जानिए क्यों किया जाता है माता लक्ष्मी के 8वें स्वरूप वरलक्ष्मी की पूजा ? जानें वरलक्ष्मी पूजा विधि महत्व और कथा
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के दसवें दिन धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी के वरलक्ष्मी स्वरुप की पूजा की जाती है। देवी वरलक्ष्मी, माता महालक्ष्मी का ही एक रूप है, माता वरलक्ष्मी का रूप वरदान देने वाला है और माँ अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। माता के इस व्रत श्री सूक्त का पाठ करना चाहिये और माता के सम्मुख अखंड चौबीस घंटे घी का दीपक जलाना चाहिये। साथ ही इस दिन श्री विष्णुसहस्त्रनाम और हरिवंश पुराण का पाठ भी किया जाता है। इस रूप में वर का अर्थ है वरदान और लक्ष्मी का अर्थ है वैभव और संपत्ति, माँ वरलक्ष्मी की कृपा से भक्तों की सभी इच्छायें पूर्ण होती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत या वरमहालक्ष्मी व्रत को वर लक्ष्मी नॉम्बू भी कहा जाता है। यह व्रत विशेष तौर से दक्षिण और पश्चिम भागों में मनाया जाता है इसमें स्त्रियां व्रत करती हैं, पूजन करती हैं, व मां लक्ष्मी जी की उपासना करती हैं और एक त्यौहार के रूप में मनाती हैं ।
ऐसी मान्यता है कि, श्रावण में पड़ने वाले जो शुक्रवार का दिन होता है वह मां लक्ष्मी का विशेष दिन होता है। यूँ तो हर शुक्रवार माता लक्ष्मी का ही दिन माना जाता है इस विशेष दिन में, जो सावन का दिन होता है उसमें मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के घर में खुशियां आती हैं क्योंकि यह समय धन-धान्य से भरपूर होता है । वातावरण में खुशियां छाती हैं।
मां लक्ष्मी देवी के आशीर्वाद से सभी प्रसन्न होते हैं । व्रती को स्वास्थ्य मिलता है, भाग्य मिलता है ऐसा विश्वास है की मां का व्रत करने से अपने जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।
मंदिरों में माँ की प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों से सजाकर अप्रतिम आभूषणों से सजाया जाता है। कई मंदिरों में शाकम्भरी रूप में पूजन करते हैं। विभिन्न प्रकार के फल फूलों और वनस्पतियों से माँ की प्रतिमा सजाने का विधान है। जो कुछ भी उन्होंने धरती को प्रदान किया है वह सब प्रतीक रूप में माँ को चढ़ाते हैं।
मां लक्ष्मी जी जिस प्रकार विभिन्न विभिन्न प्रकार के आभूषणों से युक्त होती हैं वैसे ही घर की स्त्रियां भी आभूषण पहनती हैं और सुंदर वस्त्र पहनती हैं । वह पूजा करने तक वह व्रत रखती हैं पूजन के बाद पीले रंग का एक धागा, जो मां के प्रेम का प्रतीक है, वह एक दूसरे के कलाई पर बांधी जाती है।
साधक लोग अपने घर के सामने दरवाजे पर रंगोली बनाते हैं जिन्हे कोल्लम भी कहते हैं। घर में तरह-तरह के विशिष्ट पकवान बनते हैं और सुहागन स्त्रियां एक दूसरे के घर में जाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं
जानिए क्यों किया जाता है माता लक्ष्मी के 8वें स्वरूप वरलक्ष्मी की पूजा ?
