मंत्र के बारे में लोगों में बहुत भ्रान्ति है, अगर किसी को समजाया जाए की मंत्र करने के यह विधि निषेध है तो लोग सामने से ज्ञान देते है की भगवन की भक्ति में दोष कैसा ? उसका उत्तर है आप भगवन्नाम का कीर्तन करो वो भक्ति मार्ग है, उसमे कोई बाधा नहीं कोई मात्रा छंद बिज आदि का बंधन नहीं। भक्ति आनंद स्वरूप है।

मन्त्र उपासना मार्ग है, और मन्त्र केवल गुरु से प्राप्त हो वही फलीभूत होता है, उपासना मार्ग के विधि निषेध, बहुत सारे यम नियम है जिनका पालन न किया जाए तो मंत्र विपरीत असर करता है, कई लोग प्रश्न करते है हम यह देवी वो देवता का मंत्र करते है पर वह फलीभूत नहीं होता उसके कुछ दोष नीचे दिए गए है।

1. अभक्ति दोष मंत्र को अक्षर एवं वर्णों की समष्टि मात्र समझना अभक्ति दोष है ।

2. अक्षरभ्रान्ति दोष मन्त्राक्षरों में उलट-फेर या एकाध अक्षर बढ़ जाना अक्षरभ्रान्ति दोष है ।

3. लुप्त दोष मन्त्राक्षरों में किसी वर्ण की न्यूनता हो जाना लुप्त दोष है ।

4. ह्रस्व दोष मंत्र में किसी दीर्घ वर्ण का ह्रस्व हो जाना ह्रस्व दोष है ।

5. दीर्घ दोष ह्रस्व वर्ण के स्थान में दीर्घ वर्ण कर देना दीर्घ दोष है ।

6. कथन दोष जाग्रत अवस्था में अपना मन्त्र किसी से कह देना कथन दोष है ।

7. छिन्न दोष संयुक्त वर्णों में से किसी वर्ण का छूट जाना छिन्न दोष है ।

8. स्वप्नकथन दोष स्वप्न में अपना मंत्र किसी को बता देना स्वप्नकथन दोष होता है।

मंत्र के एक-एक अक्षर के उच्चारण में परमानन्द का अनुभव करते हुए उसका जप करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि – संविदेव मन्त्र: अर्थात् मन्त्र संवित् तत्त्व है ।

याद रहें मंत्र तारक भी है और मारक भी है। जो विधिनिषेध यम नियम पालन नहीं कर सकते उनके लिए भगवन्नाम कीर्तन ही तारक है, उनके लिए भक्तिमार्ग ही उत्तम है।

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