ज्योतिष चर्चा मीन राशि एवं लग्न सम्पूर्ण परिचय 

(दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

यदि किसी जातक के पास अपने जन्म की तारीख, वार, समय आदि का विवरण नहीं है। तो वह अपने नाम के प्रथम अक्षर अनुसार अपनी राशि व उसके फल का अनुशीलन कर सकता है।

मीन लग्ने धनी मानी विनितश्च भोगी बहुगुण: कुशलो सहृष्टमानस:।

पितृ मातृ सुराचार्य गुरु भक्ति युतो उदार शास्त्र कलादरत्वो नरः।।

अत्यम्बुपान: समचारुदेह: स्वदारगस्तयो वित्तभोक्ता।

विद्वानकृतज्ञो भिभवत्यमित्रान शुभेक्षणो भाग्य यूतोन्त्यराशौ।।

अर्थात मीन राशि या मीन लग्न में उत्पन्न जातक/जातिका मान, प्रतिष्ठा एवं धन संपदा आदि सुखों युक्त, विनम्र स्वभाव, विलासी प्रकृति, किंतु हंसमुख, गुणवान, धर्मशास्त्र एवं संगीत, कला, अभिनय आदि में कुशल। माता-पिता, देवताओं एवं गुरुओं के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाले। सुंदर एवं संतुलित शरीर, आकर्षक नेत्र, विद्वान, कृतज्ञ, अपनी स्त्री एवं परिवार में संतुष्ट भाग्यशाली होते हैं। जलीय वस्तुओं के शौकीन तथा जल में उत्पन्न वस्तुओं से विशेष लाभ पाने वाले होते हैं।

मीन राशि राशि चक्र की बारहवीं और अंतिम राशि है। इसका विस्तार क्षेत्र मेष संपात बिंदु से 330 अंश से 360 अंश तक माना जाता है। इस राशि का स्वामी ग्रह गुरु है। मीन राशि का प्रतीकात्मक चिन्ह जल में संचरणशील दो मछलियां हैं। जिनके मुख एक दूसरे की विपरीत दिशा में पूछ के पास लगे गोल आकृति दिखाए गए हैं। इस राशि के अंतर्गत पूर्वाभाद्रपद का अंतिम चतुर्थ चरण, उत्तराभाद्रपद के चारों चरण तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरण होते हैं। पूर्वाभाद्रपद का स्वामी गुरु, उत्तराभाद्रपद का शनि तथा रेवती का स्वामी बुध ग्रह को माना गया है।

इस राशि के प्रारंभ में लिखे नक्षत्र अक्षरों एवं नक्षत्र चरण के अनुसार ही जन्म समय अनुसार बच्चे का नाम रखने की भारतीय परंपरा रही है। काल पुरुष में मीन राशि का संबंध जातक के दोनों पांव तलवे एवं पैरों की उंगलियों से है। किसी जातक के जन्म समय में जो राशि शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होगी जातक का वह अंग पुष्ट होगा तथा जो राशि पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट होगी उसमें पीड़ा या कष्ट जाने।

मीन राशि के अन्य पर्यायवाची नाम 

अन्त्य, मत्स्य, तीमि, अंडज, पृथुरोम, अंतिम, अत्भय, मीनाली, सफरी, अवसान, जलचर, पुष्करागार, तिमिध्वय इत्यादि। अंग्रेजी में पाइसिस (pisces) तथा उर्दू फारसी में इसे हूत कहते हैं।

मीन राशि करुणा, संवेदनशीलता एवं आध्यात्मिकता की राशि है। मीन राशि में प्रजनन शक्ति प्रबल होती है। यह द्विस्वभाव, जल तत्व, स्त्रीलिंग एवं सम राशि, मध्यम शरीर, सौम्यप्रकृति, पिंगल वर्ण, ब्राह्मण जाति, दिवा बली, सत्व गुणी, सम संज्ञक, बहु प्रसवा, स्निग्ध शरीर, उभ्योदयी, उत्तर दिशा की स्वामिनी, कफ़ एवं शीत प्रकृति होती है। इस राशि का प्रिय वार गुरुवार तथा प्रिय रत्न पुखराज है। शुक्र मीन राशि के 27 अंश पर उच्च स्थिति में होता है। जबकि बुध राशि के 15 अंश पर नीच स्थिति में होता है। बुध के लिए यह अस्त राशि भी है। ग्रह मैत्री चक्र अनुसार मीन राशि सूर्य व मंगल के लिए मित्र राशि, शनि के लिए सम तथा बुध व शुक्र के लिए शत्रु राशि होती है। मीन राशि का प्रथम नवांश कर्क से आरंभ होता है। जबकि प्रथम द्रेष्काण मीन का ही होता है।

