जानें देवी दुर्गा के सोलह नाम और उनका अर्थ 

देवी की पूजा सबसे पहले किसने और कहां शुरु की,

फिर मनुष्यों में देवी पूजन की परम्परा कैसे शुरु हुई ?

जानें वेद में बताए गए देवी के अत्यंत मंगलकारी नाम

देवी दुर्गा परमात्मा श्रीकृष्ण की शक्तिरूपा हैं । वे देवताओं और मनुष्यों द्वारा स्मरण करने पर उन्हें सद्बुद्धि प्रदान करती हैं और उनके भय और दु:ख का नाश कर देती हैं । इसीलिए सबसे पहले परमात्मा श्रीकृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में गोलोक स्थित वृन्दावन के रासमण्डल में देवी की पूजा की थी

दूसरी बार भगवान विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ से भय होने पर ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुर दैत्य से युद्ध के समय महादेवजी ने देवी की पूजा की । चौथी बार दुर्वासा के शाप से जब देवराज इन्द्र राजलक्ष्मी से वंचित हो गए तब उन्होंने देवी की आराधना की थी । तब से मुनियों, सिद्धों, देवताओं तथा महर्षियों द्वारा संसार में सब जगह देवी की पूजा होने लगी।

वेद में वर्णित दुर्गा के कल्याणकारी 16 नाम और उनका अर्थ 

वेद की कौथुमी शाखा में दुर्गा के सोलह नाम बताये गये हैं जो सबके लिए बहुत ही कल्याणकारी हैं

दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी।

भगवान विष्णु ने इन सोलह नामों का अर्थ इस प्रकार किया है

१. दुर्गा– दुर्ग + आ। ‘दुर्ग’ शब्द का अर्थ दैत्य, महाविघ्न, भवबंधन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, भय और रोग है । ‘आ’ शब्द ‘हन्ता’ का वाचक है। अत: जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का नाश करती हैं, उसे ‘दुर्गा’ कहा गया है।

२. नारायणी– यह दुर्गा यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान हैं तथा नारायण की ही शक्ति हैं, इसलिए ‘नारायणी’ कही गयी हैं।

३. ईशाना– ईशान + आ। ‘ईशान’ शब्द सम्पूर्ण सिद्धियों के अर्थ में प्रयोग किया जाता है और ‘आ’ शब्द दाता का वाचक है। अत: वह सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली ‘ईशाना’ कही जाती हैं।

४. विष्णुमाया– सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि कर समस्त विश्व को मोहित किया । वह विष्णुशक्ति माया ही ‘विष्णुमाया’ कही गयी हैं।

५. शिवा– शिव + आ। ‘शिव’ शब्द कल्याण का और ‘आ’ शब्द प्रिय और दाता का वाचक है। अत: वह कल्याणस्वरूपा हैं, शिवप्रिया हैं और शिवदायिनी हैं; इसलिए ‘शिवा’ कही गयी हैं।

६. सती– देवी दुर्गा प्रत्येक युग में विद्यमान, पतिव्रता एवं सद्बुद्धि देने वाली हैं। इसलिए उन्हें ‘सती’ कहते हैं ।

७. नित्या– जैसे भगवान नित्य हैं, वैसे ही भगवती भी ‘नित्या’ हैं। प्रलय के समय वे अपनी माया से परमात्मा श्रीकृष्ण में विलीन हो जाती हैं । अत: वे ‘नित्या’ कहलाती हैं

८. सत्या– जिस प्रकार भगवान सत्य हैं, उसी तरह देवी दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं । इसलिए ‘सत्या’ कही जाती हैं।

९. भगवती– ‘भग’ शब्द ऐश्वर्य के अर्थ में प्रयोग होता है, अत: सम्पूर्ण ऐश्वर्य आदि प्रत्येक युग में जिनके अंदर विद्यमान हैं, वे देवी दुर्गा ‘भगवती’ कही गयी हैं।

१०. सर्वाणी– देवी दुर्गा संसार के समस्त प्राणियों को जन्म, मृत्यु, जरा और मोक्ष की प्राप्ति कराती हैं इसलिए ‘सर्वाणी’ कही जाती हैं।

११. सर्वमंगला– ‘मंगल’ शब्द का अर्थ मोक्ष है और ‘आ’ शब्द का अर्थ है दाता। अत: जो मोक्ष प्रदान करती हैं उन्हें ‘सर्वमंगला’ कहते हैं।

१२. अम्बिका– देवी दुर्गा सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकों की माता हैं, इसलिए ‘अम्बिका’ कहलाती हैं ।

१३. वैष्णवी– देवी श्रीविष्णु की भक्ता, और उनकी शक्ति हैं । सृष्टिकाल में विष्णु के द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है इसलिए उन्हें ‘वैष्णवी’ कहा जाता है ।

१४. गौरी– भगवान शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी प्रिया हैं; इसलिए उनको ‘गौरी’ कहा गया है।

१५. पार्वती– देवी पर्वत गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं, पर्वत पर प्रकट हुई हैं और पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिए उनहें ‘पार्वती’ कहते हैं।

१६. सनातनी– ‘सना’ का अर्थ है सर्वदा और ‘तनी’ का अर्थ है विद्यमान । सब जगह और सब काल में विद्यमान होने से वे देवी ‘सनातनी’ कही गयीं है।

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