मंगल के लग्न एवं अन्य भावो में संभावित फल 

मंगलपर्यायनाम

मंगल-आर-वक्र-क्रूर-आविनेय-कुज-भौम-लोहितांग-पापी-क्षितिज-अंगारक-क्रूरनेत्र-कूराक्ष-क्षितिनंदन-धरापुत्र-कुसुत-कुपुत्र-माहेय गोश्रापुत्र-भूपुत्र-्ष्मापुत्र-भूमिसूनु- मेदिनीज- भूसुत-अवनिसुत-नंदन महीज-क्षोणिपुत्र आषाढाभव-आषाढाभ-रक्तांग-आंगिरस-रेत-कोण-स्कंद-कार्तिकेय पडानन-सुब्रह्मण्य ।

वैदिक ज्योतिष में मंगल को रूक्ष, उष्ण तथा दाहक ग्रह माना गया है। अतएव इसके प्रभाव से बच्चों को गर्भस्थ अवस्था से ही उष्णता का अनुभव होता है। चेचक, फोड़े-फुन्सी आदि होते हैं। बचपन की अवस्था पर मंगल का अधिकार है। जिस बच्चे की कुंडली में मंगल प्रबल हो उसे ये रोग जल्दी होते हैं। यदि मंगल दुर्बल हो तो इनसे विशेष तकलीफ नहीं होती। लम्न में मंगल हो वा न हो, कोई खास फर्क नहीं पड़ता।

मेष, सिह या धनु में मंगल हो तो शिर में दर्द और रक्तपीड़ा का अनुभव होता है। मिथुन, तुला, कुंभ में यह अनुभव कम आता है ।

1. मंगल के स्त्रीघात आदि फल का अनुभव कर्क, सिंह, मीन का छोड़कर अन्यराशियों में आता है।

2. मिथुन, तुला, कुंभ का मंगल हो तो कार्यसिद्धि के समय विघ्न की उपस्थिति, यह फल अनुभव में आता है।

3. सिंह समान पराक्रमी होना । इस फल का अनुभव मेष, सिंह, घनु-कर्क, और वृश्चिक में आता है।

4. क्रोधी, व्यसनी, तीखे पदार्थ का प्यारा होना, आग से जलना, पित्तरोग’, ये फल पुरुष राशिगत लग्नस्थ मंगल के हैं

5. स्वधर्म में श्रद्धा का न होना, सुधारक मतों का पक्षपात करना, इन फलों का अनुभव मेष, सिंह, धनु, कर्क, वृश्चिक, एवं मीनराशि में होगा।

6. स्वभाव की उग्रता यह फल मेष, सिंह तथा धनु राशि का है बहुत क्रूर और अल्पायु इस फल का अनुभव तब होगा जब मंगल के साथ रवि और चन्द्र का सम्बन्ध होगा

7. अतीव बुद्धिमत्ता, भ्रमण, व्यभिचार, स्त्रियों के साथ सहवास के विषय में गम्यागम्य का विचार न करना’, इस फल का अनुभव मेष, सिंह, धनु तथा मिथुन-तुला-कुंभ राशियों में होगा।

8. शरीर हट्टाकट्टा, बहुत खून का होना, इस फल को अनुभव मेष, सिंह तथा धनु में होगा, कुछ कममात्रा में वृष, कन्या तथा मकर में होगा।

9. बचपन में उदरोग तथा दन्तरोग का होना यह फल पुरुषराशि का है ।

10. स्तब्ध होना, स्वाभिमानी, पराक्रमी तथा सुन्दर होना यह फल स्त्रीराशि का है। बुद्धि भ्रम होना, मेष, वृश्चिक वा मकरराशि का मंगल लग्न में, केन्द्र में वा त्रिकोण में हो तो जातक का अनिष्ट नहीं होता है। इस फल का अनुभव सभी राशियों में आ सकता है।

11. दुष्ट होना, विचार शून्य होना यह फल बृष, कन्या, मकर का है।

12. गर्वीलापन, रक्तविकार, यह फल वृष, कन्या, मकर में, गुल्मरोग, प्लोहा रोग, यह फल कर्क, बृश्चिक, मीन में अनुभूत होगा।