निरयण सूर्य इस राशि पर लगभग 14 मार्च से 12 अप्रैल तक संचारित है। जबकि सायन सूर्य लगभग 19 फरवरी से 19 मार्च के मध्य मीन राशि पर रहता है। वर्तमान काल में बसंत ऋतु का प्रारंभ भी सायन मीन के सूर्य से ही माना जाता है।

शनि इस राशि में जातक का सुधार करता है। मंगल क्षणिक उत्तेजना, संघर्ष, चोट व दुर्घटना आदि का भय, सूर्य क्रोध, तेजी, ज्वर, आंत में सूजन, पैरों में पसीना, शनि राहु आदि वात रोग तथा गुरु पेट संबंधी रोग व पैरों में सूजन, चंद्र व शुक्र इस राशि में सिनेमा, संगीत, आमोद, प्रमोद कविता आदि का शौक तथा मदिरा आदि पेय वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति देता है।

मीन राशि से संबंधित वस्तुए 

मठाधीश, शिक्षा संस्थान, न्यायालय, प्राध्यापक, वैद्य, डॉक्टर, बैंकिंग, वस्त्र (विशेषकर ऊनी), उच्च पदाधिकारी, धर्म एवं दर्शन शास्त्र, लेखन आदि साहित्य, क्रीडा क्षेत्र, लकड़ी, सोना, पीतल, तांबा आदि धातुएं केले, पपीता, चने, हल्दी, बेसन आदि पीले वर्ण की वस्तुएं। मोम, गाय, घोड़ा, पुखराज, विदेश गमन, समुद्री यात्राएं, मदिरा, मछली आती जल से उत्पन्न वस्तुएं।

मीन लग्न गुण स्वभाव-विशेषताएं एवं विवाह सुख 

Pisces ascendant physique and personality मीन लग्न शारीरिक गठन एवं व्यक्तित्व 

मीन लग्न के जातक का सुंदर भरा हुआ संतुलित शरीर रचना, मध्यम या ऊंचा कद, बड़ा मस्तिष्क एवं चौड़ा गोल चेहरा, श्वेत पीत वर्ण एवं सुगठित कंधे, आकर्षक चमकीली व कुछ बड़ी बड़ी आंखें, नेत्र कुछ उभरे से दिखाई दे, नरम मुलायम बाल, तीखे नयन नक्श, चुंबकीय एवं आकर्षक तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होता है।

मीन राशि चारित्रिक विशेषतायें 

राशि स्वामी गुरु शुभ हो तो मीन जातक तीव्र बुद्धिमान, ईमानदार, मानवीय गुणों से युक्त, परिश्रमी, सौम्य एवं विनम्र मधुर स्वभाव, महत्वकांक्षी, संवेदनशील, भावुक, सहृदय, संगीत, साहित्य एवं सौंदर्य के प्रति स्वाभाविक रूचि हो। तथा मीन राशि होने से जातक जल की तरह प्रत्येक प्रकार की परिस्थितियों में स्वयं को ढाल लेने की क्षमता रखता है। स्मरण शक्ति तीव्र होती है। जातक विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को विचलित नहीं होने देता, उच्च कल्पनाशील होने पर भी जातक की प्रबंधन शक्ति अच्छी होती है। वह अपने कार्य क्षेत्र में सक्रिय एवं विकासशील बना रहता है।

