Sheetala Puja: हिंदू धर्म में शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व है. शीतला षष्ठी व्रत का पालन महिलाएं करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से दैहिक और दैविक ताप से मुक्ति मिलती है। साथ ही यह व्रत पुत्र प्रदान करने वाला और सौभाग्य देने वाला होता है। जो महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखती हैं उनके लिए ये व्रत उत्तम कहा गया है। साथ ही इस व्रत को करने से मन शीतल रहता है। इसके अलावा चेचक से भी मुक्ति मिलती है।
शीतला षष्ठी व्रत विधि Sheetla Shashti Method in Hindi
शीतला षष्ठी व्रत के दिन व्रत रखने वालों को जल्दी उठाना चाहिए। इसके बाद नहा-धोकर शीतला माता की पूजा करें। इस दिन गर्म खाद्य-पदार्थ का सेवन नहीं किया जाता है। साथ ही गर्म पानी से स्नान करना भी वर्जित है। इसलिए इसका ध्यान रखें। शीतला षष्ठी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन चूल्हे का पूजन किया जाता है। पूजा के लिए सभी नैवेद्य या भोग एक दिन पहले ही बना लेना चाहिए। लकड़ी के पटरे या चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर, उस पर शीतला माता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
स्वयं आसन पर बैठकर शीतला माता के चरणों को धोने के लिए जल अर्पित करें तदुपरान्त आचमन करने के लिए जल अर्पित करें और अन्त में स्नान लिए जल अर्पित करें।
मन्त्रोच्चारण के साथ वस्त्र अर्पित करें
इदं वस्त्र समर्पयामि,
ॐ श्रीं शीतलायै नमः
इसके बाद चंदन और अक्षत का तिलक अर्पित करें। फिर पुष्प और पुष्पमाला अर्पित करें। इसके बाद शीतला माता को धूप-दीप दिखाएँ। भोग में जो बासा कल रात बनाया हो उस भोजन का भोग अर्पित करें। इसके बाद शीतला षष्ठी व्रत की कथा सुनें-सुनाएँ। कथा के बाद शीतला माता की आरती करें। पूजा के बाद दोनों हाथ जोड़कर शीतला माता से क्षमा प्रार्थना करते हुए कहें
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥
मन्त्रहीन क्रियाहींन भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥
शीतला षष्ठी महत्व Sheetala Shashti Significance in Hindi
पौराणिक मान्यता के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए शीतला षष्ठी व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस व्रत के प्रभाव से निसंतान दंपत्ति के घर शीघ्र किलकारियां गूंजती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. शीतला षष्ठी व्रत साधक को दैहिक और दैविक ताप से मुक्त करता है. देवी शीतला के आशीर्वाद से रोग-विकारों से मुक्ति मिलती है. चेचक जैसे गंभीर रोग खत्म हो जाते हैं.
शीतला षष्ठी पूजा के नियम Sheetala Shashti Puja Niyam in Hindi
शीतला षष्ठी के दिन ध्यान रखें कि गर्म खाद्य-पदार्थ का सेवन भूलकर भी न करें. गर्म पानी से स्नान भी न करें. शीतला षष्ठी पर ऋतु शीतला षष्ठी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है. एक दिन पहले रात में ही सारा भोजन हलवा, गुलगुले, पुए, चावल, रेवड़ी आदि तैयार करके रख लेना चाहिए.
