Guru Tegh Bahadur Jayanti: सिर कटाना मंजूर किया लेकिन औरंगजेब के आगे झुकना नहीं, ऐसे थे गुरु तेग बहादुर
21 अप्रैल 1621 को वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब और माता नानकी के घर एक वीर बालक जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया त्याग मल (तेग बहादुर), उन्हें तेग बहादुर (तलवार के पराक्रमी) के नाम से जाना जाने लगा, जो उन्हें गुरु हरगोबिंद द्वारा मुगलों के खिलाफ लड़ाई में अपनी वीरता दिखाने के बाद दिया गया था।
गुरु तेग बहादुर, गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र थे, छठे गुरु: गुरु हरगोबिंद की एक बेटी, बीबी विरो और पांच बेटे थे: बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय, अटल राय और त्याग मल।
उस समय अमृतसर सिख धर्म का केंद्र था। सिख गुरुओं की सीट के रूप में, और मसंदों या मिशनरियों की जंजीरों के माध्यम से देश के दूर-दराज के इलाकों में सिखों से इसके संबंध के साथ, इसने राज्य की राजधानी की विशेषताओं को विकसित किया था।
गुरु तेग बहादुर को सिख संस्कृति में लाया गया था और तीरंदाजी और घुड़सवारी में प्रशिक्षित किया गया था उन्हें वेद , उपनिषद और पुराण जैसे पुराने क्लासिक्स भी पढ़ाए गए थे । तेग बहादुर का विवाह 3 फरवरी 1632 को माता गुजरी से हुआ था।
मार्च 1664 में, गुरु हर कृष्ण ने चेचक का अनुबंध किया जब उनके अनुयायियों द्वारा पूछा गया कि उनके बाद उनका नेतृत्व कौन करेगा, तो उन्होंने उत्तर दिया बाबा बकाला, जिसका अर्थ है कि उनका उत्तराधिकारी बकाला में पाया जाना था। मरते हुए गुरु के शब्दों में अस्पष्टता का लाभ उठाते हुए, कई लोगों ने खुद को नए गुरु के रूप में दावा करते हुए बकाला में स्थापित किया। इतने सारे दावेदारों को देखकर सिख हैरान रह गए।
सिख परंपरा में एक मिथक है कि जिस तरह से तेग बहादुर को नौवें गुरु के रूप में चुना गया था। एक धनी व्यापारी, बाबा माखन शाह लबाना ने एक बार अपने जीवन के लिए प्रार्थना की थी और यदि वह जीवित रहे तो सिख गुरु को 500 सोने के सिक्के उपहार में देने का वादा किया था। वह नौवें गुरु की तलाश में पहुंचे। वह एक दावेदार से दूसरे दावेदार के पास जाता था और प्रत्येक गुरु को दो सोने के सिक्के भेंट करता था, यह विश्वास करते हुए कि सही गुरु को पता चल जाएगा कि उसका मौन वादा उसकी सुरक्षा के लिए 500 सिक्के देने का था। वह जिस भी गुरु से मिला, उसने दो सोने के सिक्के स्वीकार किए और उसे विदा किया।
तब उन्हें पता चला कि तेग बहादुर भी बकाला में रहते हैं। लबाना ने तेग बहादुर को दो सोने के सिक्कों की सामान्य भेंट भेंट की। तेग बहादुर ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया और टिप्पणी की कि उनकी पेशकश वादा किए गए पांच सौ से काफी कम थी। माखन शाह लबाना ने तुरंत अंतर बनाया और ऊपर की ओर भागे। वह छत से चिल्लाने लगा, गुरु लधो रे, गुरु लधो रे का अर्थ है “मुझे गुरु मिल गया है, मुझे गुरु मिल गया है”।
अगस्त 1664 में, एक सिख संगत बकाला पहुंची और तेग बहादुर को सिखों के नौवें गुरु के रूप में नियुक्त किया। संगत का नेतृत्व गुरु तेग बहादुर के बड़े भाई दीवान दुर्गा मल ने किया, जिन्होंने उन्हें गुरुपद प्रदान किया।
जैसा कि मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा गुरु अर्जन के वध के बाद सिखों में प्रथा थी, गुरु तेग बहादुर सशस्त्र अंगरक्षकों से घिरे थे। उन्होंने स्वयं एक तपस्वी जीवन व्यतीत किया।
गुरु तेग बहादुर ने पहले सिख गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए ढाका और असम सहित देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर यात्रा की वे जिन स्थानों पर गए और रुके, वे सिख मंदिरों के स्थल बन गए। अपनी यात्रा के दौरान, गुरु तेग बहादुर ने सिख विचारों और संदेश का प्रसार किया, साथ ही सामुदायिक जल कुओं और लंगर (गरीबों के लिए सामुदायिक रसोई दान) की शुरुआत की।
औरंगजेब के जुल्म के शिकार कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास आये और उन्हें बताया किस तरह उन पर इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिये दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं। और बहू-बेटियों की इज्जत भी खतरे में है।
गुरु तेगबहादुर जी ने उन पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह दो, अगर गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाये तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे और तुम हम पर जबरदस्ती नहीं करोगे। औरंगजेब ने इस बात को स्वीकार कर लिया।