राशिपति गुरु के कारण जातक हंसमुख, मिलनसार, परोपकारी, सरल एवं दयालु स्वभाव, धर्म परायण, सत्य निष्ठ, सेवाभावी, प्रेरणादायक, साधारण लोगों की भलाई एवं सहायता करने में उत्सुक, हस्तशिल्प, साहित्य, लेखन, गायन,धार्मिक, ज्योतिष एवं योग दर्शन आदि गूढ़ विषयों में विशेष रुचि रखने वाला। धैर्यवान, क्षमाशील, स्वाभिमानी, कई बार गंभीर रहस्यमई एवं गोपनीय आचरण करने वाला होता है।

मीन द्वि-स्वभाव राशि होने से जातक शीघ्रता से अपने मन की बात प्रकट नहीं कर पाता। कई बार दूसरों के लिए उन्हें समझना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में जातक निष्कपट एवं सरल हृदय होते हुए भी संदेह के दायरे में आ जाते हैं। यदि जन्म कुंडली में चंद्र, गुरु शुभ भावों में स्थित हो अथवा उन दोनों का योग अथवा संबंध हो तो जातक महत्वकांक्षी, धार्मिक एवं पौराणिक आस्थाओं से युक्त दूसरों पर अधिकार जताने की प्रवृत्ति। तर्क-वितर्क करने में कुशल, व्यवहार कुशल होते हैं। अधिकांशतः मिलनसार प्रकृति के होते हैं। जातक नए-नए सृजनात्मक एवं मौलिक विचार सोचते रहते हैं। मीन जातक अपने परिवार एवं मित्रों के साथ विशेष प्यार और आसक्ति रखते हैं। अपने मित्रों का चुनाव भी बहुत ध्यान पूर्वक करते हैं। उनके मैत्री संबंध सामान्य जन से लेकर कुछ प्रतिष्ठित लोगों तक होते हैं।

द्वि-स्वभाव राशि होने से मीन जातक किसी कार्य विशेष में जल्दी से कोई निर्णय नहीं लेते परंतु जब गंभीर सोच विचार के बाद कोई फैसला करते हैं तो उस कार्य को पूरे उत्साह एवं तन्मयता से अंजाम देते हैं। यदि कुंडली में मंगल शुक्र का योग किसी अशुभ भाव में हो तो जातक विषय आसक्त, कामुक, मदिरा आदि मादक वस्तुओं का सेवन करने वाला, व्यंग पूर्ण एवं कठोर वाणी का प्रयोग करने वाला एवं अशांत चित्त वाला होता है।

मीन राशि शिक्षा एवं कैरियर 

मीन जातक गुरु एवं चंद्र के प्रभाव के कारण प्रायः अध्ययनशील प्रकृति के होते हैं। शिक्षा चाहे साधारण ही हो अथवा किसी भी व्यवसाय से संबंधित हो उन्हें धर्म, योग, ज्योतिष आदि विषयों में अवश्य रुचि रहती है। मीन जातक की कुंडली में यदि चंद्र, गुरु, शुक्र आदि ग्रह स्वोच्च अथवा स्वक्षेत्री स्थिति में हो तो जातक उच्च शिक्षित एवं उच्च प्रतिष्ठित होता है। मीन लग्न के जातक प्रायः अपनी बौद्धिक योग्यता, प्रभावशाली आकर्षक व्यक्तित्व, एवं परिश्रम व पराक्रम द्वारा समुचित धन लाभ व उन्नति प्राप्त कर लेते हैं।

प्रारंभिक जीवन में संघर्ष अधिक होगा परंतु 35 वर्ष की आयु के बाद जातक भूमि, मकान, वाहन, स्त्री व संतान आदि के विशेष सुख प्राप्त करने में सफल होता है। मीन जातक प्रत्येक विषय को गहराई से जानने की जिज्ञासा रखते हैं और इसी प्रयास में वह कुछ नया पा लेते हैं।

