जाने लडडू गोपाल जी की छठी क्यों मनाते हैं लडडू गोपाल जी की छठी
1. प्रात:काल ठाकुर जी का पंचामृत से स्नान कराएं।
2. स्नान की प्रक्रिया ऐसी ही रहेगी जैसे आपने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर की थी। यानी पहले गंगाजल से स्नान। फिर दूध से। फिर घी, शहद और बूरे से। तीन बार गंगाजल और तीन बार दूध से स्नान कराने के बाद आप पंचामृत से भी स्नान कराएं। तत्पश्चात, गंगाजल से स्नान कराएं।
3. यदि आपके पास शंख है तो शंख से गंगाजल स्नान कराएं। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: या ऊं कृं कृष्णाय नम: का जाप करते रहें।
4. पीले वस्त्र:स्नान के बाद ठाकुर जी का श्रृंगार करें। चूंकि छठी है, सो ठाकुर जी पीले वस्त्र पहनाएं। इससे गुरु की कृपा होगी। धन-धान्य और सुख-शांति की दृष्टि से यह अच्छा रहेगा। वस्त्र, मुकुट, श्रृंगार नया होगा।
5. ठाकुर जी को उनके आसन पर विराजमान कराएं। मोर पंख का मुकुट पहनाएं या मोर पंख सिंहासन पर ही रखें। इससे राहू और केतू का प्रभाव कम होगा।
6. भोग: ठाकुर जी को मिश्री और मक्खन का भोग लगाएं।
7. छठी पर कड़ी चावल का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है। आप भी ऐसा कर सकते हैं।
ठाकुर जी का नामकरण
1. भगवान श्रीकृष्ण के अनेकानेक नाम हैं। आप स्वेच्छा से भगवान का नामकरण कर सकते हैं। यानी आप उनको माधव कह सकते हैं, केशव कह सकते हैं,लड्डू गोपाल कह सकते हैं, ठाकुर जी कह सकते हैं। फिर, इसी से उनका ध्यान करें।
घर की चाबी सौंप दें, फिर देखें कमाल
छठी महोत्सव पर ठाकुर जी को घर की चाबी सौंप दें। प्रार्थना करें कि आप ही घर के स्वामी हैं। इस घर पर आपका स्नेह और कृपा सदैव बनी रहे। हम नहीं जानते कि घर और परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा, यह सब कार्य आपको ही करना है।
ठाकुर जी की किस रूप में पूजा करेंगे
छठी पर पूजन का संकल्प लें। इसी दिन यह भी तय होता है कि आप ठाकुर जी अपने घर के मंदिर में ही प्रतिष्ठापित रहने देंगे या जहां भी जाएंगे, उनको अपने साथ ले जाएंगे। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ठाकुर जी की पूजार्चना किस प्रकार और किस स्वरूप में करते हैं।
ठाकुर जी का कीर्तन और हवन
यथासंभव, छठी पर ठाकुर जी का कीर्तन करें और हवन करें। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय, ऊं कृं कृष्णाय नम: और ऊं गोविंदाय नम: इनमें से किसी भी मंत्र की पांच माला रुद्राक्ष से कर सकते हैं
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क्यों मनाते हैं छठी
श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था। आधी रात का समय था। तेज बारिश हो रही थी। मोहमाया के प्रताप से कारागार के समस्त प्रहरी सो गए। आकाशवाणी हुई और वासुदेव ने रातोंरात उनको गोकुल में नंद के घर पहुंचा दिया। कंस जब कारागार में आया तो उसको बताया गया कि लड़की का जन्म हुआ है। कंस ने उसको मारने की कोशिश की लेकिन वह यह कहते हुए आकाश में बिजली बन गई कि तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है।
कंस ने पूतना को आदेश दिया कि जितने भी छह दिन के बच्चे हैं, उनको मार दिया जाए। पूतना जब गोकुल पहुंची तो यशोदा ने बालकृष्ण को छिपा दिया। बालकृष्ण को छह दिन हो गए थे। लेकिन उनकी छठी नहीं हुई। न नामकरण हुआ। कालांतर में यशोदा ने कान्हा के जन्म से 364 दिन बाद सप्तमी को छठी पूजन किया। तभी से श्रीकृष्ण की छठी मनाई जाने लगी। तभी से बच्चों की छठी करने की भी परंपरा पड़ी।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. RadheRadheje इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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