आज माता लक्ष्मी के 8वें स्वरूप माता वरलक्ष्मी का व्रत है। शादीशुदा जोड़ों के लिए ये व्रत महत्वपूर्ण माना गया है। लेकिन अविवाहित लड़कियां ये व्रत नहीं कर सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता वरलक्ष्मी का व्रत करने से अष्टलक्ष्मी पूजन का फल प्राप्त होता है।
दरअसल ये वरलक्ष्मी व्रत जिसे वरमहालक्ष्मी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, श्रावण मास के आखिरी शुक्रवार को पड़ता है जो रक्षाबंधन के कुछ दिनों पहले आता है। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को आता है।
मान्यता है कि लक्ष्मी माता क्षीर सागर से इस रूप में अवतरित हुई हैं। कहा जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति पूरे विधि विधान से माँ लक्ष्मी की पूजा करता है, माता की कृपा उस पर ज़रूर बरसती है और उसके जीवन में कभी धन धान्य की कमी नहीं होती।
वरलक्ष्मी व्रत महत्व (Varalakshmi fast importance in Hindi)
ग्रंथों के अनुसार मां लक्ष्मी का वरलक्ष्मी अवतार कलियुग में सभी की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला बताया गया है. वरलक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं. मान्यता है कि मां वरलक्ष्मी का ये व्रत रखने से अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है. व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता की छाया भी दूर हो जाती है और उसकी पीढ़ियां भी लंबे समय तक सुखी जीवन बिताती हैं.
वरलक्ष्मी व्रत पूजन सामग्री
हल्दी, कुमकुम, बैठने के लिये आसऩ, अक्षत, सोना या चाँदी या रुपया, धूप, दीपक, लाल फूल, श्री गज लक्ष्मी का चित्र, लाल कपड़ा, ताँबे का कलश, शुद्ध देसी घी, कटोरी (कलश को ढ़कने के लिये), नैवेद्य, फल, फूल, पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि
वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि
1. सबसे पहले प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के आंगन में चावल के घोल का अल्पना बनाएं। अल्पना में मां लक्ष्मी के पैर अवश्य बनाएं।
2. इसके बाद करिष्य हं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।। मंत्र का जाप करके व्रत का संकल्प लें।
3. इसके बाद हाथ की कलाई पर 16 गांठों वाला धागा बांधना चाहिए। इसके बाद माता लक्ष्मी का आसन आम के पत्तों से सजाएं। इसके लिए आंवले का पत्ता और धान की बालियों भी अवश्य लें।
4. इसके बाद कलश स्थापित करें और भगवान गणेश और गज लक्ष्मी का चित्र स्थापति करें। भगवान गणेश के साथ कलश की भी पूजा करें। भगवान गणेश के बाद कलश की पूजा भी अवश्य करें।
5. इसके बाद मां लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।
6. पूजा के बाद माता लक्ष्मी की कथा पढ़ें और उनके मंत्रों का जाप करें।
7. इसके बाद माता लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती उतारें।
8. सुबह पूजा करने के बाद शाम के समय भी मां लक्ष्मी की इसी विधि से पूजा करें और दीप जलाएं।
9. एक दीप मां लक्ष्मी के आगमन के लिए अपने घर के बाहर भी अवश्य जलाएं।
10. इसके बाद चंद्रमा को अर्ध्य भी अवश्य दें और घर की बहु बेटियों और पड़ोस की सुहागन महिलाओं को भी अवश्य भोजन कराएं।
वरलक्ष्मी पूजन विधि varalakshmi worship method
पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे। श्री महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे वस्त्र अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। अपने मस्तक पर (कुल परंपरा के अनुसार) तिलक लगाएँ। तिलक निम्न मंत्र बोलकर लगाएँ
चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।
(स्वयं के मस्तक पर चंदन या कुंकु से तिलक लगाएँ)।
पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ
शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें।
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
(पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)
सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए।
महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए।
पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर ‘मनसा परिकल्प समर्पयामि’ बोलें।
गणेश पूजन यदि गणेश की मूर्ति न हो तो पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें।
पूजन प्रारंभ
पवित्रकरण :-
पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें
भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।
(स्वयं पर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें)
आचमन :-
दाहिने हाथ में जल लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ एक-एक बार आचमन करें-