मीन राशि में प्रेम और वैवाहिक जीवन 

प्रेम और सौंदर्य के संबंध में मीन जातक विपरीत योनि के प्रति अत्यंत मैत्रीपूर्ण, उदार एवं संवेदनशील होते हैं। भावनात्मक दृष्टिकोण होता है। करुणावश वह अपने मित्रों का दुख दर्द बांटने के लिए तथा उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। अपनी सहज मुस्कान एवं उन्मुक्त व्यवहार के कारण वह युवक युवतियों के लिए शीघ्र ही आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। द्वि स्वभाव राशि होने के कारण मीन जातक प्रेम पात्र या प्रेमिका के चयन के संबंध में जल्दबाजी नहीं करते

अपितु विशेष सोच विचार के बाद ही भावनात्मक संबंध स्थापित करते हैं। जब संबंध स्थापित हो जाता है तो वह अपने प्रेम पात्र या प्रेमिका के प्रति पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से व्यवहार करते हैं। सप्तमेश बुध के कारण मीन जातक जीवन साथी के चुनाव में बाहरी सौंदर्य के साथ साथ शैक्षणिक एवं बौद्धिक योग्यता को भी अधिमान देते हैं। यदि कुंडली में बुध, शुक्र ग्रहों की स्थिति अच्छी हो तथा दोनों की जन्मपत्री में पारस्परिक राशि नक्षत्र एवं गुण मिलान भी भली-भांति ठीक प्रकार से किया गया हो तो जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। विवाह के बाद उन्हें भूमि, मकान, वाहन, सुंदर पत्नी, संतान आदि के सुख मिलते हैं।

अनुकूल राशि मैत्री 

मीन लग्न राशि वाले जातकों को मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर लग्न व राशि वाली जातिकाओ के साथ विवाह या व्यवहारिक संबंध शुभ एवं लाभप्रद होते हैं। जबकि अन्य लग्न राशि वालों के साथ मधुर संबंध नहीं रह पाते।

स्वास्थ्य और रोग 

यदि कुंडली में गुरु, मंगल, सूर्य आदि ग्रह शुभ हो तो मीन जातक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। परंतु यदि कुंडली में गुरु, सूर्य, शुक्र, भौम आदि ग्रह नीच या अशुभ हो अथवा शनि, सूर्य आदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक मदिरा, तंबाकू आदि नशो का शिकार हो जाता है। उसे पेट के विकार, पेट गैस, हाथ-पावों में पसीना, रक्त विकार, सिर पीड़ा, अल्सर, खुजली आदि चर्म रोग, का शिकार, हिस्टीरिया, जोड़ों में दर्द, कान आदि में रोग होने का भय रहता है। यदि सूर्य अशुभ हो तो शरीर में गर्मी, ज्वर एवं पांव में सूजन हो, चंद्र अशुभ हो तो मानसिक विकार, माता को कष्ट अथवा सुख में कमी रहती है।

मंगल या केतु अशुभ हो तो रक्त विकार, फोड़े फुंसी, दुर्घटना आदि से चोट का भय या रक्त विकार। बुध अशुभ हो तो आंतों की कमजोरी, चर्मरोग, कान के विकार, फोड़े फुंसी, दुर्घटना आदि से चोट भय या रक्त विकार। बुध अशुभ हो तो आंतों की कमजोरी, चर्मरोग, कर्णशूल, टीबी, श्वास आदि रोग। अशुभ गुरु के कारण सोजस, पांव में सूजन, लीवर में दोष, आँतड़ियों में दोष, शुक्र के कारण, शक्कर रोग (शुगर)। राहु, शनि के दोष के कारण हिस्टीरिया, जोड़ों के दर्द, पथरी और शीत रोग होने का भय रहता है।

सावधानी मीन जातकों को अधिक तामसी एवं गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए, भोजन में अनियमितता और अधिक मानसिक श्रम से बचें। उत्साह शीलता, उतावलापन, क्रोध की अधिकता एवं निराशा की भावना से भी बचना चाहिए। तथा ईश्वर भक्ति, प्रार्थना एवं ध्यान की प्रक्रिया भी नियमित रूप से करनी चाहिए।

मीन लग्न की जातिकायें (महिलाएं) 

(दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

यदि किसी जातक के पास अपने जन्म की तारीख, वार, समय आदि का विवरण नहीं है। तो वह अपने नाम के प्रथम अक्षर अनुसार अपनी राशि व उसके फल का अनुशीलन कर सकता है।

