगवान की मूर्तियों सहीत सभी को एक स्थान पर रखकर पूजन की तैयारी करनी चाहिए. तांबे का लोटा, नारियल, कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि द्वारा पूजा करनी चाहिए।
पूजन में समस्त सामग्री भगवान को अर्पित करके “ओम ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा” मंत्र से षष्ठी देवी का पूजन करना चाहिए. अंत में प्रार्थना करें कि सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए और मुझे संतान सुख से पूर्ण किजिए. यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों को विशेष तौर पर करना चाहिए. इस दिन को विभिन्न रुपों में मनाए जाने के कारण इसकी पूजा में विविधता का समावेश देखा जा सकता है।
ललिता षष्ठी व्रत महत्त्व (Importance of Lalita Shashthi Vrat in Hindi)
यह व्रत प्रत्येक स्त्रियों द्वारा अपने पति की रक्षा और आरोग्य जीवन तथा संतान सुख के लिए रखा जाता है. ललिता व्रत के दिन पति एवं संतान के दीर्घजीवन और सुखद दांपत्य जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है तथा मेवा मिष्टान्न और मालपुआ एवं खीर इत्यादि का प्रसाद वितरित किया जाता है कई जगहों पर इस दिन चंदन से विष्णु पूजन एवं गौरी पार्वती और शिवजी की पूजा का भी चलन है।
ललिता षष्ठी के व्रत को संतान षष्ठी व्रत भी कहा जाता है. इस व्रत से संतान प्राप्ति होती है और संतान की पीड़ाओं का शमन होता है. यह व्रत शीघ्र फलदायक और शुभत्व प्रदान करने वाला होता है. यह व्रत विधिपूर्वक करने से संतान की प्राप्ति होती है. यदि संतान को किसी प्रकार का कष्ट अथवा रोग पीड़ा हो तो इस व्रत को करने से बचाव होता है
इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और शिव शंकर की भी पूजा की जाती है. इस दिन का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. मान्यता है कि इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करने से देवी मां की कृपा एवं आशिर्वाद प्राप्त होता है तथा भक्त का जीवन सदैव सुख शांति एवं समृद्धि से व्यतीत होता है।
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