ज्योतिष में त्रिदोषों का विवरण: वात, पित्त और कफ की समस्या से हैं परेशान तो अपनाएं ये आयुर्वेदिक उपाय,
ज्योतिष एवं त्रिदोष आयुर्वेद का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र यह है कि सभी रोगों का मुख्य कारण शरीर में विदेशी तत्व का संचय है। इन तत्वों के संचय से शरीर में त्रिदोष का संतुलन बिगड़ जाता है। यह त्रिदोष हैं- वात-पित्त और कफ। त्रिदोषों का संतुलन बिगडऩे से शारीरिक एवं मानसिक रोग होते हैं।
वैदिक काल में ज्योतिष और आयुर्वेद एक ही थे। ग्रह एवं राशियों का गहरा संबंध त्रिदोष के साथ है। यदि ज्योतिष और आयुर्वेद के संबंध को गहराई से समझा जाए एवं उन सिद्धांतों का प्रयोग किया जाए तो बहुत बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
Pitta वात
वात सबसे महत्वपूर्ण है तथा अन्य दो दोषों को नियंत्रित करती है। वात में स्थिति परिवर्तन करने की क्षमता होती है। जिस ग्रह का वात पर नियंत्रण है वह है शनि। बुध का सभी दोषों पर नियंत्रण है अत: वात पर इनका भी नियंत्रण माना जाता है। वात रजोगुणी, हल्की, सूखी एवं ठण्डी होती है। वात शरीर में जमा होती है यथा हड्डियों में जोडों में, मस्तिष्क में। वात स्नायुतंत्र को प्रभावित करती है। ज्योतिष में स्नायुतंत्र के कारक बुध हैं, शनि-बुध का संबंध स्नायु तंत्र की बीमारियों को जन्म देता है। वात के कारण होने वाले पागलपन को वातोन्माद कहते हैं। वात ही गठिया रोग का मुख्य कारण है। ज्योतिष में गठिया रोग के कारक शनि हैं। यदि जन्म पत्रिका में शनि पीडि़त हो तो व्यक्ति वात और गठिया की समस्याओं से पीडि़त रहता है।
Pitta पित्त
पित्त का संबंध अग्नि तत्व से है। ज्योतिष में पित्त का संबंध सूर्य से है। पित्त गर्म, हल्की और सतोगुणी है। आग के समान इसमें भेदने की क्षमता है। पित्त पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। यह भोजन के पोषक तत्व को उस रूप में परिवर्तित करता है जो हमारे शरीर द्वारा अवशोषित कर लिया जाए। यह पोषक तत्व ही हमारी जीवनी शक्ति का ईंधन है। सूर्य जो पित्त के कारक हैं वहीं प्राण के कारक हैं। जन्मपत्रिका में बलवान सूर्य ही अच्छा स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता देते हैं। शरीर में पित्त का असंतुलन पाचन क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और बुखार, संक्रमण आदि गंभीर समस्याओं को जन्म देता है।
Kaph कफ
कफ का संबंध जल तत्व से है। कफ के कारक ग्रह चन्द्रमा हैं। कफ ठंडी गतिहीन एवं तमोगुणी होती है। यह वात के साथ या उसके प्रभाव में गति करता है। कफ का नियंत्रण शरीर में उपस्थित जल, प्लाज्मा, वसा इत्यादि पर है। ज्योतिष में इन सभी विषयों के कारक चन्द्रमा हैं। कफ जनित सभी बीमारियों पर चन्द्रमा का आधिपत्व है।
त्रिदोष के लिए आयुर्वेदिक उपाय
स्वामी रामदेव के अनुसार वात पित्त और कफ को त्रिदोष कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष में 28 रोग, पित्त रोग में 40 रोग और वात दोष में 80 प्रकार के रोग होते हैं। जहां कफ की समस्या छाती के ऊपरी हिस्से में होती है। वहीं पित्त की समस्या छाती के नीचे और कमर में होती है। इसके अलावा वात की समस्या कमर के नीचे हिस्से और हाथों में होती है। इस त्रिदोष की समस्या को आयुर्वेदिक उपायों के द्वारा काफी हद तक सही किया जा सकता है।
वात की समस्या लिए
1. गिलोय का सेवन करने से फायदा मिलेगा। इसके लिए सुबह गिलोय का जूस या फिर काढ़ा पी सकते हैं।
2. अष्टवर्ग का सेवन करे।
3. मेथी अंकुरित करके खाएं
4. सुबह काली पेट लहसुन का सेवन करे। अगर आपको इसकी तासीर गर्म सह नहीं पाते हैं तो रात को पानी में बिगोकर इसका सेवन करे। इसके अलावा थोड़ा सा घी में भुनकर सेंधा नमक डालकर खा सकते हैं।
कफ की समस्या के लिए
1. त्रिकटू का सेवन करें। इसके लिए सौंठ, पिपल और काली मिर्च को बराबर मात्रा में लेकर पाउडर बना लें। इसके साथ ही इसमें सीतोपलादि और श्वसारि का सेवन करे।
2. रात को सोने से पहले दूध में हल्दी, शिलाजीत और च्यवनप्राश को डालकर सेवन करे।
पित्त की समस्या लिए
व्हीटग्रास के साथ एलोवेरा और लौकी का जूस पिएं। इसके अलावा आप चाहे तो लौकी का सूप पी सकते हैं।
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