13. गौरवर्ण, इृढ़शरीर, यह फल मेष, सिंह, धनु में अनुभव में आ सकता है।

14. राजसम्मान यह फल मेष, कर्क, सिंह, मीन में अनुभव में आता है।

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मंगल के लग्न विशेष विचार और अनुभव

जिस जातक के लग्नभाव में मंगल होता है वह सभी व्यवसायों के प्रति आकृष्ट होता है, किन्तु किसी एक व्यवसाय को भी ठीक नहीं कर सकता-एकसाथ ही सभी व्यवसाय करने की प्रवृत्त अवश्य होती है। ऐसी स्थिति ३६ वें वर्ष तक बराबर चलती रहती है । तदनन्तर किसी एक व्यवसाय में स्थिरता आती है इसको यह मिथ्या अभिमान होता है कि यह व्यवसाय में अत्यंत कुशल है और दूसरे निरेमूर्ख हैं । योग्यता के अभाव में भी दूसरों पर प्रभाव डालने का यत्न करता है ।

1. डाक्टरों की कुंडली में लग्नस्थ मंगल हो तो शिक्षाकाल में सर्जरी को विशेष ध्यान दिया जाता है । अनुभव के समय में आपरेशन का मौका बहुत कम मिलता है । लग्नस्थ मंगल डाक्टरों की भाँतिं वकीलों के लिए विशेष अच्छा नहीं है। फौजदारी मुकदमें मिलते हैं अवश्य, परन्तु धनप्राप्ति विशेष नहीं होती। अदालत में प्रभाव विशेष अवश्य पडता है, धनाभाव में विशेष उपयोग नहीं होता है । लग्नस्थल मंगल मोटर, हवाई जहाज, रेलवे इंजिन ड्राइवरों के लिए विशेषतया अच्छा है । लोहार, बढ़ई-सुनार, मैकेनिकल इंजीनियर, टर्नर, तथा फिटर आदि लोगों के लिए भी यह योग बहुत अच्छा है। यदि मंगल वृष, कन्या, मकर में हो तो उत्तमफल मिलता है । जमीन सर्वैयर का काम भी अच्छा रहता है ।

2. मकर का मंगल पिता के लिए भारी कष्टकर है-शारीरिक व्याधियाँ होती हैं । मेष, सिंह, कर्क, बृश्चिक, धनु राशियों का लग्नस्थ मंगल पुलिस इन्सपैक्टरों के लिए अच्छा है । रिश्वत लेने वाले अफसरों के लिए भी यह योग अच्छा है- क्योंकि इनकी पकड़ नहीं हो सकेगी । परन्तु ऐसा फल तब होता है जब मंगल के साथ शनि का योग होता है ।

3. लग्नस्थ मंगल यदि कर्क राशि का हो तो जातक को अपने परिश्रम से उन्नति तथा धनप्राप्ति होती है। सिंहराशि में हो तो दैवयोग से ही उन्नति तथा धनप्राप्ति होती है । लग्नस्थ मंगल यदि वृष, कन्या वा मकर में हो तो जातक कृपण ( कंजूस ) होता है । एक व्यक्ति का भोजन भी इनहे असहाय होता है । मिथुन और तुला में मंगल होने से जातक मिलनसार होता है थोड़़ा खर्च मित्रों के लिए भी होता है।

4. यदि लग्नस्थ मंगल कर्क, वृश्चिक, कुंभ तथा मीन में होता है तो जातक किसी से जल्दी मित्रता नहीं करता है-किन्तु मित्रता हो जाने पर कभी भूलता नहीं है । यह जातक पैसे का लोभी तथा स्वार्थी होता है अच्छे बुरे उपायों का विचार नहीं करता है

5. वृष, कन्या, मकर, कुंभ में लग्नस्थ मंगल होने से जातक का छुकाव कुछ-कुछ चोरी करने की तर्फ रहता है। बच्चों के लिए इसकी दृष्टि बाधक होती है।

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