शाबरी कवचम Shabari Kavacham 

हमारे पुराणों के श्रीभृगु संहिता के सर्वारिष्ट निवारण खंड में इस अनुभूत सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र के एक साथ 40 पाठ 41 दिन तक लगातार करने की विधि बताई गई है। इसके अनुसार यह पाठ किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा या यंत्र के सामने बैठकर किया जा सकता है। इस पाठ के पूर्व दीप-धूप आदि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना फलदायी माना गया है। इस पाठ के अनुभूत और विशेष लाभ के लिए स्वाहा और नम: का उच्चारण करते हुए ‘घी (घृत) मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियां देना चाहिए। इस पाठ को करने से मनुष्य के जीवन की सभी बाधाओं का निवारण होता है।

अथ ध्यानम् 

ॐ नमो भगवते श्रीवीरभद्राय ।

विरुपाक्षी लं निकुंभिनी षोडशी उपचारिणी ।

वरुथिनी मांसचर्विणी ।

चें, चें, चें, चामलरायै ।

धनं धनं कंप कंप आवेशय ।

त्रिलोकवर्ति लोकदायै ।

सहस्त्रकोटिदेवानां आकर्षय आकर्षय ।

नवकोटी गंधर्वानां आकर्षय आकर्षय ।

हंसः, हंसः, सोहं, सोहं, सर्व रक्ष, मां रक्ष,भूतेभ्यो रक्ष ।

ग्रहेभ्यो रक्ष । पिशाचेभ्या रक्ष ।

शाकिनीती रक्ष, डाकिनीती रक्ष ।

अप्रत्यक्ष प्रत्यक्षारिष्टेभ्यो रक्ष, रक्ष, । महाशक्ति रक्ष । कवचशक्ति रक्ष । रक्ष ओजंवाल । गुरुवाल ।

ॐ प्रसह हनुमंत रक्ष । श्रीमन्नाथगुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयंभैरव ॥ सिद्धाढ्यं बटुकत्रय पदयुगं द्युतित्र्कंमं मंडल ॥ वैराटाष्टचतुष्टयं च नक्कं वैरावली पंचकं । श्रीमन्मालिनीमंत्रराजसहितं वंदे गुरोमंडलम् । इति ध्यानम्

अथ प्रार्थना 

ॐ र्हां, र्हीं, र्हृं, क्षां, क्षीं, क्षुं । कृष्णक्षेत्रपालाय नमः आगच्छ आगच्छ । बली सर्वग्रहशमन मम कार्यं कुरु कुरु स्वाहा । ॐ नमो ॐ र्हीं, श्रीं, क्लीं, ऐं, चक्रेश्र्वरी । शंख-चक्र गदा पद्मधारिणी । मम वांछित सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा। ॐ नमो कमलवदन मोहिनी सर्वजनवशकारिणी साक्षात् ।सूक्ष्मस्वरुपिणी यन्मम वशगा। ॐ सुरातुरा भवेयुः स्वाहा । गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्र्वरः । गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥ अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥ अरुणकिरण जालं रंजिता सावकाशा । विधृतजपमाला वीटिका पुस्तकहस्ता ।‌ इतरकरकराढ्या फुल्लकल्हार हस्ता । निवसतु हृदि बाला नित्यकल्याणशीला।

॥ अथ शाबरीकवचजपे विनियोगः ॥ 

श्री

॥ अथ शाबरीकवचपाठप्रारंभः ॥

ॐ सर्वविघ्ननाशाय । सर्वारिष्ट निवारणाय ।‌ सर्व सौख्यप्रदाय । बालानां बुद्धिप्रदाय । नानाप्रकारकधनवाहन भूमिप्रदाय ।मनोवांछितफलप्रदाय । रक्षां कुरु कुरुस्वाहा । ॐ गुरुवे नमः ।ॐ श्रीकृष्णाय नमः । ॐ बल भद्राय नमः । ॐ श्रीरामाय नमः । ॐ हनुमते नमः । ॐ शिवाय नमः । ॐ जगन्नाथाय नमः । ॐ बद्रिनारायणाय नमः। ॐ दुर्गादेव्यै नमः । ॐ सूर्याय नमः । ॐ चंद्राय नमः । ॐ भौमाय नमः । ॐ बुधाय नमः । ॐ गुरुवे नमः । ॐ भृगवे नमः । ॐ शनैश्र्वराय नमः । ॐ राहवे नमः । ॐ पुच्छनायकाय नमः । ॐ नवग्रह रक्षा कुरु कुरु नमः । ॐ मन्ये वरं हरिहरादय एवं दृष्ट्वा । दृष्टेषु हृदयं त्वयि तोषमेतिः ।