पश्चात
ओम् केशवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम् माधवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम् गोविन्दाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)
निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें
ओम् हृषिकेशाय् नम-ह हस्त-म् प्रक्षाल्-यामि।
दीपक :-
शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु, अक्षत व पुष्प से दीप-देवता की पूजा करें-
हे दीप तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें। (गंध, पुष्प से पूजन कर प्रणाम कर लें)
स्वस्ति-वाचन :- (निम्न मंगल मंत्रों का पाठ करें)
ॐ हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।
ओम हे परब्रह्म परमेश्वर गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो। हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।
श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार।
संकल्प :-
दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न वाक्यांश संकल्प हेतु पढ़ें
( शास्त्रोक्त संकल्प के अभाव में निम्न संकल्प बोलें)
आज वरलक्ष्मी व्रत की शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ। इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।’
श्री गणेश पूजन श्री गणेश का ध्यान व आवाहन
श्री गणेशजी आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं। अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस याग (पूजन कर्म) की रक्षा भी करें। (पुष्प, अक्षत अर्पित करें)
स्थापना- (अक्षत)
ॐ भूर्भुवः स्वः निधि बुद्धि सहित भगवान गणेश पूजन हेतु आपका आवाहन करता हूँ, यहाँ स्थापित कर आपका पूजन करता हूँ। (अक्षत अर्पित करें)
पाद्य, आचमन, स्नान पुनः आचमन
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेश आपकी सेवा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पुनः आचमन हेतु सुवासित जल समर्पित है। आप इसे ग्रहण करें।
( यह बोलकर आचमनी से जल एक तासक (तसली) में छोड़ दें)
पूजन
लं पृथ्व्यात्मकम् गंधम् समर्पयामि ।
( कुंकु-चंदन अर्पित करें)
हं आकाशत्मकम् पुष्पं समर्पयामि ।
( पुष्प अर्पित करें)
यं वायव्यात्मकं धूपं आघ्रापयामि ।
(धूप आघ्र्रापित करें)
रं तेजसात्मकं दीपं दर्शयामि ।
(दीपक प्रदर्शित करें)
वं अमृतात्मकं नैवेद्यम् निवेदयामि ।
(नैवेद्य निवेदित करें)
सं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि ।
(तांबूलादि अर्पित करें)
प्रार्थना-
हे गणेश यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें।
श्री लक्ष्मी पूजन-प्रारंभ
1 . ध्यान एवं आवाहन-
(ध्यान एवं आवाहन हेतु अक्षत, पुष्प प्रदान करें)
परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है। ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं। रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। इस प्रसन्न वदनवाली भगवती महालक्ष्मी के मुख पर मुस्कान छा रही है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं। ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं। (अक्षत एवं पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें) पुनः अक्षत व पुष्प लेकर आवाहन करें-
हे माता! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें। (अक्षत, पुष्प अर्पित करें)
2. आसन :- (अक्षत)
भगवती महालक्ष्मी जो अमूल्य रत्नों का सार है तथा विश्वकर्मा जिसके निर्माता हैं, ऐसा यह विचित्र आसन स्वीकार कीजिए। (आसन हेतु अक्षत अर्पित करें)
3. पादय एवं अर्घ्य :-
ॐ महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके चरणों में यह पाद्य जल अर्पित है। आपके हस्त में यह अर्घ्य जल अर्पित है।
4. स्नान :- (हल्दी, केशर, अक्षतयुक्त जल)
श्री हरिप्रिये ! यह उत्तम गंधवाले पुष्पों से सुवासित जल तथा सुगंधपूर्ण आमलकी चूर्ण शरीर की सुंदरता बढ़ाने का परम साधन है। आप इस स्नानोपयोगी वस्तु को स्वीकार करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपके समस्त अंगों में स्नान हेतु यह सुवासित जल अर्पित है।
( श्रीदेवी को स्नान कराएँ)
5. वस्त्र एवं उपवस्त्र :- (वस्त्र)
देवी इन कपास तथा रेशम के सूत्र से बने हुए वस्त्रों को आप ग्रहण कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करता हूँ।
(श्रीदेवी को वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित है)
6. चंदन :- (घिसा हुआ चंदन)
देवी ! सुखदायी एवं सुगंधियुक्त यह चंदन सेवा में समर्पित है, स्वीकार करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ चंदन अर्पित है। (चंदन अर्पित करें)
7. पुष्पमाला :- (पुष्पों की माला)