मीनर्क्षे मीन लग्ने वा मीनदृक स्थूल नासिका।

धन-धर्म सुखैर्युक्ता: सुशीला च सुभर्त्रिता।।

मीन लग्न की जातिका तीखे नयन नक्श वाली, लघु और सुंदर नेत्र, मछलियों की तरह अत्यंत चंचला, धन-धान्य एवं सवारि आदि सुखों से युक्त, धर्मपरायणा, सुशील तथा पति संतति आदि सुखों से युक्त होती है।

ऐसी जातिका मध्यम कद, गोल चौड़ा चेहरा, सुंदर एवं संतुलित शरीर, मुलायम व नरम बाल, पुष्ट कंधे तथा आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी होती है। बाल्यकाल में दुर्बल किंतु आयु वृद्धि के साथ-साथ पुष्ट शरीर होगा, नेत्र कुछ उभरे हुए एवं चमकीले होते हैं। इस लग्न राशि का स्वामी गुरु होने से मीन लग्न राशि की लड़की अत्यंत बुद्धिमान, तीव्र स्मरण शक्ति, हंसमुख, भावुक व संवेदनशील, परिश्रमी, स्वाभिमानी, मिलनसार परंतु धार्मिक आस्था रखने वाली, सौम्य प्रकृति, दयालु एवं परोपकारी स्वभाव वाली, सेवा एवं आतिथ्य सत्कार करने में तत्पर होती है।

द्विस्वभाव लग्न राशि होने से मीन जातिका शीघ्रता से अपने मन की बात प्रकट नहीं कर पाती कई बार दूसरों के लिए उसे समझना कठिन हो जाता है। कई बार महत्वपूर्ण निर्णय करने में भी गहन चिंतन एवं विचार करने के कारण अत्यंत विलंब भी हो जाता है। परंतु जब किसी विषय पर सोच विचार के बाद निर्णय ले लेती है तो उस पर पूरी तन्मयता से अडिग रहती है। जलीय तत्व राशि होने से जातिका हर प्रकार की परिस्थितियों में स्वयं को ढाल लेने में सक्षम होगी। सरलहृदया, सेवाभावी, अध्ययनशील, दूसरों के मनोभावों को समझने में कुशल, धैर्यवान एवं क्षमाशील स्वभाव की होती है।

गुरु आकाशीय तत्व प्रधान होने से जातिका दूसरों के साथ सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने वाली, गायन, संगीत, साहित्य, लेखन, पठन, योग, दर्शन, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों में विशेष रुचि रखने वाली, गुणवान, अपने गुणों द्वारा परिवार एवं समाज में सम्मान पाने वाली तथा अपनी प्रतिष्ठा के प्रति विशेष सावधान रहती है। परिस्थितियों एवं अवसर अनुसार आचरण करने में निपुण होती है। गुरु प्रधानता के कारण व्यवहार कुशल परंतु दूसरों पर अधिकार जताने की प्रवृत्ति होती है। साथ ही अपने मित्रों के प्रति उदार एवं भावनात्मक दृष्टिकोण रखती है। इनमें पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत विशेषता होती है।

शिक्षा मीन जातिका की कुंडली में चंद्र, मंगल, गुरु, शुभस्थ हो तो जातिका व्यवसायिक विद्या जैसे कंप्यूटर, कॉमर्स, साहित्य, कानून, अकाउंट्स आदि क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर लेती है। वैसे भी मीन लग्न जातिका अध्ययनशील प्रकृति की होने के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल रहती है।

कैरियर एवं व्यवसाय मीन लग्न की जातिका को स्वाध्याय एवं पठन-पाठन के कार्यों के अतिरिक्त गायन, अभिनय, संगीत, साज-सज्जा, फैशन, श्रृंगार, सौंदर्य आदि विषयों में भी विशेष रूचि रहती है। वह शिक्षण, अध्यापन, कॉमर्स, कंप्यूटर, कढ़ाई-बुनाई, पत्रकारिता, समाचार पठन, फैशन डिजाइनिंग, इंटीरियर डेकोरेशन, हस्त कला एवं शिल्पकारी, धर्म प्रचारक, लेखन, कला, चिकित्सा, वकालत आदि जहां बौद्धिक योग्यता की विशेष आवश्यकता हो ऐसे कार्यों में विशेष सफल होने की संभावनाएं होती हैं। अधिक जानकारी के लिये मीन लग्न के जातक संबंधित हमारी पिछली पोस्ट पढ़ सकते है।

