मयूर स्तोत्रम श्री गणपति भगवान सभी विघ्नों का नाश करने वाले देवता है, यह सभी कार्यो को सिद्ध करने वाले हैं। किसी भी पूजा या अनुष्ठान में गणपति जी को स्थापित करके पूजन या अनुष्ठान किया जाये तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है।

यूँ तो गणपति महाराज के अनेको स्तोत्रम् हैं परंतु मयूर स्तोत्रम् का महत्व सर्वोपरि है। यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है, अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता प्रदान करने वाला है। मयूर स्तोत्रम् का पाठ घर में आने वाली बाधाओ, सुख शांति, उन्नति, प्रगति तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसका नियमित पाठ सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यदि कोई व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रूप से परेशान है। किसी प्रकार की बीमारी से दुखी है तब इस स्तोत्र का पाठ करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा किसी को जेल हो गई है अथवा जेल जाने की संभावना बन रही है तब भी इस स्तोत्र का पाठ कर के इससे बचा जा सकता है। इस स्तोत्र का पाठ स्त्री एवं पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं।

सर्व प्रथम स्नान कर आसान को स्पर्श करके मस्तक से लगाएं। पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे अपने सामने गणपति यंत्र या मूर्ती स्थापित करें। पूजा शुक्ल पक्ष के बुधवार को प्रारम्भ करें।

“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ।।

सर्वप्रथम गुरु जी का पंचोपचार से पूजन करे। उसके बाद गणपति महाराज को प्रणाम करें।

“सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम

प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम।

दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर,

वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम ।।

सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्

दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम,

बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड-

भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम

सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक:

लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः

धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना:

द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि ।

विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते ।।

तत्पश्चात गणपति महाराज के 12 नामो का स्मरण करे।

सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:

लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक:

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:

द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा

संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते।

इसके बाद श्री गणपति जी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करके मयुरेश स्त्रोत का पाठ करे करें।

श्रीमयूरेश स्तोत्रम

ब्रहोवाच

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।

मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।1।।

ब्रह्मा जी बोले – जो पुराण पुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की कीडाएँ करते हैं. जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाज्य अर्थात अचिन्त्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।1।।

परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।

गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।2।।

जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।2।।

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।

सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।3।।

जो स्वेच्छा से ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।3।।

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।

नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ।।4।।

जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्ति भाव से नमस्कार करता हूँ ।।4।।

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।

सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।5।।

इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करता है तथा जो सत्, असत्, व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।5।।

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।6।।

जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।6।।

मयूरेश उवाच

पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।

भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।7।।

जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ।।7।।

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।

समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ।।8।।

मुनि जिनका ध्यान करते हैं, मुनि जिनके गुण गाते हैं तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन आप समिष्ट-व्यष्टि रूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।8।।

सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।9।।

जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य-ज्ञान स्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।9।।

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।

अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।10।।

जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।10।।

मयूरेश उवाच

इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् ।

सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ।।11।।

मयूरेश बोले – यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है, मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है ।।11।।

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।

आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ।।12।।

सात दिन तक इसका पाठ किया जाए तो कारागार में पड़े हुए मनुष्यों को भी यह छुड़ा लाता है. यह शुभ स्तोत्र आधि अर्थात मानसिक चिन्ता तथा व्याधि अर्थात शारीरिक रोग को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है.

।। इति श्रीमयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

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