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मायूस नही होना चाहिये जिंदगी कही से भी शुरू हो सकती है..
कोशिश आखरी साँस तक करनी चाहिए या तो लक्ष्य हासिल होता है, या तो अनुभव चीजे दोनों ही अच्छी है।
जो अन्दर से साफ है, वही बाहर से चमकता है
झूठ का कोई भविष्य नही वो आपका आज शायद सुखद करे, पर कल तो बिलकुल नही ।
कोई हमारा बुरा करना चाहता है तो यह उसके कर्मों में लिखा जाएगा, हम क्यों किसी के बारे में बुरा सोच कर अपना वक्त और कर्म खराब करें
हमारी समस्या का समाधान सिर्फ हमारे पास है। दुसरो के पास तो सुझाव होते हैं
मन से ज्यादा उपजाऊ जगह कोई नहीं है क्योंकि वहाँ जो भी कुछ बोया जाए, बढता जरूर है चाहे वह “विचार” हो, “नफरत” हो या फिर “प्यार” हो।
स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है..
सिर्फ सुकून ढूँढिये.. जरूरतें तो कभी खत्म नही होंगी..
दुःख आपका श्रेष्ठ मित्र हैं क्योंकि यह आपसे ईश्वर की खोज करवाता है।
आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा चढ़ाकर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती
आपके कर्म ही आपकी पहचान है, वरना एक ही नाम के हजारों इनसान है।
प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नही है। यह आप ही के कर्मों से आती है।
सभी गलत कार्य मन से ही उपजाते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाय तो क्या गलत कार्य रह सकता है।
विचारों को पढ़कर बदलाव नहीं आता, बदलाव विचारोंपे अंमल करके आता है।
“हमारा दिमाग ही हमारे लिए सब कुछ है, जैसे आप सोचोंगे वैसे ही आप बनोंगे.”
मैं कभी नहीं देखता क्या किया गया है मैं केवल ये देखता हूं कि क्या करना बाकी है
सुंदर वाक्य
जिंदगी ऐसी ना जिओ कि लोग फरियाद करें,
बल्कि ऐसी जिओ कि लोग तुम्हें फिर याद करें
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जीवन वह नहीं है जो हमें मिला है जीवन वह है जो हम बनाते हैं
मनुष्य की सम्पत्ति ना दौलत है, ना जायदाद है, उसकी सम्पत्ति तो उसका हँसता हुआ परिवार, अच्छा स्वास्थ्य, शुभचिंतक मित्र और स्वयं का संतुष्ट मन है।
सफलता प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है, पर सफलता को सम्भाले रखना बड़ी बात है
श्रेय मिले ना मिले अपना श्रेष्ठ देना कभी बंद मत करना…
जिनकी संगत मैं ख़ामोश संवाद होते है, अक्सर वो रिश्ते बहुत ही ख़ास होते हैं..
जो आपकी खुशी के लिए अपनी हार मान लेता हो उससे आप कभी भी नहीं जीत सकते।
भ्रम हमेशा रिश्तों को बिखेरता है, और प्रेम से, अजनबी भी बंध जाते है..
हमारा व्यवहार गणित के शून्य कि तरह होना चाहिये। जो स्वयं कोई कीमत नहीं रखता लेकिन दूसरों के साथ जुड़ने पर, उसकी कीमत बढ़ा देता है।
जीवन मे प्रयास सदैव कीजिए. लक्ष्य मिले या अनुभव दोनों ही अमूल्य है.
जिंदगी का सबसे कठिन काम.. स्वयं को पढ़ना.. लेकिन प्रयास अवश्य करे..
अच्छे लोग हमेशा साथ रहते है दिल में भी, लफ्जों में भी और दुआओं में भी।
संसार में कोई भी मनुष्य सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता हैं। इसलिए कुछ कमियों को नजर अंदाज करके रिश्ते बनाए रखिए…
एक बेहतरीन जिंदगी जीने के लिए यह स्वीकार करना भी जरुरी है कि सब कुछ सबको नहीं मिल सकता..
उम्मीद एक ऐसी ऊर्जा है, जिससे जिंदगी का कोई भी अंधेरा का रोशन किया जा सकता है.
