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Shani Chalisa शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए करें शनि चालीसा का पाठ, बनेंगे बिगड़े काम, मिटेंगे दुःख

Shani Chalisa- शनिवार के दिन शनि देव की पूजा अर्चना करने से जातकों के कष्ट मिटते हैं. शनि देव को सभी ग्रहों का स्वामी और न्याय का देवता माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस जातक का शनि अच्छा होता है उसके जीवन में सुख और वैभव रहता है. वहीं, जिसकी जन्मपत्री में शनि कमजोर होता है वो जातक कष्ट झेलता है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने आज शनिवार का व्रत रखा है. भक्त शनिदेव को सरसों का तेल, एक रुपये अर्पित करेंगे और पूजा अर्चना करेंगे. पूजा के बाद शनि चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनि चालीसा के पाठ से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्ट मिटते हैं. 

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श्री शनिदेव चालीसा अर्थ सहित

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल करण कृपाल।

दीनन के दुःख दूर करि,

कीजै नाथ निहाल॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु,

सुनहु विनय महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय,

राखहु जन की लाज॥ 

हे माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी है, सब पर कृपा करने वाले हैं, दीन लोगों के दुख दुर कर उन्हें खुशहाल करें भगवन। हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें।

 

॥चौपाई॥

जयति जयति शनिदेव दयाला।

करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।

माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला।

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।

हिये माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा।

पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥

हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो आप सदा भक्तों के रक्षक हैं उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय हैं व आपकी चार भुजाएं हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट आपकी शोभा को बढा रहा है। आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)। आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है।

आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है। आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं।

 

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन।

यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥

सौरी, मन्द, शनि, दशनामा।

भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥

जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं।

रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत।

तृणहू को पर्वत करि डारत॥ 

पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपको सब कार्यों की सफलता के लिए पूजा जाता है। क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है। पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है।

 

राज मिलत वन रामहिं दीन्हो।

कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥

बनहूं में मृग कपट दिखाई।

मातु जानकी गई चतुराई॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।

मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति मति बौराई।

रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥

दियो कीट करि कंचन लंका।

बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।

चित्र मयूर निगलि गै हारा॥

हार नौलाखा लाग्यो चोरी।

हाथ पैर डरवायो तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो।

तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥

विनय राग दीपक महँ कीन्हों।

तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥ 

हे प्रभु आपकी दशा के चलते ही तो राज के बदले भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया। आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ। उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई।

आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे। इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।

 

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।

आपहुं भरे डोम घर पानी॥

तैसे नल पर दशा सिरानी।

भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहि गहयो जब जाई।

पार्वती को सती कराई॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा।

नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।

बची द्रोपदी होति उधारी॥

कौरव के भी गति मति मारयो।

युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।

लेकर कूदि परयो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई।

रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥ 

आपकी दशा पड़ने पर राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं को भी डोम के घर पर पानी भरना पड़ा। उसी प्रकार राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा। भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी।

आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ। आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।

 

वाहन प्रभु के सात सुजाना।

दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी।

सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।

हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा।

सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।

मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।

चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा।

स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।

धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥

समता ताम्र रजत शुभकारी।

स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥ 

हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर जिस वाहन पर बैठकर आप आते हैं उसी प्रकार ज्योतिष आपके फल की गणना करता है। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी आती है। यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं।

वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं। हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है। इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है। वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।

 

जो यह शनि चरित्र नित गावै।

कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अदभुत नाथ दिखावैं लीला।

करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।

विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।

दीप दान दै बहु सुख पावत॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥ 

जो भी इस शनि चरित्र को हर रोज गाएगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा, आपकी दशा उसे नहीं सताएगी। उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।

 

॥दोहा॥

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार। 

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

जो भी इस चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करता है शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है।

शनि चालीसा के लाभ: 

शनिवार के दिन शनि मंदिर में श्री शनि चालीसा का पूर्ण विश्वास के साथ श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से शनि देव से व्यक्ति जिस चीज की कामना करता है मिलने लगती है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

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डिसक्लेमर

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