Site icon RadheRadheje

Som Pradosh Vrat सोम प्रदोष व्रत की महिमा क्या है ? वैवाहिक जीवन में सुख के लिए करें ये उपाय

Som Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। प्रदोष व्रत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। सोमवार के दिन होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत का जाता है। सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव जी को समर्पित होता है। सोम प्रदोष व्रत में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करने पर हर मनोकामना की पूर्ति होती है। प्रदोष व्रत रखने पर हर दोष व संकटों से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग शिव चालीसा का पाठ करते हैं। इसके अलावा सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनने से भी भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं। आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत में शिव जी की कथा के बारे में..

सोमवार व्रत कथा 

सोमवार का व्रत मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है जो कि देवों के देव महादेव हैं और जिसको महादेव की कृपा प्राप्त हो जाए उसको किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता ही नहीं होती। सोमवार का दिन भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान शंकर की कृपा प्राप्ति के लिए सोमवार का व्रत किया जाता है।

सोमवार व्रत की विधि

सोमवार के व्रत मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:

सामान्य सोमवार व्रत

सोम प्रदोष व्रत

सोलह सोमवार व्रत

उपरोक्त तीनों प्रकार के व्रत भगवान शंकर के लिए ही किए जाते हैं और इनकी विधि भी लगभग एक समान ही है। सोमवार व्रत लगभग तीसरे पहर तक किया जाता है। इसमें फलाहार या पारणा का कोई विशेष नियम नहीं है परंतु पूरे दिन में केवल एक बार ही भोजन किया जाता है। व्रत खोलने से पूर्व और प्रातः काल भगवान शिव और माता पार्वती की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा की जाती है और उसके बाद व्रत खोला जाता है।

सोम प्रदोष व्रत के लाभ क्या क्या है ?

– सोम प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त की जा सकती है इससे जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है

– धन की कमी को खत्म करने के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए

– प्रदोष व्रत के प्रभाव से हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है

– अविवाहित युवक-युवतियों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए इससे उन्हें योग्य वर-वधू की प्राप्ति होती है

महादेव के सोमवार व्रत का महत्व

सोमवार के व्रत की बहुत महिमा बताई गई है। मान्यता है कि सोमवार के व्रत करने से न केवल भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि माता पार्वती भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा की वर्षा करती हैं। सोमवार का दिन ज्योतिषशास्त्र में चंद्र ग्रह को दिया गया है इस कारण सोमवार का व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और उससे संबंधित कष्टों का शमन भी होता है। इसके अतिरिक्त मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए भी सोमवार का व्रत किए जाने का विधान है।

व्रत से जुड़े इन नियमों का रखें ध्यान

सोमवार की सुबह जल्दी उठें और स्नान से पवित्र होकर सफेद वस्त्र पहनें। पूजा हेतु भगवान शिव के मंदिर जाएं अथवा घर पर ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। सबसे पहले शिव जी का जल से अभिषेक करें और उसके बाद श्रद्धा और बिना उबला हुआ दूध अर्पित करें। इसमें थोड़ा गंगाजल भी मिला लें। आप पंचामृत से भी स्नान करा सकते हैं। इसके बाद बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल, फल, यज्ञोपवीत आदि चढ़ाएं। भगवान शंकर और माता पार्वती के मध्य गठबंधन करें और फिर भगवान को भोग लगाएँ। इसके अतिरिक्त तीनों में से जिस प्रकार का व्रत आप रख रहे हैं उस व्रत की कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए क्योंकि तीनों व्रतों की अलग-अलग कथा है। इस दिन मुख्य रूप से ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।

सोमवार व्रत की पूजा सामग्री

शिव एवं पार्वती जी की मूर्ति,चंद्र देव की मूर्ति अथवा चित्र,चौकी या लकड़ी का पटरा,अक्षत,ऋतुफल,चंदन,मौली,कपूर-रूई- बत्ती के लिये,पंचामृत (गाय का कच्चा दूध, दही,घी,शहद एवं शर्करा मिला हुआ)। गंगाजल,लोटा नैवेद्य,आरती के लिये थाली,कुशासन ।

उपरोक्त सामग्री जुटाकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें। साथ ही साथ चंद्रदेव की भी पूजा करें। पूजा के उपरांत आरती करें और भोग अर्पित करें तत्पश्चात व्रत खोले ।

सोम व्रत कथा

एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.

उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है. लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई.

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी. माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था. उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख. वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा.

कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ. जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया. साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना. जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना.

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े. रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था. लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची.

साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया. उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी.

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है. मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं.

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई. दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया. जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया. लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ.

शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए. मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें.

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया. अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है. लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प तड़प कर मर जाएंगे.

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया. शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया. शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया. उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया.

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है

Exit mobile version