वरद विनायक तिल चतुर्थी महात्म्य विधि एवं कथा Varada Vinayaka Til Chaturthi Mahatmya Ritual and Story 

प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थिया पड़ती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है। शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है।

भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शात्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

भगवान श्री गणेश का एक नाम वरद भी है जो सदैव भक्तों को भय मुक्ति और सुख समृद्धि का आशीर्वाद होता है। वरद विनायक (तिल कुंद) श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है. इस दिन दान करने का अधिक महत्व होता है. इस दिन गणेश भगवान को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है. गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला तथा विघ्नहर्ता माना जाता है. जो भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं उनके घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है।

गणेश भगवान का जन्मदिन 

शिव रहस्य ग्रंथ के अनुसार आदिदेव भगवान गणेश का जन्म माघ कृष्ण चतुर्थी को ही हुआ था। पूर्वांचल एवं दक्षिण भारत में इस दिन गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। व्रत करने वाले भक्तों पर श्रीगणेश की कृपा बनी रहती है। विनायक तिल चतुर्थी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के जीवन के सभी कष्टों का भगवान श्री गणेश निवारण करते हैं।

गणेश जी से जुड़े पौराणिक तथ्य 

1. किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं किया जाता है। यहाँ तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश’ एक मुहावरा बन गया है। शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है।

2. गणेश जी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति जी के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

3. शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है। जिससे गणपति जी की महत्ता साफ़ पता चलती है।

4. ‘गण’ का अर्थ है – वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईश’ का अर्थ है – स्वामी। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें ‘गणेश’ कहते हैं।

5. शिवजी को गणेश जी का पिता, पार्वती जी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएँ) को पत्नियाँ, क्षेम व लाभ को गणेश जी का पुत्र माना गया है।

6. श्री गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं; जो इस प्रकार हैं: 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।

7. गणेश जी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई। ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि यह कार्य गणेश जी से करवाया जाए।

8. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरुप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

गणेश तिल चतुर्थी व्रत विधि Ganesh Til Chaturthi fasting method in Hindi 

सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. उसके उपरान्त एक स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान भगवान गणेश की धूप-दीप आदि से आराधना करनी चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. फल, फूल, अक्षत, रौली, मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान गणेश को घी से बनी वस्तुओं या लडडूओ का भोग लगाना चाहिए।

इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करने के बाद उसी समय गणेश जी के मंत्र

 “उँ गणेशाय नम:” का 1008 बार जाप करना चाहिए. इसी के साथ गणेश गायत्री मंत्र –

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

का जाप करते हुए पूजन करना चाहिए। संध्या समय में कथा सुनने के पश्चात गणेश जी की आरती करनी चाहिए. इससे आपको मानसिक शान्ति मिलने के साथ आपके घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होगी।

गणेश तिल चतुर्थी पूजा की विधि Ganesh Til Chaturthi method of worship in Hindi 

जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। पूजा के लिए ईशान दिशा का होना शुभ माना गया है। गणेश जी की प्रतिमा और चित्र को स्थापित करना चाहिए।

भगवान श्री गणेश जी पूजा में दूर्वा का उपयोग अत्यंत आवश्यक होता है। इसका मुख्य कारण है की दुर्वा (घास) भगवान को अत्यंत प्रिय है।

भगवान गणेश के सम्मुख ऊँ गं गणपतयै नम: का मंत्र बोलते हुए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए।

इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए।

कपूर, घी के दीपक से आरती करनी चाहिए।

भगवान को भोग लगाना चाहिए. तिल और गुड़ से बने लडडू का भोग लगाना चाहिए और उस प्रसाद को सभी में बांटना चाहिए।

व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या समय गणेश जी की पुन: पूजा अर्चना करनी चाहिए. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

इस दिन दान का भी विशेष शुभ फल मिलता है। इसलिए इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, गुड़, तिल इत्यादि वस्तुओं का दान करना चाहिए. इस प्रकार विधिवत भगवान श्रीगणेश का पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती है।

गणेश तिल चतुर्थी षोडशोपचार पूजा विधि Ganesh Til Chaturthi Sixteen Upacara Puja Vidhi in Hindi 

इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश विनायक तिल चतुर्थी व्रत कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए) शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र, जनेऊ, मधुपर्क, सुगंध, लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर, अक्षत(चावल), फूल, माला, बेलपत्र, दूब, शमीपत्र, गुलाल, आभूषण, सुगन्धित तेल, धूपबत्ती, दीपक, प्रसाद, फल, गंगाजल, पान, सुपारी, रूई, कपूर।

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -और आवाहन करें –

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं ।

उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ।।

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव ।

यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ।। 

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें – 

अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ।।

आसन-रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम । 

आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ।। 

पाद्य (पैर धुलना) 

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम ।

पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ।।

अर्घ्य (हाथ धुलना) 

अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :।

करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ।। 

आचमन

सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं । 

आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ।। 

स्नान

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।

स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ।।

दूध से स्नान 

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम । 

पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ।। 

दही से स्नान 

पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं । 

दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ।। 

घी से स्नान 

नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं । 

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।। 

शहद से स्नान 

तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः । 

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।। 

शर्करा (चीनी) से स्नान 

इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम । 

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।। 

पंचामृत से स्नान 

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं । 

पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।। 

शुध्दोदक (शुद्ध जल) से स्नान 

मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम । 

तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।। 

वस्त्र

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे । 

मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ।। 

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा)

सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : । 

वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ।। 

यज्ञोपवीत

नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम । 

उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ।। 

मधुपर्क

कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः । 

मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ।। 

गन्ध 

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ।। 

रक्त (लाल) चन्दन 

रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम । 

मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ।। 

रोली

कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम । 

कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ।। 

सिन्दूर 

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् । 

शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ।। 

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः । 

माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ।। 

पुष्प 

पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: । 

पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ।। 

पुष्प माला 

माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो । 

मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ।। 

बेल का पत्र 

त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : । 

तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : । 

दूर्वा

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि । 

सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ।। 

दूर्वाकर

दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम । 

आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:।। 

शमीपत्र

शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका । 

धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।। 

अबीर गुलाल 

अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च । 

अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ।। 

आभूषण

अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान । 

गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ।। 

सुगंध तेल 

चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: । 

वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ।। 

धूप

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : । 

आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ।। 

दीप

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया । 

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ।। 

नैवेद्य

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम । 

उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ।। 

मध्येपानीय

अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या । 

 त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ।। 

ऋतुफल

नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम । 

कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ।। 

आचमन

गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन । 

आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ।

अखंड ऋतुफल 

इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव । 

तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ।

ताम्बूल पूंगीफलं 

पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम । 

एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ।।

दक्षिणा (दान)

हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: । 

अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ।। 

आरती

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च । 

त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ।। 

पुष्पांजलि

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च । 

पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ।। 

प्रार्थना

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक: 

भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ।। 

अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम कहकर प्रणाम कर आरती के लिए खड़े हो जाये।

श्री गणेश जी की आरती 

जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा ।

माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ।।

एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी ।

मस्तक पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी ।। जय …

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया ।। जय …

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा ।। जय …

दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी ।

कामना को पूरा करो जग बलिहारी।। जय …

अर्घ्य अर्पित करने की विधि 

तिथि की अधिष्ठात्री देवी तथा रोहिणीपति चंद्रमा को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश-पूजन के पश्चात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। गणेश पुराण के अनुसार, चंद्रोदय काल में गणेश के लिए तीन, तिथि के लिए तीन और चंद्रमा के लिए सात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इस व्रत में तृतीया तिथि से युक्त चतुर्थी तिथि ग्राह्य है। तृतीया के स्वामी गौरी माता और चतुर्थी के स्वामी श्रीगणेश जी हैं। व्रत तोड़ने के बाद महिलाओं का शकरकंदी खाने की परंपरा भी है।

पानी की छींटें से बचें 

सकट चौथ व्रत के दिन जब आप चांद के अर्घ्य दे रही हों उस दौरान महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चांद को अर्पित किए जा रहे जल के छींटें आपके पैर या शरीर पर बिलकुल न पड़ें।

गणेश तिल चतुर्थी व्रत दान 

इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लडडूओ का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लडडओ के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है।

वरद विनायक (तिल) चतुर्थी व्रत कथा 

गणेश चतुर्थी के संबंध में एक कथा जग प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती के मन में ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे में वे अपने मैल से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भरती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। परंतु जाने से पहले माता बालक को आदेश देती हैं कि किसी परिस्थिति में किसी को भी कंदरा में प्रवेश न करने देना।

बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। कुछ समय बीत जाने के बाद वहां भगवान शिव पहुंचते हैं। शिव जैसे ही कंदरा के भीतर जाने के लिए आगे बढ़ते हैं बालक उन्हें रोक देता है। शिव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन वह उनकी एक न सुना, जिससे क्रोधित हो कर भगवान शिव अपनी त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।

इस अनिष्ट घटना का आभास माता पार्वती को हो जाता है। वे स्नान कर कंदरा से बाहर आती हैं और देखती है कि उनका पुत्र धरती पर प्राण हीन पड़ा है और उसका शीश कटा है। यह दृष्य देख माता क्रोधित हो जाती हैं जिसे देख सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का शीश ले आओ जिसकी माता का पीठ उस बालक की ओर हो। गण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं

शिव गज के शीश को बाल के धड़ जोड़कर उसे जीवित करते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिव से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि कोई भी मांगलिक कार्य करने से पूर्व गणेश की पूजा करना अनिवार्य होगा। यदि ऐसा कोई नहीं करता है तो उसे उसके अनुष्ठान का फल नहीं मिलेगा।

गणेश जी की आरती Ganesh ji ke aarti

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,

माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,

लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।

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