ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी का पर्व मनाया जाता है, महेश नवमी का पर्व हिन्दू धर्म के सभी लोग उत्साह पूर्वक मनाते हैं, लेकिन यह पर्व माहेश्वरी समाज का प्रमुख पर्व है। भगवान शिव कल्याणकारी, मंगलमय और परम शांतिमय हैं, भगवान शंकर का एक नाम महेश भी है। माहेश्वरी समाज की उत्पति भी भगवान शिव के वरदान से इसी दिन हुई थी। महेश नवमी के दिन माहेश्वरी समाज द्वारा देवाधिदेव शिव व जगतजननी मां पार्वती की आराधना की जाती है, भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोडक़र वैश्य धर्म को अपनाया था। महेश नवमी के दिन महेश्वराय नमः मन्त्र का स्मरण करते भगवान शिव की आराधना की जाती है।
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को #महेश_नवमी का पर्व मनाया जाता है, महेश स्वरूप में भगवान शिव पृथ्वी से ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। महेश नवमी के दिन माहेश्वरी समाज द्वारा देवाधिदेव शिव व जगतजननी मां पार्वती की आराधना की जाती है।
महेश नवमी का महत्व Significance of Mahesh Navami
Mahesh Navami का अपना एक अलग ही महत्व है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी पर्व मनाया जाता है। यह दिन मुख्य रूप से भगवान महेश और पार्वती की आराधना को समर्पित होता है। महेश भगवान शिव का नाम है। महेश नाम से ही माहेश्वरी समाज का नामकरण हुआ है। महेश नवमी विशेष रूप से महेश्वरी समाज का शुभ पर्व है। महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करने से लेकर सेहत, सुख, शांति, रिश्तों में मधुरता, धन, सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि होती है।
महेश नवमी पूजन विधि और मंत्र Mahesh Navami worship method and mantra
1. महेश नवमी के दिन शिवलिंग तथा भगवान शिव परिवार का पूजन-अभिषेक किया जाता है।
2. भगवान शिव को चंदन, भस्म, पुष्प, गंगा जल, मौसमी फल और बिल्वपत्र चढ़ाकर पूजन किया जाता है।
डमरू बजाकर भगवान शिव की आराधना की जाती है।
3. मां पार्वती का पूजन एवं स्मरण करके विशेष आराधना की जाती है।
4. भगवान भोलेनाथ को पीतल का त्रिशूल चढ़ाया जाता है।
महेश नवमी की कथा का श्रवण किया जाता है।
5. भगवान शंकर पर अक्षत मिश्रित गंगाजल चढ़ाकर आराधना की जाती है।
महेश नवमी शिव मंत्र
1. इं क्षं मं औं अं।
2. नमो नीलकण्ठाय।
3. प्रौं ह्रीं ठः।
4. ऊर्ध्व भू फट्।
5. ॐ नमः शिवाय।
6. ॐ पार्वतीपतये नमः।
7. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
8. ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
महेश नवमी के दिन पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके इन मंत्रों का 108 बार जप करना चाहिए। जप के पूर्व शिव जी को बिल्वपत्र अर्पित करना चाहिए। उनके ऊपर जलधारा अर्पित करना चाहिए।
महेश नवमी क्या है what is mahesh navami
पौराणिक कथाओं के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 के जेष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, उसके पश्चात् से माहेश्वरी समाज प्रत्येक वर्ष जेष्ट शुक्ल नवमी को महेश नवमी के नाम मनाया जाने लगा। इसे माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूप में भी जाना जाता है।
महेश नवमी क्यों मनाई जाती है Why is Mahesh Navami celebrated ?
मान्यता है कि युधिष्टिर संवत 9 जेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान शंकर और देवी पार्वती ने ऋषियों के शाप के कारण पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को शाप से मुक्त किया था और उन्हें पुनर्जीवन देते हुए कहा की आज से तुम्हारे वंशपर (धर्म पर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे। भगवान शंकर और देवी पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमरावों को दूबारा जीवन दान मिला। इस कारण माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई।
तबभी से भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक माना जाना लगा। माहेश्वरी समाज में यह दिन माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रुप में बहुत ही श्रृध्दा व उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की योजना कई दिनों पहले से ही आरम्भ हो जाती है। इस पर्व पर धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान शंकर व माता पार्वती की शोभायात्रा लोग निकालते हैं। भगवान शंकर व माता पार्वती की महाआरती का आयोजन पूर्ण भक्ति और आस्था के साथ किया जाता है।
महेश नवमी से जुडी परौणिक कथा Story related to Mahesh Navami in Hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक दिन क्षत्रियवंशज शिकार पर निकाले थे। इनके शिकार की गतिविधियों से ऋषिगणों को यज्ञ करने में कठिनाई आ रही थी,जिस कारण ऋषियों ने क्रोधित हो कर क्षत्रियवंशज को श्राप दिया कि तुम्हारे वंश का सर्वन्शा हो जायें। इसी वजह से माहेश्वरी समाज के पूर्वज पत्थरवत् बने गये। किंतु ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान शिवजी की असीमकृपा से उन्हें अपने श्राप से मुक्ति मिल गयी, तब भगवान शिवजी की आज्ञानुसार माहेश्वरी समाज ने क्षत्रिय कर्म त्याग कर वैश्य कर्मों को अपना लिया।शंकरजी ने माहेश्वरी समाज के पूर्वजों को अपना नाम दिया। इस कारण यह समाज माहेश्वरी के नाम से विख्यात हुआ। अत: आज भी माहेश्वरी समाज वैश्य रूप में ही जाने जाते हैं।
भगवान शंकर के वरदान के कारण ही माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। उत्पत्ति दिवस ज्येष्ठ शुक्ल नवमी, जो महेश नवमी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव को कोमल कमल पुष्प, बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल और डमरू अर्पित किये जाते है।
भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रतीक का अपना महत्व है The symbol of this symbol of Lord Shiva has its own importance in Hindi
बेलपत्ती : त्रिदलीय बिल्व पत्र हमारे स्वास्थ्य के लिये उत्तम होता है। यह भगवान महेश का प्रिय मानी जाती है। इसे उनके चरणों में अर्पित करने पर उत्तम फल मिलता है।
सेवा : हमारे ऊपर संसार का बहुत बड़ा आभार रहता है। कभी भी यह नहीं विचार न करें कि संसार ने हमें क्या दिया बल्कि यह सदैव विचार करें कि हमने संसार के क्या किया हैं। यही सेवा भाव हमेंशा अपने मन में रखें जैसे मां संतान की परवरीश करती है, लेकिन बदले में कुछ नहीं मांगती। इस तरह सेवा करनी चाहिये। सेवा करने में अनेक समस्याएं आती हैं पर इन से डरना नहीं चाहिये।
त्याग : हिन्दुओं के ही नहीं विश्व के समस्त धर्मों के शास्त्र त्याग की महिमा से भरे पड़े हैं। हमारे पूर्वज सादा जीवन अपनाकर बची पूंजी समाज के उन्त कार्मों में लगाकर अपने आप को धन्य मानते थे।
सदाचार : मनुष्य जीवन में सदाचार का बहुत सर्वोच्च स्थान है। जिस व्यक्ति में, परिवार में, समाज में चरित्रहीनता, व्यसनाधीनता, अनैतिकता, गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार आदि बड़े पैमाने पर व्याप्त हों तो उस समाज का विनाश ही होता है। जब समाज उन्नति नहीं करता तो उस देश की उन्नति भी नहीं होती हैं। अत. व्यक्ति का सदाचारी होना जरूरी है।
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