किं वीक्षितेन भवता भुवि अेन नान्यः कश्र्चित् मनो हरति नाथ भवानत एहि ।

ॐ नमः श्रीमन्बलभद्रजयविजय अपराजित भद्रं भद्रं कुरु कुरु स्वाहा ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥

सर्वविघ्नशांति कुरु कुरु स्वाहा ।

ॐ ऐं, र्हीं, क्लीं, श्री बटुकभैरवाय ।

आपदुद्धरणाय । महानभस्याय स्वरुपाय ।

दीर्घारिष्टं विनाशय विनाशय ।

नानाप्रकारभोगप्रदाय । मम सर्वारिष्टं हन हन ।‌ पच पच, हर हर, कच कच, राजद्वारे जयं कुरु कुरु । व्यवहारे लाभं वर्धय वर्धय । रणे शत्रुं विनाशय विनाशय । अनापत्तियोगं निवारय निवारय । संतत्युत्पत्तिं कुरु कुरु । पूर्ण आयुः कुरु कुरु ।स्त्रीप्राप्तिं कुरु कुरु । हुं फट् स्वाहा ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते विश्र्वमूर्तये नारायणाय ।श्रीपुरुषोत्तमाय रक्ष रक्ष ।युष्मदधीनं प्रत्यक्षं परोक्षं वा । अजीर्ण पच पच । विश्र्वमूर्ते अरीन् हन हन । एकाहिकं द्व्याहिकं, त्र्याहिकं, चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय । चतुरधिकान्वातान् अष्टादशक्षयरोगान्, अष्टादशकुष्टान् हन हन। सर्वदोषान् भंजय भंजय । तत्सर्वं नाशय नाशय । शोषय शोषय, आकर्षय आकर्षय ।मम शत्रुं मारय मारय ।

उच्चाटय उच्चाटय, विद्वेषय विद्वेषय ।

स्तंभय स्तंभय, निवारय निवारय ।

विघ्नान् हन हन । दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय विध्वंसय, विद्रावय विद्रावय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हन हन । पर विद्या छेदय छेदय । चतुरशीतिचेटकान् विस्फोटय नाशय नाशय । वातशूलाभिहत दृष्टीन्। सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पदान । अपरे बाह्यांतरा दिभुव्यंतरिक्षगान् । अन्यानपि कश्र्चित् देशकालस्थान् । सर्वान् हन हन । विषममेघनदीपर्वतादीन्। अष्टव्याधीन् सर्वस्थानानि रात्रिदिनपथग चोरान् वशमानय वशमानय । सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय । परसैन्यं विदारय विदारय परचक्रं निवारय निवारय । दह दह रक्षां कुरु कुरु

। ॐ नमो भगवते ॐ नमो नारायण हुं फट्।

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इस कवच का पाठ मंगलवार, शुक्रवार या देवी के सर्वोत्तम दिन से शुरू करना चाहिए। संकल्प को यथासंभव खाली करें। माँ, आज से मैं इस कवच का पाठ करना शुरू कर रहा हूँ। आप मुझे विपत्तियों, चिंताओं, क्लेशों, शत्रुओं, तपस्वियों, दुखों, गरीबी से बचा रहे हैं। आप मेरी सभी इच्छाओं को पूरा करें। इसलिए उसने थोड़ा पानी डाला और हाथ की हथेली पर बैठ जाएं

इस को पूरी निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। मेरा मतलब है, हम जिस कार्य के लिए जाप कर रहे हैं। वे कार्य सफल हैं। अनुष्ठान के सामने देवी की प्रतिमा रखकर पूजा करनी चाहिए। सुंदर हार झुंड वाला। हुद, कुमकुम, गंध, अक्षत, पुष्प प्रवाहित होते हैं। नैवेद्य, आरती करने के बाद कवच का पाठ करना चाहिए। अनुष्ठान छड़ी को दिन में 11, 17, 2 बार 21 बार पाठ किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण सिद्धि के लिए अनुष्ठान प्रतिदिन 33,5,111 बार किया जाना चाहिए। इस कवच के 10 वें भाग पर ग्रहण का पाठ करना चाहिए।

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