विविध ऋतुओं के पुष्पों से गूँथी गई, असीम शोभा की आश्रय तथा देवराज के लिए भी परम प्रिय इस मनोरम माला को स्वीकार करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न पुष्पों की माला अर्पित करता हूँ।
(कमल, लाल गुलाब के पुष्पों की माला अर्पित करें)
8. नाना परिमल द्रव्य :- (अबीर-गुलाल आदि)
देवी ! यही नहीं, किंतु पृथ्वी पर जितने भी अपूर्व द्रव्य शरीर को सजाने के लिए परम उपयोगी हैं, वे दुर्लभ वस्तुएँ भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं, स्वीकार करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न नाना परिमल द्रव्य अर्पित करता हूँ।
(अबीर, गुलाल आदि वस्तुएँ अर्पित करें)
9. दशांग धूप :- (सुगंधित धूप बत्ती जलाएँ)
श्रीकृष्णकांते ! वृक्ष का रस सूखकर इस रूप में परिणत हो गया है। इसमें सुगंधित द्रव्य मिला दिए गए हैं। ऐसा यह पवित्र धूप स्वीकार कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ सुगंधित धूप अर्पित करता हूँ।
( सुगंधित धूप बत्ती के धुएँ को आध्रार्पित करें)
10. दीपक :- (घी का दीपक जलाकर हाथ धो लें)
सुरेश्वरी ! जो जगत् के लिए चक्षुस्वरूप है, जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता तथा जो सुखस्वरूप है, ऐसे इस प्रज्वलित दीप को स्वीकार कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ यह दीप प्रदर्शित है।
11. नैवेद्य :- (विभिन्न मिष्ठान, ऋतुफल व सूखे मेवे आदि)
देवी यह नाना प्रकार के उपहार स्वरूप नैवेद्य अत्यंत स्वादिष्ट एवं विविध प्रकार के रसों से परिपूर्ण हैं। कृपया इसे स्वीकार कीजिए। देवी! अन्न को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। प्राण की रक्षा इसी पर निर्भर है। तुष्टि और पुष्टि प्रदान करना इसका सहज गुण है। आप इसे ग्रहण कीजिए। महालक्ष्मी! यह उत्तम पकवान चीनी और घृत से युक्त एवं अगहनी चावल से तैयार हैं। इसे आप स्वीकार कीजिए। देवी! शर्करा और घृत में किया हुआ परम मनोहर एवं स्वादिष्ट स्वस्तिक नामक नैवेद्य है। इसे आपकी सेवा में समर्पित किया है। स्वीकार करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ नैवेद्य एवं सूखे मेवे आदि अर्पित हैं।
( नैवेद्य अर्पित कर, बीच-बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें) :-
1. ओम प्राणाय स्वाहा।
2. ओम अपानाय स्वाहा।
3. ओम समानाय स्वाहा।
4. ओम उदानाय स्वाहा।
5. ओम व्यानाय स्वाहा।
इसके पश्चात पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें
‘हे माता! नैवेद्य के उपरांत आचमन ग्रहण करें।’
निम्न बोलकर चंदन अर्पित करें
ॐ हे माता करोदवर्तन हेतु चंदन अर्पित है।
12. ताम्बूल :- (पान का बीड़ा)
हे माता यह उत्तम ताम्बूल कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं से सुवासित है। यह जिह्वा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला है, इसे आप स्वीकार कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ ताम्बूल अर्पित करता हूँ। (पान का बीड़ा अर्पित करें)
13. दक्षिणा व नारियल :- (द्रव्य व नारियल)
‘हे जगजननी फलों में श्रेष्ठ यह नारियल एवं हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के गर्भ स्थित अग्नि का बीज यह स्वर्ण आपकी सेवा में अर्पित है। आप इन्हें स्वीकार करें। मुझे शांति व प्रसन्नता प्रदान करें।’
श्री महालक्ष्मी देवी आपको नमस्कार है। द्रव्य दक्षिणा एवं श्रीफल आपको अर्पित करता हूँ।
(श्रीफल दक्षिणा सहित अर्पित करें।)
14. आरती :- (कपूर की आरती)
हे माता केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर आपकी आरती हेतु जलाया गया है। आप इस आरती को देखकर मुझे वर प्रदान करें।
श्री महाकाली देवी आपको नमस्कार है। कपूर निराजन आरती आपको अर्पित है। (आरती उतारें, आरती लें व हाथ धो लें।)
लक्ष्मीजी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसिदिन सेवत, हर-विष्णु विधाता ॥ॐ जय…॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय…॥
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय…॥
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता ।
कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय…॥
जिस घर तुम रहती तहं, सब सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय…॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय…॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षिरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥ॐ जय…॥
महालक्ष्मी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय…॥
आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें।
( स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर हाथ धो लें।)
