इस महाकाल स्तोत्र को भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था । इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है। इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है। शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है। नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है। मन में प्रफुल्लता आ जाती है। भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है। महाकाल स्तोत्र भगवान शिव के भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। यहाँ भगवान महाकाल की दो स्तोत्र दिया जा रहा है।
भगवान शंकर के अनेकों नाम है. भक्त भिन्न-भिन्न नामों से इनका गुणगान करते हैं, कोई महादेव तो कोई भोलेनाथ, कोई अघोरी तो कोई शंभु. भोलेनाथ के अलग-अलग रूपों के कारण ही उनके इतने नाम हैं. इन्हें तंत्र साधना का जनक भी कहा जाता है, इसलिए कोई भी तंत्र साधना उनके बिना पूरी नहीं होती. जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से इनकी अराधना करता है, उसके जीवन से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं. भगवान शिव का एक स्वरूप महाकाल का भी है, यानि वे मृत्यु को भी अपने वश में रखते हैं. महामृत्युंजय मंत्र के विषय में तो यह भी माना जाता है कि वह आसन्न मृत्यु को भी टाल सकता है. लेकिन बहुत ही कम महाकाल स्तोत्रं के बारे में जानते हैं, जिसे स्वयं भगवान शिव ने भैरवी को बताया था.
श्रीमहाकालस्तोत्रम् Shri Mahakal Stotram
दृष्ट्वा देवं महाकालं कालिकाङ्गं महाप्रभुम् ।
भार्गवः पतितो भूमौ दण्डवत्सुरपूजिते ॥ १॥
भार्गव उवाच
कल्यन्तकालाग्निसमानभासं चतुर्भुजं कालिकयोपजुष्टम् ।
कपलखट्वाङ्गवराभयाढ्यकरं महाकालमनन्तमीडे ॥ २॥
नमः परमरूपाय परामलसुरूपिणे ।
नियतिप्राप्तदेहाय तत्त्वरूपाय ते नमः ॥ ३॥
नमः परमरूपाय परमार्थैकरूपिणे ।
वियन्मायास्वरूपाय भैरवाय नमोऽस्तुते ॥ ४॥
ॐ नमः परमेशाय परतत्त्वार्थदर्शिणे ।
वियन्मायाद्यधीशाय धीविचित्राय शम्भवे ॥ ५॥
त्रिलोकेशाय गूढाय सूक्ष्मायाव्यक्तरूपिणे ।
पराकाष्ठादिरूपाय पराय शम्भवे नमः ॥ ६॥
ॐ नमः कालिकाङ्काय कालाञ्जननिभाय ते ।
जगत्संहारकर्त्रे च महाकालाय ते नमः ॥ ७॥
नम उग्राय देवाय भीमाय भयदायिने ।
महाभयविनाशाय सृष्टिसंहारकारिणे ॥ ८॥
नमः परापरानन्दस्वरूपाय महात्मने ।
परप्रकाशरूपाय प्रकाशानां प्रकाशिने ॥ ९॥
ॐ नमो ध्यानगम्याय योगिहृत्पद्मवासिने ।
वेदतन्त्रार्थगम्याय वेदतन्त्रार्थदर्शिने ॥ १०॥
वेदागमपरामर्शपरमानन्ददायिने ।
तन्त्रवेदान्तवेद्याय शम्भवे विभवे नमः ॥ ११॥
धियां प्रचोदकं यत्तु परमं ज्योतिरुत्तमम् ।
तत्प्रेरकाय देवाय परमज्योतिषे नमः ॥ १२॥
गुणाश्रयाय देवाय निर्गुणाय कपर्दिने ।
अतिस्थूलाय देवाय ह्यतिसूक्ष्माय ते नमः ॥ १३॥
त्रिगुणाय त्र्यधीशाय शक्तित्रितयशालिने ।
नमस्त्रिज्योतिषे तुभ्यं त्र्यक्षाय च त्रिमूर्तये ॥ १४॥
इति महाकालस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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