“परम भगवान जब पृथ्वी पर अवतरित हो मधुर लीलाएं करते हैं, तो साधारण व्यक्ति तो क्या इंद्र एवं ब्रह्मा जैसे देवतागण भी उनको पहचानने में भूल कर देते हैं।

श्रीभगवान सभी कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है वह अभिनय में भी सर्वश्रेष्ठ है ,वह एक ग्वाले का अभिनय भी इतना सजीव करते हैं कि ब्रह्माजी भी उन्हें देख कर नहीं पहचान पाए ।उन्होंने समझा कि यह तो एक साधारण ग्वाला है यह भगवान कैसे हो सकता है?

जिन ब्रम्हा ने सृष्टि की रचना की जो समस्त वेदों के ज्ञाता है वह भी भूल कर बैठते हैं ।

दूसरे शब्दों में जब तक श्रीभगवान नहीं चाहे कोई भी उन्हें नहीं जान सकता। जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद ने सूर्य के उदाहरण के द्वारा इसे समझया, जिस प्रकार से सूर्य की रोशनी में ही हम सूर्य को देख सकते हैं ।

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जब तक सूर्य अपने आप को स्वतह प्रकाशित ना करें तब तक कोई भी उनका दर्शन नहीं कर सकता ।भगवान श्री कृष्ण भगवदगीता में कहते हैं ,

“ना हम प्रकाश सर्वस्य योगमाया समादृत”

इसी कारण जो भक्त है वह कण-कण में भगवान की उपस्थिति का अनुभव करते हैं किंतु जो अभक्त हैं, वह भगवान के मंदिर एवं विग्रह में भी श्रीभगवान को नहीं देख पाते ।

इसका मूल कारण हरिभक्ति का अभाव है …भगवान का दर्शन सिर्फ श्रद्धा एवं भक्ति के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है अन्यथा नहीं ।

चूंकि भक्त प्रल्हाद महान वैष्णव थे ,सभी स्थानों पर भगवान का दर्शन कर रहे थे किंतु हिरण्यकश्यपु भगवान श्री नरसिंह स्वामी के प्रकट होने के बाद भी भगवान का दर्शन नहीं कर पाया ।

उसी प्रकार दुर्योधन भी श्री कृष्ण को भगवान के रूप में नहीं देख पाया ।

यह सब भक्ति के अभाव के कारण हुआ अतः भक्ति ही श्रेष्ठ है ।

भगवान के पवित्र नाम

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे,

महामंत्र के निरंतर जप के द्वारा हम भगवान के प्रति शुद्ध भक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

जय श्रील प्रभुपाद

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे!!

 हरे कृष्ण