16. पुष्पांजलि :- (सुगंधित पुष्प हाथों में लेकर बोलें)
हे माता नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प मैंने आपको पुष्पांजलि के रूप में अर्पित किए हैं। आप इन्हें स्वीकार करें व मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। पुष्पांजलि आपको अर्पित है। (चरणों में पुष्प अर्पित करें)
17. प्रदक्षिणा :- (परिक्रमा करें)
जाने-अनजाने में जो कोई पाप मनुष्य द्वारा किए गए हैं वे परिक्रमा करते समय पग-पग पर नष्ट होते हैं।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है। ( प्रदक्षिणा करें, दंडवत करें)
18. क्षमा प्रार्थना :-
सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता। माँ ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र। अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता। मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ। शिवे ! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती।
माँ ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी। महादेवी ! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है। किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना। हे माता ! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना। सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है।’
19. समर्पण :-
हे देवी सुरेश्वरी तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो।
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वरलक्ष्मी व्रत कथा (Varalakshmi fast story in Hindi)
पौराणिक कथा अनुसार एक बार मगध राज्य में कुंडी नामक एक नगर था। कथानुसार कुंडी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारुमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति कर्त्यव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास, ससुर एवं पति की सेवा और मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत करती थी।
एक रात्रि में चारुमति को मां लक्ष्मी स्वप्न में आकर बोली, चारुमति हर शुक्रवार को मेरे निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत को किया करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा।
अगले सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी द्वारा बताये गए वर लक्ष्मी व्रत को समाज के अन्य नारियों के साथ विधिवत पूजन किया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए।
उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति की प्रशंसा करने लगें। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताई थी। कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को कहा था। इस व्रत को सुनने मात्र से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय (Ways to please Goddess Lakshmi in Hindi)
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सावन का आखिरी शुक्रवार खास है, क्योंकि इस दिन वरलक्ष्मी व्रत की पूजा होती है. इसमें कुछ उपाय करने से घर में लक्ष्मी आती है और धन लाभ होता है.
1. वरलक्ष्मी व्रत के दिन महालक्ष्मी की पूजा करें और उनके चरणों में 7 कौड़ियां अर्पित करें. पूजा के बाद इन 7 कौड़ियों को घर में कहीं जमीन के अंदर गाड़ दें. मान्यता है इससे धन प्राप्ति में आ रही समस्या दूर होती है, कर्ज से छुटकारा मिलता है.
2. हरसिंगार (पारिजात) का पौधा मां लक्ष्मी का माना गया है. सावन के आखिरी शुक्रवार यानी वरलक्ष्मी व्रत के दिन इसे घर की पूर्व या उत्तर दिशा में लगाएं. इससे कुबेर की कृपा बरसती है. परिवार के सदस्य दोगुनी तरक्की करते हैं.
3. सावन के आखिरी शक्रवार की रात मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए स्फटिक या कमल गट्टे की माला से महालक्ष्मी गायत्री मंत्र ‘ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्’ का 108 बार जाप करें. इस उपाय से धनलक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और दरिद्रता दूर होती है.
4. वरलक्ष्मी व्रत के दिन महिलाएं आंगन या मुख्य द्वार पर रंगोली बनाकर कुमकुम हल्दी से गेट के दोनों ओर स्वास्तिक बनाएं. इस दिन 7 कन्याओं को घर बुलाकर चावल से बनी खीर खिलाएं. मान्यता है इससे मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं. आर्थिक संकट नहीं रहता.
5. वैसे तो गाय की सेवा रोजाना करनी चाहिए, लेकिन वरलक्ष्मी व्रत के दिन गाय को चारा, रोटी और ताजा अनाज खिलाने से मां लक्ष्मी व्यक्ति पर मेहरबान होती है. इससे शुक्र, शनि और 33 कोटि देवी-देवता का आशीर्वाद मिलता है. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है
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