स्वास्थ्य एवं रोग यदि मीन लग्न की जातिका की कुंडली में गुरु, मंगल, चंद्र आदि ग्रह शुभ भावस्थ है तो जातिका का स्वास्थ्य लगभग अच्छा रहता है। तथा वह कम ही बीमार होती है। परंतु यदि कुंडली में गुरु, सूर्य, चंद्र, शनि, मंगल आदि ग्रह नीच आदि अशुभ अवस्था में हो तो जातिका को रक्त विकार, सिर पीड़ा, नेत्र, दांत, टांसिल, गले में दर्द या जोड़ों में दर्द, कफ विकार, खुजली,, एक्जिमा आदि चर्म रोग, हिस्टीरिया, कान के रोग का भय होता है। रोगों संबंधित अधिक जानकारी हेतु हमारी गत पोस्टों में लिखित पुरुष मीन जातक का भी अवलोकन कर सकते हैं।

प्रेम विवाह और वैवाहिक जीवन

प्रेम के संबंधों में मीन लग्न की जातिका अत्यंत भावुक और संवेदनशील होती है। बन-संवर कर रहना उसे अति प्रिय होता है। पुरुषों को अपनी और आकर्षित करने की इनमे में विशेष योग्यता होती है। करुणा एवं सहानुभूति की भावनाएं विशेष होती है। वह अपने मित्रों का दुख दर्द बांटने के लिए अपने निजी स्वार्थ को भी न्योछावर कर देती है। अपनी सहज मुस्कान एवं उन्मुक्त व्यवहार के कारण वह युवक युवतियों के लिए शीघ्र आकर्षण का केंद्र बन जाती है।

द्विस्वभाव राशि होने के कारण वह अपने प्रेमी या जीवनसाथी के चयन में जल्दबाजी नहीं करती बल्कि विशेष सोच विचार के बाद ही भावनात्मक संबंध जोड़ती है। जब मीन जातिका किसी प्रेमी या साथी से संबंध जोड़ लेती है तब पूरी निष्ठा ईमानदारी एवं समर्पण की भावना से जोड़ती है। अत्यधिक भावुक होने के कारण कभी-कभी प्यार में धोखा भी खा सकती है।

लग्नेश गुरु एवं सप्तमाधिपति बुध के कारण जीवन साथी के चुनाव में बाहरी व्यक्तित्व के साथ-साथ बौद्धिक एवं शैक्षणिक योग्यता को भी विशेष महत्व देती है। यदि जातिका की कुंडली में बुध, गुरु आदि ग्रहों की स्थिति अच्छी हो तथा भावी पति की जन्म कुंडली के साथ जातिका की कुंडली का परस्पर राशि, नक्षत्र एवं गुण मिलान भी ठीक प्रकार से किया गया हो तो जातक का वैवाहिक एवं दांपत्य जीवन मधुर एवं सुखमय रहता है। विवाह के बाद उसे मनचाहा पति, सुंदर आवास, वाहन एवं अन्य दांपत्य सुख प्राप्त होते हैं।

अनुकूल राशि मैत्री

मीन लग्न राशि की कन्या को मेष, मिथुन, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर लग्न राशि के जातकों के साथ विवाह या व्यापारिक संबंध स्थापित करने शुभ एवं लाभप्रद होते हैं। जबकि शेष अन्य लग्न राशि वालों के साथ संबंध साधारण या असामान्य रहते।

