विद्यारम्भ (शिक्षा शुरू) एवं यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने का मुहूर्त‌ 

बालक को सर्वप्रथम स्कूल में प्रवेश के लिए 

द्वितीय तृतीय पञ्चमी छठी दसवीं एकादशी व द्वादशी

सोमवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार का दिन शुभ रहता है।

इसके अतिरिक्त अश्विनी रोहणी मृगशिरा आर्द्रा पुनर्वसु चित्र हस्त अनुराधा व रेवती नक्षत्र भी शुभ होते है। 2, 3, 5, 6, 10, 11 व 12 भी शुभ दिनांक माने जाते है।

यज्ञोपवीत संस्कार का मुहूर्त 

उपनयन (यज्ञोपवित) संस्कार के बाद ही व्यक्ति को द्विज कहा जाता है। यज्ञोपवीत के 3 धागे क्रमशः पितृऋण, ऋषिऋण एव देवऋण कुल की मर्यादा के प्रतीक होते है।

यज्ञोपवित धारण का समय 

अधिकतम यज्ञोपवीत आयु का समय 

16वर्ष ब्राह्मण के लिए 5वां या 8वां वर्ष

22वर्ष क्षत्रियों के लिए 6वां या 11वां वर्ष

24वर्ष वैश्य के लिए 8वां या 12वां वर्ष

जब सूर्य मकर कुम्भ मीन मेष वृषभ और मिथुन में होता है। अर्थात उत्तरायण में इसमें हरि शयन का समय छोड़ कर अर्थात आषाढ़ शुक्ल 11 से कार्तिक शुक्ल 11 तक का समय छोड़ कर यज्ञोपवीत के लिए शुभ समय माना जाता है।

सभी स्थिर नक्षत्र 

उ•फा, उ•षाढ, उ•भाद्रपद, रोहणी।

सभी मृदु नक्षत्र 

मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा।

सभी लघु नक्षत्र 

हस्त, अश्विनी, पुष्य व अभिजित।

सभी चर नक्षत्र स्वाति, पुनर्वसु, धनिष्ठा एवं शतभिषा

यह सभी शुभ नक्षत्र होते है।

इनमे से पुनर्वसु ब्राह्मणों के लिए शुभ नही माना जाता है।

शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 10, 12

कृष्ण पक्ष की 2, 3, 5 ठीक है।

अशुभ तिथि जो की त्याज्य है। 

आषाढ़ शुक्ल 10, ज्येष्ठा शुक्ल 2, पौष शुक्ल 11, माघ शुक्ल 12 और संक्रांति का दिन।

रिक्ता तिथि 

4, 9, 14

गल ग्रह तिथि 

1, 4, 7, 8, 9, 13, 14, 15, 30,

इन तिथियो का त्याग करना चाहिए।

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जनेऊ धारण करने के नियम 

– मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।

– बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत संस्कार करना चाहिए।

जनेऊ शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता, साफ करने के लिए उसे कण्ठ में – पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित की एक माला जप करने या बदल लेने का नियम है।

अगर जनेऊ का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित प्रतिमा शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।