शीतला षष्ठी व्रत कथा Sheetla Shashti fasting Katha in Hindi
पौराणिक काल की बात है एक गांव में एक वृद्ध ब्राह्मण दम्पति रहते थे। उनके सात पुत्र और पुत्रवधु थी, किन्तु दुर्भाग्यवश सभी पुत्र नि:संतान थे। एक वृद्धा ने उस ब्राह्मणी को कहा कि वे अपने सभी पुत्रवधुओं सहित शीतला माता का षष्ठी व्रत करें। उस वृद्धा की बात मानकर ब्राह्मणी ने अपनी सभी पुत्रवधुओं सहित शीतला माता का षष्ठी व्रत किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसकी सभी पुत्रवधुओं को संतान का सुख प्राप्त हुआ। भूलवश एक बार ब्राह्मणी तथा उसकी बहुओं ने शीतला व्रत विधि के विपरीत गर्म जल से स्नान कर लिया तथा आग जलाकर व्रत के दिन भोजन बनाकर भोजन कर लिया। इससे शीतला माता रूष्ठ हो गईं और उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा और उसकी आँख खुल गई। जागने पर उसने देखा कि उसके परिवार के सभी सदस्य मृत हो चुके हैं।
यह देखकर ब्राह्मणी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने उस ब्राह्मणी को कहा कि यह सब शीतला माता का प्रकोप है क्योंकि तुमने शीताला षष्ठी के व्रत में गर्म जल से स्नान तथा गर्म भोजन कर व्रत भंग किया है। यह सुनकर वह रोती हुई घने वन की ओर जाने लगी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया दिखाई पड़ी, वह बुढ़िया अग्नि की ज्वाला में तड़प रही थी।
बुढ़िया ने ब्राह्मणी से कहा कि इस जलन को दूर करने के लिए उसके शरीर पर दही का लेप करें। तब उस ब्राह्मणी ने कहीं से दही लाकर बुढ़िया के शरीर पर लगाया जिससे उस बुढ़िया की जलन समाप्त हो गई। तब उस ब्राह्मणी ने उस बुढ़िया रूपी माता से अपने भूल की क्षमा मांगी और अपने परिवार को पुन: जीवित करने की याचना की।
शीतला माता उस ब्राह्मणी का पश्चाताप देखकर उससे कहा कि वह अपने घर जाए और परिवार के सभी सदस्य पर दही का लेप करे। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। शीतला माता की कृपा से ब्राह्मणी के परिवार के सभी सदस्य जीवित हो गए। उस दिन से ही इस व्रत को संतान की प्राप्ति तथा दीर्घायु के लिए किया जाता है।
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।। दोहा ।।
जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान।
होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥
माता शीतला स्तुति मंत्र
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता ।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ।।
श्री शीतला चालीसा Shree Sheetla Chalisa
।। चौपाई ।।
जय जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती ।
पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
विस्फोटक सी जलत शरीरा ।
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा ।
सबके काहे आवही कामा ॥
शोक हरी शंकरी भवानी ।
बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
सूचि बार्जनी कलश कर राजै ।
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसट योगिन संग दे दावै ।
पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
नंदिनाथ भय रो चिकरावै ।
सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
धन्य धन्य भात्री महारानी ।
सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
ज्वाला रूप महाबल कारी ।
दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत ।
रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
हाहाकार मचो जग भारी ।
सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा ।
कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो ।
मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा ।
मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
अब नही मातु काहू गृह जै हो ।
जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है ।
भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
अब भगतन शीतल भय जै हे ।
विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥
श्री शीतल ही बचे कल्याना ।
बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
कलश शीतलाका करवावै ।
वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
विस्फोटक भय गृह गृह भाई ।
भजे तेरी सह यही उपाई ॥
तुमही शीतला जगकी माता ।
तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
तुमही जगका अतिसुख सेवी ।
नमो नमामी शीतले देवी ॥
नमो सूर्य करवी दुख हरणी ।
नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी ।
दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
श्री शीतला शेखला बहला ।
गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
मात शीतला तुम धनुधारी ।
शोभित पंचनाम असवारी ॥
राघव खर बैसाख सुनंदन ।
कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
सुनी रत संग शीतला माई ।
चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
कलका गन गंगा किछु होई ।
जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
हेत मातजी का आराधन ।
और नही है कोई साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
कोढी निर्मल काया धारे ।
अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
बंधा नारी पुत्रको पावे ।
जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
सुंदरदास नाम गुण गावत ।
लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
या दे कोई करे यदी शंका ।
जग दे मैंय्या काही डंका ॥
कहत राम सुंदर प्रभुदासा ।
तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पूर मम बासा ।
प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
अब विलंब भय मोही पुकारत ।
मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
बड़ा द्वार सब आस लगाई ।
अब सुधि लेत शीतला माई ॥
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।
सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।
जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा समाप्त ॥
श्री शीतलाष्टक स्तोत्र
श्रीगणेशाय नमः
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः शीतली देवता लक्ष्मी बीजम् भवानी शक्तिः सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः ।।
ईश्वर उवाच
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम्।१।
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्।।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ।२।
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः।।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।३।
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।४।
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ।५।
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी।६।
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ।७।
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।८।
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ।९।
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।१०।
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।११।
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।१२।
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ।१३।
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते।१४।
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै।१५।
।।श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं ।।
माता शीतला जी की आरती Mother Sheetla’s Aarti in Hindi
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता । जय
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता । जय
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता । जय
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता । जय
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता । जय
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता । जय
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता । जय
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता । जय
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता । जय
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता । जय
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