
रुकमणी द्वादशी: भगवान कृष्ण और माता रुक्मिणी के विवाह की कथा
योगेश्वर भगवान कृष्ण की 8 पत्नियां थीं रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, मित्रवन्दा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। माता लक्ष्मी की अंशावतार माता रुकमणी पटरानी थी, माता का जन्म बैशाख शुक्ल द्वादशी को राजा भीष्मक के घर हुआ।
विदर्भ देश में भीष्मक नामक एक परम तेजस्वी और सद्गुणी राजा थे। उनकी राजधानी थी कुण्डिनपुर। उनकी एक पुत्री थी रुक्मिणी जो पाँच भाइयों के बाद उत्पन्न हुई थी इसलिये सभी की लाडली थी। उसके शरीर में लक्ष्मी के शरीर के समान ही लक्षण थे इसलिये लोग उसे लक्ष्मीस्वरूपा भी कहा करते थे। रुक्मिणी जब विवाह योग्य हुईं तो भीष्मक को उसके विवाह की चिंता हुई। रुक्मिणी के पास जो लोग आते-जाते थे वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे कि श्रीकृष्ण अलौकिक पुरुष हैं तथा समस्त विश्व में उनके सदृश अन्य कोई पुरुष नहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता के विषय में सुनकर रुक्मिणी मन ही मन उन पर आसक्त हो गईं और उन्होंने मन में निश्चय कर लिए कि वे विवाह करेंगी तो श्री कृष्ण के साथ ही उधर कृष्ण को भी नारद से यह बात ज्ञात हो चुकी थी तथा रुक्मिणी के सौन्दर्य के विषय में तथा उनके गुणसम्पन्न होने के विषय में भी नारद उन्हें बता चुके थे रुक्मिणी का बड़ा भाई रुक्मी कृष्ण से शत्रुता रखता था।
वह अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह चेदि वंश के राजा तथा कृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल के साथ करना चाहता था। इसका एक कारण यह भी था कि शिशुपाल भी रुक्मी के समान ही कृष्ण से शत्रुता रखता था। अपने पुत्र की भावनाओं का सम्मान करते हुए राजा भीष्मक ने शिशुपाल के साथ ही पुत्री के विवाह का निश्चय कर लिया और शिशुपाल के पास सन्देश भेजकर विवाह की तिथि भी निश्चित कर ली
रुक्मिणी को इस बात का पता लगा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने एक ब्राह्मण को कृष्ण के लिये अपना सन्देश द्वारिका भेजा अपने सन्देश में उन्होंने स्पष्ट रूप से अपना प्रणय कृष्ण के प्रति व्यक्त किया साथ ही यह भी बताया था उनका विवाह उनकी इच्छा के विपरीत शिशुपाल के साथ किया जा रहा है उन्होंने पत्र में लिखा कि “मैंने आपको ही पति रूप में वरण किया है। मैं आपको अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं कर सकती। मैं अपने कुल की प्रथा के अनुसार विवाह से पूर्व वधू के रूप में श्रृंगार करके नगर के बाहर स्थित गिरिजा देवी के मन्दिर में उनके दर्शन के लिए जाऊँगी
आपसे निवेदन है कृपया उसी समय आप मुझे वहाँ से भगा कर ले जाएँ और मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें यदि ऐसा नहीं हुआ तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी” रुक्मिणी का संदेश पाकर सन्देशवाहक ब्राह्मण को साथ ले भगवान श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर अकेले ही शीघ्र ही कुण्डिनपुर की ओर चल दिए इधर बलराम को पूरी घटना का पता चला और यह भी ज्ञात हुआ कि कृष्ण अकेले ही चल दिए हैं रुक्मिणी को लाने तो युद्ध की आशंका हुई उन्हें और वे यादवों की सेना को लेकर कृष्ण की सहायता के लिये चल दिये
दूसरी ओर राजा भीष्मक का सन्देश पाकर शिशुपाल भी निश्चित तिथि पर दल बल के साथ बारात लेकर कुण्डिनपुर जा पहुँचा शिशुपाल की बारात में जरासंध, शाल्व इत्यादि वे सभी राजा अपनी अपनी सेनाओं के साथ थे जो श्री कृष्ण से वैर रखते थे. सारा नगर शिशुपाल और रुक्मिणी के विवाह के लिये वन्दनवारों तथा तोरणों से सजा हुआ था तथा मंगल वाद्य बजाए जा रहे थे।