अच्छे व्यवहार का कोई आर्थिक मूल्य भले ही ना हो लेकिन अच्छा व्यवहार करोड़ों दिलों को खरीदने की शक्ति रखता है
विचार और व्यवहार हमारे बगीचे के वो फूल है, जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को महका देते है
रगों में ब्लड ग्रुप कोई सा भी हो, दिलो-दिमाग़ में हमेशा ‘बी पोजिटिव’ होना चाहिए। जीवनके हर कदम पर हमारी सोच, हमारे बोल, हमारे कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं
जीवन में उन सपनों का कोई महत्व नहीं, जिनको पूरा करने के लिए अपनों से ही छल करना पड़े
किसी पर हँसने से बेहतर किसी के साथ हंसे क्योंकि छोटी छोटी खुशियां ही तो है जो जीने का सहारा बनती है
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ईश्वर की प्राप्ति आयु, धन, जाति पर निर्भर नहीं करती है। वह एक आपके मन की व्याकुलता और तृष्णा पर निर्भर करती है। उसे व्याकुलता और तृष्णा के लिए आपको कृष्ण की शरणागति आवश्यक है। हरि नाम लेने से ही हमारे देह बुद्धि का विकार, और हमारे अहंकार को दूर किया जा सकता है। हरि नाम लेने से भगवान की और की राह खुल जाती है । इसीलिए आप के ह्रदय में हरि नाम को जागृत रखना चाहिए।
भगवान से प्रेम करने वाले व्यक्ति का लक्षण यह है कि वह जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में भगवान पर भरोसा करता है।
मनुष्यों को माया का बंधन मन के कारण होता है। मन का कार्य है निरंतर संकल्प एवं विकल्प रूपी विचारों में संलग्न रहना । मन हमेशा विषय चिंतन करता रहता है । विषय चिंतन से इंद्रियों में विकार उत्पन्न होते हैं । विकार पूर्ण मन कर्मेन्द्रियों को विषय भोग में लगाता है । विषय भोग से ही जन्म मृत्यु रूपी चक्र में आत्मा नाना प्रकार के दुखों को भोगती है । अतः मन को श्रीकृष्ण के चरणों के चिंतन में निरंतर लगाये रखने का अभ्यास करना साधक के पूर्णहित में है।
हो सकता है हर दिन अच्छा ना हो लेकिन हर दिन में कुछ अच्छा जरूर में होता है
मनुष्य के मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में एक भलीभाँति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। जैसे कछुआ अपने अंगों को सब ओर से सिकोड़ लेता है, उसी प्रकार जब मनुष्य अपनी सब कामनाओं को सब ओर से समेट लेता है, उस समय तुरंत ही ज्योतिः स्वरूप आत्मा अपने अन्तः करण में प्रकाशित हो जाती हैं।
जब मनुष्य किसी से भय नहीं मानता और जब उससे भी दूसरे प्राणी भय नहीं मानते तथा जब वह राग और द्वेष को जीत लेता है, तब अपने आत्मस्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है। जब वह मन, वाणी और क्रिया द्वारा सम्पूर्ण प्राणियों में से किसी के साथ न तो विद्रोह करता है और न किसी की अभिलाषा ही रखता है, तब वो परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त करने योग्य हो जाता है।
शुभ के चिंतन, मनन, अभ्यास से मन की अशुभ वृत्तियाँ, बुरे संस्कार भी क्षीण हो जाते हैं और एक दिन मन शुद्ध, निर्मल बन जाता है। मन में शुद्ध भावनाओं को प्रोत्साहन दीजिए। विचारों के चिंतन में मन को लगाए रहिए, इस पर भी यदि शुभ वह उच्छृंखलता बरते, तो उस पर ध्यान न दीजिए।
आपने जो निश्चय किया है, जो लक्ष्य और कार्यक्रम बनाया है, उसी की धुन निरंतर अपने मन को सुनाते रहें। आप देखेंगे एक दिन आप का मन अपनी समस्त उच्छृंखलता, उद्दंडता, चंचलता छोड़ कर आप का दास बन जाएगा। मन की साधना के लिए उपयुक्त वातावरण, अनुकूल परिस्थितियों का होना भी आवश्यक है।
जिस तरह चीनी के भंडार में रख कर सामान्य मनुष्य से चीनी खाने की आदत छुड़ाई नहीं जा सकती। उसी प्रकार मन की चंचलता को बढ़ाने वाले वातावरण में रह कर उसको साधना प्रायः कठिन ही होता है। इसलिए जहाँ तक बने साधना के अनुकूल शांत, निर्विघ्न परिस्थितियों में रह कर मन को एकाग्र करने की साधना की जाए, तो अपेक्षाकृत जल्दी सफलता मिलेगी।
ना खुशी अच्छी है न मलाल अच्छा है, जिस हाल में रखें
राधा रमण बस वही हाल अच्छा है
केवल रक्त संबंध से ही कोई अपना नहीं होता प्रेम, सहयोग, विश्वास, निष्ठा सुरक्षा, सहानुभूति और सम्मान ये सभी ऐसे भाव हैं जो परायों को भी अपना बनाते हैं
एक बेहतरीन जिंदगी जीने के लिए यह स्वीकार करना भी जरुरी है कि सब कुछ सबको नहीं मिल सकता..