मीन लग्न के अंतर्गत दशान्तर्दशाओ का फल 

प्रत्येक लग्न में किसी ग्रह विशेष की दशा अंतर्दशा के फल में भिन्नता आ जाती है। मीन लग्न के जातक/जातिका की जन्मकुंडली में यदि गुरु, मंगल, चंद्र ग्रह शुभ हो तथा इनमें से किसी एक ग्रह की दशा या अंतर्दशा चल रही हो तो जातक/जातिका को अपनी दशा के सोची योजनाओं में कामयाबी, धन लाभ व उन्नति, विद्या में सफलता, व्यवसाय में लाभ व पदोन्नति, विवाह, संतान, भूमि, वाहन, आदि सुखों की प्राप्ति होती है अथवा ग्रह परिवार में किसी मांगलिक कार्य का आयोजन होता है। यदि उपरोक्त ग्रह नीच अशुभ आदि राशि में हो अथवा अरिष्ट भावों में पड़े हो तो यह ग्रह वांछित फल प्रदान नहीं कर पाते

यदि जन्म कुंडली में बुध, शनि या केतु आदि क्रूर ग्रह किसी अशुभ भाव में हो तो वह ग्रह विघ्नों के बाद सफलताएं, बनते कामों में विघ्न अड़चनें, पारिवारिक कलह क्लेश, आय के स्त्रोतों में रुकावटें, भाई बंधुओं के साथ मतांतर तथा आय कम व खर्च अधिक बढ़ जाते हैं। शुक्र शनि ग्रहों की दशा अंतर्दशा में धन हानि, मानसिक तनाव, घरेलू ,व्यवसायिक परेशानियां बढ़ जाती हैं। राहु केतु अपने भाव एवं राशि अनुसार फल प्रदान करते हैं।

शुभ एवं योगकारक ग्रह 

सूर्य षष्ठेश ग्रह होने से मीन लग्न में शुभ अशुभ दोनों अर्थात मिश्रित प्रभाव करेगा। इन लग्न के 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 9 , 10 एवं 11 भावों में प्रायः शुभाशुभ (मिश्रित) फल तथा अन्य भावो में अशुभ फल करता है।

चंद्र पंचमेश होने से मीन लग्न में प्रायः शुभफल प्रकट करता है। उच्च या बली होने की स्थिति में जातक मेधावी, उच्च शिक्षित, विद्वान, धनी, माता, स्त्री व पारिवारिक सुखों से युक्त होगा। कुंडली में 1, 2, 3, 5, 7, 9, 10 एवं 11 वे भाव में शुभ व अन्य भागों में सामान्य फल देता है।

मंगल धनेश व भाग्येश मंगल मीन लग्न में प्रायः शुभ फल प्रदान करता है। द्वितीय मारकेश भी होने से मंगल जातक को संघर्ष, तनाव एवं उत्तेजना भी देता है। मीन लग्न के 1, 3, 4, 10, 11 वे भाव में शुभ एवं 2, 5, 8 व 9 भावों में मिश्रित फल तथा 5, 6, 7 व बारहवें भाव में प्रायः अशुभ फल देता है।

बुध सुखेश व सप्तमेश होने से प्रायः शुभ फल प्रदान करता है। परंतु इसे यहां केंद्र स्वामित्व का दोष भी रहता है। नीच राशि में स्थित होने से उच्च विद्या में अड़चनें तथा स्वास्थ्य में कमी करता है। इसके अतिरिक्त 6 आठवें, बारहवें भाव में अशुभ फल ही होता है। जबकि अन्य भावो में प्रायः शुभ फल ही रहता है। शुभ होने पर स्त्री, विद्या व सुख साधनों में वृद्धि करता है। संगीत, गायन, आर्ट आदि ललित कलाओं को भी देता है।

गुरु मीन लग्न में लग्नेश व कर्मेश होने से गुरु अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे यहां लग्नेश होने से केंद्र आधिपत्य दोष नहीं लगता है। 3,6,8 ग्यारहवे एवं बारहवे भावो में अशुभ तथा शेष अन्य भागों में शुभ फलदाई होता है। शुभ होने की स्थिति में यह जातक को उच्च विद्या, पति एवं संतति सुख, धन संपदा, धार्मिक प्रवृत्ति, बौद्धिक योग्यता व उच्च प्रतिष्ठा देता है।