सन्ध्या समय रुक्मिणी विवाह के वस्त्रों में सज-धजकर गिरिजा देवी के मंदिर की ओर चल पड़ीं। उनके साथ उनकी सखियाँ तथा बहुत से अंगरक्षक भी थे । गिरिजा देवी की की पूजा करते हुए रुक्मिणी ने उनसे प्रार्थना की कि हे माँ, तुम तो समस्त जगत की माता हो, मेरी मनोकामना पूर्ण करो, आशीर्वाद दो मुझे कि श्रीकृष्ण मुझे यहाँ से ले जाएँ और पत्नी रूप में स्वीकार करें। पूजा अर्चना के बाद घर वापस लौटने के लिये रुक्मिणी अपने रथ पर बैठना ही चाहती थी कि वहाँ पहुँच चुके श्रीकृष्ण ने विद्युत गति से रुक्मिणी का हाथ पकड़ लिया और उन्हें खींचकर अपने रथ पर बैठा लिया और तीव्र गति से द्वारका की ओर चल पड़े
रुक्मिणी के हरण का समाचार तुरन्त राज्य भर में फ़ैल गया। क्रोधित शिशुपाल ने अपने मित्र राजाओं और उनकी सेनाओं के साथ कृष्ण का पीछा किया किन्तु बलराम और यदुवंशी सेनाओं ने उन सबको बीच में ही रोक लिया भयंकर युद्ध हुआ। शिशुपाल तथा उसकी मित्र सेनाएँ पराजित और निराश होकर वापस अपने अपने राज्यों को लौट गईं शिशुपाल को पराजित होकर भागते देख रुक्मी ने क्रोध में भरकर प्रतिज्ञा की या तो कृष्ण को बन्दी बनाकर लौटेगा, अन्यथा कुण्डिनपुर में मुँह नहीं दिखाएगा। रुक्मी और कृष्ण के मध्य युद्ध हुआ रुक्मी पराजित हुआ।
श्रीकृष्ण उसका वध करने ही वाले थे कि रुक्मिणी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि आप अत्यन्त बलवान होने के साथ साथ कल्याण स्वरूप भी हैं। मेरे भाई का वध आपको शोभा नहीं देता तब कृष्ण ने उसकी दाड़ी मूँछ काटकर और सर के बाल जगह जगह से उखाड़ कर उसे कुरूप बना दिया।
निम्बार्क सम्प्रदाय की पद्धति में रुक्मिणी को विशेष स्थान प्राप्त है। इस सम्प्रदाय में एक ओर तो गोलोकवासी राधा-कृष्ण की उपासना का विधान है तथा सुख विलास का स्थान अखण्ड वृंदावन को भी माना गया है, किन्तु दूसरी ओर द्वारिकापुरी को अपना धाम और रुक्मिणी जी को अपना इष्ट एवं गरुड़ जी को देवता माना गया है। इन दोनों बातों में सैद्धान्तिक विरोध है। किन्तु यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि एक ही श्री कृष्ण नाम के शरीर में तीन विभिन्न शक्तियों ने अलग-अलग प्रकार की लीला की
रुक्मिणी वास्तव में भक्ति और प्रेम का सामंजस्य हैं। वह भगवान की भक्त भी हैं और प्रेमी भी बिना देखे, बिना मिले, कृष्ण के गुणों से, उनके स्वरूप से प्रेम कर बैठीं प्रेम भी इतना प्रगाढ़ कि मन ही मन उन्हें अपना सर्वस्व तक समर्पित कर दिया जब प्रेम ऐसा हो जाए निष्ठा ऐसी हो जाए तो परमात्मा को खोजने के लिए सत्य को खोजने के लिये भटकना नहीं पड़ता। वह परमात्मा तो स्वयं ही हमें ढूँढता चला आता है अर्थात पूर्ण निष्ठावान होकर, एकाग्रचित्त होकर यदि सत्य की खोज की जाए, ज्ञान प्राप्ति की कामना की जाए तो वह सत्य, वह ज्ञान हमें बहुत सरलता से उपलब्ध हो सकता है। रुक्मिणी ने मन में भगवान को सर्वोच्च स्थान दिया अतः भगवान ने स्वयं उनके जीवन में प्रवेश किया।
रुक्मिणी देवी के गुण (Qualities of Rukmini Devi in Hindi)
1. रुचिराणां – जिसका मुख आकर्षक है
2. ह्रिया, वृदा – शर्मीली
3. सती – श्रेष्ठ, संत चरित्र वाली
4. बुद्धि – बुद्धिमानी रखना
5. लक्षणा – शुभ शारीरिक चिह्नों से युक्त होना
6. औदार्य – उदार
7. शीला – उचित आचरण की
8. सदृशीं भार्या– एक आदर्श पत्नी
9. देवीम – दिव्य देवी
10. असितापांगी – काली आंखों वाली
11. मोहिनीम – मंत्रमुग्ध करने वाला
12. महातिई – कुलीन
13. धीरा – शांतचित्त
14. कुलवती – अच्छे परिवार की
15. लक्षणाभिज्ञा – शारीरिक लक्षणों का विशेषज्ञ ज्ञाता
16. आराधितो – भक्तिपूर्ण सेवा प्रदान करना
17. मत्-परम, आत्मार्पितस – विशेष रूप से कृष्ण को समर्पित
18. अनावाद्यांगीम, सोभम – निर्दोष सौंदर्य की
19. सुसीस्मिता – मीठी मुस्कान
20. वररोहा – सुन्दर नितंबों वाला
21. बिम्बा-फला-अधारा – चमकते बिम्बा लाल होंठ
22. श्यामा – दृढ़ स्तन
23. कलंतिम कलहंसा – राजसी हंस की चाल से चलना
24. सुमध्यमम – जिसकी कमर पतली हो
25. गोविंदहृतामानसा – जिसका मन कृष्ण ने चुरा लिया है
26. गुणश्रयाम – अन्य सभी अच्छे गुणों का भण्डार
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