आध्यात्मिक लोगों की संगति, व्यक्ति के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। भक्ति एक सिद्धांत है जो खुद को एक अनुकूल आत्मा से दूसरे में संचालित करती है। भक्ति का सिद्धांत निष्ठावान और जीवन के सभी कार्यों में देवता पर निर्भर होता है।
भक्ति आध्यात्मिक अस्तित्व के अंतिम उद्देश्य की प्राप्ति का एकमात्र साधन है। कर्म सीधे और तत्काल रूप से आध्यात्मिक परिणाम उत्पन्न नहीं कर सकता है; यह वैसा भक्ति के साधन द्वारा करता है। भक्ति स्वतंत्र होती है और कर्म और ज्ञान निर्भर सिद्धांत हैं।
भक्ति एक भावना और एक क्रिया दोनों है। इसके तीन चरण होते हैं, साधना भक्ति, भाव भक्ति और प्रेम भक्ति। साधना भक्ति में प्रेम की भावना अब तक उत्पन्न नहीं हुई है। भाव भक्ति में, भावना जागृत होती है और प्रेम भक्ति में भावना पूर्णतः क्रिया में निर्धारित होती है। कृष्ण प्रेम या शुद्ध प्रेम हैं। कृष्ण आध्यात्मिक अस्तित्व के अंतिम उद्देश्य हैं।
जैसा सोचते हैं, जैसे लोगों के साथ बैठते हैं और जैसे लोग हमारे सम्पर्क में आते हैं, उन सबके विचार, व्यवहार, वाणी के अर्थ हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव डालते हैं। इसीलिए कहते हैं जैसा खाय अन्न, वैसा होय मन। जैसा रहे संग वैसा हो जाये मन। जिंदगी एक कर्मशाला है। हमें कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए अनेकानेक कर्म करने पड़ते हैं।
सार्थक जीवन लिए सार्थक कर्म ही उचित है। सत्संग से, अच्छे संग से, भक्त को विलक्षण लाभ होता है। ऐसे ही कुसंग से पतन हो जाता है। अतः हर समय सावधानी रखकर कुसंग से बचना चाहिए। सत्संग से भीतर की गांठ खुल जाती है। मन से अहंकार का पतन होता है।
जीवन के विपरीत कर्मफल को भोगने के लिए सत्संग करने वालों को प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी ज्यादा दुःख नहीं होता है। जब भी सत्संग का अवसर मिले, उसे सहर्ष ग्रहण करना चाहियें। भगवान की याद संपूर्ण विपत्तियों का नाश करने वाली है। अतः चलते-फिरते हर समय उनका नाम लेते रहें एवं उनको पुकारते रहे।
मनुष्य दूसरों का भला करके भूल जाते हैं उनका हिसाब प्रकृति स्वयं याद रखा करती है मगर जो मनुष्य आदतन अपने पुण्यों का बहीखाता लिए फिरते हैं इस प्रकृति द्वारा फिर उनके पुण्य कर्मों को विस्मृत कर दिया जाता है। जो भी पुण्य तुम्हारे द्वारा संपन्न किये जाते हैं, सत्य समझ लेना यह प्रकृति निश्चित ही उन्हें संचित कर देती है और आवश्यकता पड़ने पर तुम्हारी विस्मृति के बावजूद भी उनका यथा योग्य फल अवश्य ही दे दिया करती है। याद रखना मनुष्य केवल खाता रख सकता है मगर उसका परिणाम घोषित नहीं कर सकता, वह अधिकार तो केवल और केवल इस प्रकृति के पास ही सुरक्षित है। अतः भला करो और भूल जाओ उचित समय आने पर प्रकृति स्वयं पुरुस्कृत कर देगी।
जीवन का एक सीधा सा नियम है और वो ये कि अगर अनुशासन नहीं तो प्रगति भी नहीं। अनुशासन में बहकर ही एक नदी सागर तक पहुँचकर सागर ही बन जाती है। अनुशासन में बँधकर ही एक बेल जमीन से उठकर वृक्ष जैसी ऊँचाई को प्राप्त कर पाती है और अनुशासन में रहकर ही वायु फूलों की खुशबु को अपने में समेटकर स्वयं भी सुगंधित हो जाती है व चारों दिशाओं को सुगंध से भर देती है। पानी अनुशासन हीन होता है तो बाढ़ का रूप धारण कर लेता है, हवा अनुशासन हीन होती है तो आँधी बन जाती है और अग्नि अगर अनुशासन हीन हो जाती है तो महा विनाश का कारण बन जाती है।
ऐसे ही अनुशासनहीनता स्वयं के जीवन को तो विनाश की तरफ ले ही जाती है साथ ही साथ दूसरों के लिए भी विनाश का कारण बन जाती है। गाड़ी अनुशासन में चले तो सफर का आनंद और बढ़ जाता है। इसी प्रकार जीवन भी अनुशासन में चले तो जीवन यात्रा का आनंद और बढ़ जाता है। जीवन का घोड़ा निरंकुशता अथवा उच्छृंखलता का त्याग करके निरंतर प्रगति पथ पर अथवा तो अपने लक्ष्य की ओर दौड़ता रहे उसके लिए अपने हाथों में अनुशासन रुपी लगाम का होना भी परमावश्यक हो जाता है।
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