श्री गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गये, वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिये। बात नहीं बनी तो उन पर अत्यंत जुल्म किये। गुरू साहिब के शिष्य भाई मति दास, भाई सती दास और भाई दयाल दास को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु साहिब टस से मस नहीं हुए।
श्री गुरू तेग़ बहादुर जी ने औरंगजेब को समझाया कि अगर तुम जबरदस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो तो तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं। औरंगजेब को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु साहिब के शीश को काटने का हुक्म दे दिया। गुरु साहिब ने हंसते-हंसते अपना शीश कटाकर शहादत दी।
इसलिए श्री गुरु तेगबहादुर जी की याद में उनके शहीदी स्थल पर जो गुरुद्वारा साहिब बना है, उसका नाम गुरुद्वारा सीस गंज साहिब है धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु साहिब को इसीलिए प्रेम से कहा जाता है
हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर
श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन की विशेष बाते
1. गुरू तेग बहादुर प्राचीन भारतीय गुरू परंपरा के अनुसार सिखों के नवें गुरु थे जो गुरू परंपरा के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। उन्होने कश्मीरी पण्डितों को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।
2. गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी को शहीद किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।
3. गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुत: सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।
4. गुरु तेग़ बहादुर जी गुरु हरगोविन्द जी के पाँचवें पुत्र थे। आठवें गुरु इनके पोते हरिकृष्ण राय जी का अकाल देहावसान हो जाने के कारण जनमत द्वारा ये नवम गुरु बनाए गए। इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया।
5. उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया। धैर्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक बाबा बकाला नामक स्थान पर साधना की। आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए बाबा बकाले का निर्देश दिया।
6. गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।
7. गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढिय़ों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु-गुरु गोविंद सिंह बने।
8. जुल्म से त्रस्त कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं। गुरु चिंतातुर हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय ने उनकी चिंता का कारण पूछा ,पिता ने उनको समस्त परिस्थिति से अवगत कराया और कहा इनको बचने का उपाय एक ही है कि मुझको प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना होगा।
9. गुरु तेगबहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि यदि उनके गुरु ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी कर लेंगे। यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। इससे औरंगजेब क्रुद्ध हो गया और उसने गुरु जी को बन्दी बनाए जाने के लिए आदेश दे दिए।
10. गुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
11. गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है। गुरु तेगबहादुर जी की बहुत सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं। गुरु तेगबहादुर जी की शहीदी के बाद उनके बेटे गुरु गोबिन्द राय को गुरु गद्दी पर बिठाया गया जो प्राचीन भारतीय गुरू परंपरा के अनुसार सिक्खों के दसवें गुरु बने।
12. सहनशीलता, कोमलता और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ गुरू तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए। इसी की मिसाल दी गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर जिसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या भारत की ढाल भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने को कुर्बानी दी।
13. संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
Must Read Guru mantra: गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है ? जानें गुरु मंत्र को गुप्त क्यों रखा जाता है
Leave A Comment