अक्षय (आंवला) नवमी पूजा विधि और कथा 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय एवं आंवला नवमी के नाम से मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है और आंवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है. स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है. यह संतान प्रदान करने वाली ओर सुख समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी होती है।

भारतीय सनातन धर्म में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है । आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है।

अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के पश्चात् भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर, पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है।

इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है, सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है।

आंवला नवमी पूजा विधान Amla Navami Puja Vidhi 

प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत्, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें

‘अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं(वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये’

ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूरब की ओर मुखकर बैठें और

‘ऊँ धात्र्यै नम:’ 

मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें।

मंत्र

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र लपेटें-

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।

सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।। 

इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा करें। और आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें-

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।। 

इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करें। एक पका हुआ कोंहड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-

‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये’ 

आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण आज के दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसलिये इसके बाद विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें-

कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।

दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।। 

पितरों के शीतनिवारण के लिए यथा शक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।

यह अक्षय नवमी ‘धात्रीनवमी’ तथा ‘कूष्माण्ड नवमी’ भी कहलाती है। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा दान आदि करने की परम्परा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर मे यह कार्य सम्पन्न कर लेना चाहिए।

आंवला नवमी की प्रचलित कथा popular story of amla navami 

काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा और दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी।

इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है, इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर गंगा स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।

वैश्य की पत्नी गंगा किनारे रहने लगी। कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्ध महिला का वेष धारण कर उसके पास आयीं और बोलीं यदि ‘तुम मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा और पूजा करोगी तो ऐसा करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा।’ वृद्ध महिला की बात मानकर वैश्य की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई।

अक्षय नवमी पर जीवन की कठिनाइयों में कमी लाने के उपाय Remedies to reduce the difficulties of life on Akshaya Navami

1. अक्षय नवमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हो घर में सदा के लिए वास करती है।

2. अक्षय नवमी के दिन अपने स्नान करने के लिए गए जल में आवंला के रस की कुछ बूंदे डालें। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा तो जाएगी ही साथ ही माता लक्ष्मी भी घर में विराजमान होंगी।

3. अक्षय नवमी के दिन शाम के समय घर के ईशान कोण में घी का दीपक प्रज्जवलित करें। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें। संभव हो तो दीपक में केसर भी डाल दें। इससे देवी जल्द प्रसन्न हो कृपा करेंगी।

4. 5 कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं। सभी कन्याओं को पीला वस्त्र व दक्षिणा देकर विदा करें। इससे माता लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न होती हैं। अपने भक्तों पर कृपा बरसाती है।

5. किसी लंगड़े व्यक्ति को काले वस्त्र और मिठाई दान करें। इस दिन दान देने से देवी दानी के घर में वास करती है। साथ ही उसे अचल सम्पत्ति का वरदान भी देती है।

6. श्रीयंत्र का गाय के दूध के अभिषेक करें। अभिषेक का जल की छींटे पूरे घर में करें। श्रीयंत्र पर कमलगट्टे के साथ तिजोरी में पर रख दें। इससे अवश्य धन लाभ होता है।

7. श्यामा गाय की सेवा कर उन्हें हरा चारा खिलाएं। मान्यता है कि गौ माता में सभी देवी- देवताओं का वास होता है इसलिए उनकी सेवा करने से देवी जल्द ही प्रसन्न होती है। और घर में धन वर्षा करती है।

8. अगर आपकी कुंडली में शनि दोष है तो अक्षय नवमी के दिन से आरंभ कर 41 दिन लगातार लाल मसूर की दाल की कच्ची रोटी बनाकर मछलियों को खिलाएं इससे मंगल ग्रह मजबूत होता है कर्ज अथवा भूमि जायदाद संबंधित समस्या में कमी आती है साथ ही माता महालक्ष्मी की कृपा भी बरसती है।

9. मंगल ग्रह शांति के लिए ब्राह्मणों एवं गरीबों को गुड़ मिश्रित दूध या चावल खिलाएं।

10. नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा हैं ऎसे में जातक को दुर्गा की उपासना अवश्य करनी चाहिए. जीवन में यदि कोई संकट है अथवा किसी प्रकार की अड़चनें आने से काम नही हो पा रहा है तो जातक को चाहिए की दुर्गा सप्तशती के पाठ को करे और मां दुर्गा से अपने जीवन में आने वाले संकटों को हरने की प्रार्थना करे।

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