सुख सौभाग्य दायक शिव पूजन के मंत्र एवं अभिषेक विधि

शिव पुराण संहिता में कहा है कि सर्वज्ञ शिव ने संपूर्ण देहधारियों के सारे मनोरथों की सिद्धि के लिए इस ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का प्रतिपादन किया है। यह आदि षड़क्षर मंत्र संपूर्ण विद्याओं का बीज है। जैसे वट बीज में महान वृक्ष छिपा हुआ है, उसी प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है।

भगवान शिव को नमस्कार करने का मंत्र 

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।

शनि या राहु आदि ग्रह पीड़ा शांति के लिए शिव गायत्री मंत्र 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।

महामृत्युंजय प्रभावशाली मंत्र 

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

इस मंत्र से शिव पूजा कर दूर करें पैसों की परेशानी 

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।

श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहा​रिणे।

सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥

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शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है। अलग-अलग धाराओं से शिव अभिषेक का फल- जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है। इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए।

1. वंश की वृद्धि के लिए शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें।

2. शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।

3. भौतिक सुखों को पाने के लिए इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें।

4. बीमारियों से छुटकारे के लिए शहद की धारा से शिव पूजा करें।

5. गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है।

6. सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर बोलना चाहिए।

शिव पंचाक्षर स्त्रोत

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥

हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार।

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥

चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥

हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥

देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥

हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|

शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।

लिंगाष्टकम 

ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंग |

जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

मैं उन सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाति है, जो सदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पुजित हैं तथा जो लिंग जन्म-मृत्यू के चक्र का विनाश करता है (मोक्ष प्रदान करता है)

देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं।

रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

देवताओं और मुनियों द्वारा पुजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करूणामयं शिव का स्वरूप है, जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं।

सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

सभी प्रकार के सुगंधित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि का विकास करने वाल है तथा, सिद्ध- सुर (देवताओं) एवं असुरों सबों के लिए वन्दित है, उन सदाशिव लिंक को प्रणाम।

कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं।

दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

स्वर्ण एवं महामणियों से विभूषित, एवं सर्पों के स्वामी से शोभित सदाशिव लिंग जो कि दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाल है ; आपको प्रणाम।

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कुंकुमचंदनलेपित लिंगं, पंङ्कजहारसुशोभित लिंगं।

संञ्चितपापविनाशिन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

कुंकुम एवं चन्दन से शोभायमान, कमल हार से शोभायमान सदाशिव लिंग जो कि सारे संञ्चित पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला है, उन सदाशिव लिंग को प्रणाम।

देवगणार्चितसेवित लिंग, भवैर्भक्तिभिरेवच लिंगं।

दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

आप सदाशिव लिंग को प्रणाम जो कि सभी देवों एवं गणों द्वारा शुद्ध विचार एवं भावों द्वारा पुजित है तथा जो करोडों सूर्य सामान प्रकाशित हैं।

अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं, सर्वसमुद्भवकारण लिंगं|

अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥

आठों दलों में मान्य, एवं आठों प्रकार के दरिद्रता का नाश करने वाले सदाशिव लिंग सभी प्रकार के सृजन के परम कारण हैं आप सदाशिव लिंग को प्रणाम।

सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं।

परात्परं परमात्मक लिंगं, ततप्रणमामि सदाशिव लिंगं।।

देवताओं एवं देव गुरू द्वारा स्वर्ग के वाटिका के पुष्पों से पुजित परमात्मा स्वरूप जो कि सभी व्याख्याओं से परे है उन सदाशिव लिंग को प्रणाम।