शुक्र मीन लग्न में शुक्र त्रिषडायपति अर्थात तीसरे व आठवें भाव का स्वामी होने से शुभ फलदायक नहीं माना जाता। परंतु लग्न, तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम भाव में उच्च एवं स्वराशिगत होने से स्त्री, धन संपदा, वाहन आदि सुखों की उपलब्धि करवाता है। जबकि 2, 6 व सातवें भाव में अशुभ फल तथा आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह भाव मिश्रित फल प्रदान करता है।

शनि मीन लग्न मे लाभेश एवं व्ययेश होने से प्रायः मिश्रित फल देता है। तृतीय, सप्तम, अष्टम, दशम, एकादश एवं व्यय भावो में प्रायः अशुभ फल प्रदान करता है। अन्य 1, 3, 4, 6 एवं नौवें भाव में मिश्रित फल प्रदान करता है।

राहु मीन लग्न में राहु 3, 4, 6, 7, 11 एवं 12 भाव में शुभाशुभ अर्थात मिश्रित फल देता है। जबकि 1, 2, 5, 9 एवं दसवे स्थानों पर अशुभ फल प्रदान करता है।

केतु 1, 2, 5, 6, 9, 10 एवं 12 वे भाव में मिश्रित फल, जबकि 3, 4, 7, 8 एवं 11 विभागों में प्रायः अशुभ कारक माना गया है।

कुछ उपयोगी उपाय 

शुभवार मीन लग्न के जातक/ जातिकाओ के लिए रविवार, सोमवार, मंगलवार, गुरुवार शुभ एवं भाग्य कारक दिन होते हैं। जबकि बुधवार, शुक्रवार तथा शनिवार मिश्रित प्रभाव रखते हैं।

शुभरंग लाल, पीला, गुलाबी, नारंगी सतरंगी क्रीम सफेद इत्यादि रंग शुभ होते हैं। हल्का हरा, निला मिश्रित या सामान्य फलदायक है। जबकि काला, भूरा, गहरा नीला अशुभ फलदाई होंगे।

शुभ रत्न पुखराज नग सवा 5 या सवा सात रति का सोने की अंगूठी में गढ़वा कर वीरवार को गंगाजल में धोकर शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए। धारण करते समय गुरु का बीज मंत्र कम से कम पांच माला पढ़ना आवश्यक है।

गुरु का बीजमंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:” उस दिन विधि अनुसार वीरवार का व्रत भी रखना चाहिए, गाय को चने की भीगोई हुई दाल सहित चारा डालना तथा पीला वस्त्र, केले, आम आदि फल, अनाज, पीले चावल, गुड़ आदि का दान करना शुभ एवं कल्याणकारी होगा। धार्मिक ग्रंथों का दान करना भी आपके लिए शुभ व कल्याणकारी रहेगा।

शुभ अंक 1,3,4 और 9 के अंक शुभ है जबकि 8 का अंक अशुभ होगा।

भाग्योन्नतिकारण वर्ष आयु का 28, 33, 37, 39, 42, 45, 48, 54, व 58 वा वर्ष शुभ और भाग्य उन्नति कारक रहता है।

सावधानी आपको संदेहशील प्रकृति से बचना चाहिए। दूसरों के प्रति आलोचनात्मक प्रवृत्ति बहुत अधिक स्वच्छंदता एवं भावुकता तथा अधिक स्वार्थपरता का भी यथा शक्ति त्याग करना चाहिए। तामसिक भोजन का त्याग तथा सात्विक एवं संतुलित भोजन आपकी मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए शुभ व कल्याणकारी होगा। चापलूसी करने वाले तथाकथित मित्रों से भी बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्वभाव में जल्दबाजी व उतावलापन भी आपके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। प्रभु की भक्ति ज्ञान एवं स्वाध्याय श्रेष्ठ पुस्तकों का पठन आपके जीवन के लिए अत्यंत कल्याणकारी होगा।

नोट जन्म कुंडली में किसी ग्रह के फल का निर्णय करते समय उस ग्रह के साथ अन्य ग्रह के योग एवं दृष्टि आदि को भी ध्यान में अवश्य रखना चाहिए

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