उभय मार्तण्ड सप्तमी व्रत विधि महात्मय एवं फल
12 मासों की उभय सप्तमी का फल
भगवान श्रीकृष्ण बोले- महाराज अब मैं सप्तमी-कल्प का वर्णन करता हूँ। आप इसे प्रीतिपूर्वक सुनें माघ महीने की शुक्ला सप्तमी को संकल्पकर भगवान् सूर्य का वरुणदेव नाम से पूजन करे। अष्टमी के दिन तिल, पिष्ट, गुड़ और ओदन ब्राह्मणों को भोजन कराये, ऐसा करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है। फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को भगवान सूर्य का पूजन करने से वाजपेय-यज्ञ का फल प्राप्त होता है। चैत्र शुक्ला सप्तमी में वेदांशु नाम से सूर्य पूजन करने से उक्थ नामक यज्ञ के समान पवित्र फल प्राप्त होता है वैशाख के शुक्ल पक्षकी सप्तमी को धाता नाम से पूजा करने से पशुबन्ध-याग के पुण्य के समान फल प्राप्त होता है।
ज्येष्ठ मास की सप्तमी को इन्द्र नाम से सूर्य की पूजा करने से वाजपेय-यज्ञ का दुर्लभ फल प्राप्त होता है। आषाढ़ मास की सप्तमी को दिवाकर की पूजा करने से बहुत सुवर्ण की दक्षिणा वाले यज्ञ का फल प्राप्त होता है। श्रावण की सप्तमी को मातापि (लोलार्क)-को पूजने से सौत्रामणि याग का फल प्राप्त होता है। भाद्रपद मास में शुचि नाम से सूर्य का पूजन करे तो तुलापुरुष-दान का फल प्राप्त होता है। आश्विन शुक्ला सप्तमी को सविता की पूजा करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।
कार्तिक शुक्ला सप्तमी में सप्तवाहन दिनेश की पूजा करने से पुण्डरीक-याग का फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी में भानु की पूजा करने से दस राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। पौष मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भास्कर की पूजा करने से अनेक यज्ञों का फल मिलता है । इसी प्रकार प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भी उन-उन नामों से पूजा करनी चाहिये।
महाराज इस प्रकार एक वर्ष तक व्रत और पूजन कर उद्यापन करे। पवित्र भूमिपर एक हाथ, दो हाथ अथवा चार हाथ रक्त चन्दन का मण्डल बनाकर उसमें सिंदूर और गेरु का सूर्यमण्डल बनाये । कमल आदि रक्तपुष्पों, शल्ल की वृक्ष के गोंद आदि निर्मित धूप तथा अनेक प्रकार के नैवेद्यों से भगवान् सूर्य का पूजन करे। अन्न तथा स्वर्ण से भरे कलशों को उनके सामने स्थापित करे। फिर अग्निसंस्कार कर तिल, घृत, गुड़ और आक की समिधाओं से ‘आ कृष्णेन०’ (यजु० ३३ ४३) इस मन्त्र एक हजार आहुति दे । अनन्तर द्वादश ब्राह्मणों को रक्त वस्त्र, एक-एक सवत्सा गौ, छतरी, जूता, दक्षिणा और भोजन देकर क्षमा प्रार्थना करे। बाद में स्वयं भी मौन होकर भोजन करे।
इस विधि से जो सप्तमी का व्रत करता है, वह नीरोग, कुशल वक्ता, रूपवान् और दीर्घायु होता है। जो पुरुष सप्तमी के दिन उपवास कर भगवान् सूर्य का दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर सूर्यलोक में निवास करता है। यह उभय सप्तमी व्रत सम्पूर्ण अशुभों को दूर कर आरोग्य और सूर्यलोक प्राप्त कराने वाला है, ऐसा देवर्षि नारद का कहना है।
उभय मार्तण्ड सप्तमी व्रत विधि एवं फल
सुमन्तु मुनि ने कहा-राजन अब मैं आपको धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इस चतुर्वर्ग की प्राप्ति कराने वाले भगवान् सूर्य के उत्तम व्रत को बतलाता हूँ। उभय पक्ष की सप्तमियों को जो शालि (धान) गेहूँ के आटे से बने पक्वान तथा दूध का रात्रि में भोजन करता है और जितेन्द्रिय रहता है, सत्य बोलता है तथा दिनभर उपवास करता है, तीनों संध्याओं में भगवान सूर्य तथा अग्नि की उपासना करता है, सभी भोग पदार्थों का परित्याग कर भूमिपर शयन करता है,
मास बीतने पर सप्तमी को घृतादि के द्वारा भगवान् सूर्य को स्नान कराता है तथा उनकी पूजा करता है, नैवेद्य में मोदक, पका दूध तथा पक्वान्न निवेदित करता है, आठ ब्राह्मणों को भोजन कराता है और भगवान को कपिला गाय निवेदित करता है, वह कोटि सूर्यों के समान देदीप्यमान उत्तम विमान में आरूढ होकर भगवान अंशुमाली के परम स्थान को प्राप्त करता है। कपिला गौ के तथा उसकी संततियों के शरीर में जितने रोम हैं, उतने हजार युग वर्षों तक वह सूर्यलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। अपने इक्कीस कुलों के साथ वह यथेच्छ भोगों का उपभोग कर अन्त में ज्ञानयोग का समाश्रयण कर मुक्त हो जाता है।
राजन इस प्रकार मैंने आपको इस संसार-समुद्र से पार उतारने वाले सौरधर्म में मोक्ष-क्रम के उपाय बतलाये। यह विद्वानों के लिये समाश्रयणीय है। इसी प्रकार अन्य महीनों में (माघ से मार्गशीर्ष तक) निर्दिष्ट नियमों का पालन करते हुए व्रत और भगवान् सूर्य की पूजा करने से विभिन्न कामनाओं की पूर्ति होती है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है ।
कुरुनन्दन अहिंसा, सत्य-वचन, अस्तेय, शान्ति, क्षमा, ऋजुता, तीनों कालों में स्नान तथा हवन, पृथ्वी-शयन, रात्रि भोजन इनका पालन सभी व्रतों में करना चाहिये। इन गुणों का आश्रयणकर उत्तम व्रत का आचरण करनेवाले व्यक्तिके सभी पाप और भय नष्ट हो जाते हैं एवं रोगों का नाश हो जाता है और सभी कामनाओं के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार का सूर्यव्रती व्यक्ति अमित तेजस्वी होकर सूर्यलोक को प्राप्त कर लेता है।
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