Ahoi Ashtami 2021: अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए रखा जाता है. इसमें शाम को तारे (Stars) देखकर उनको अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण किया जाता है 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है यह व्रत माएँ अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए रखती हैं और उनके सुख व समृद्धि की कामना भी करती हैं. इस दिन दीवार पर गेरू से अहोई माता बनाई जाती है. आजकल बाजार से अहोई माता के चित्र भी मिलने लगे हैं जिसे दीवार पर चिपका दिया जाता है और संध्या समय में कहानी सुनकर उनकी पूजा की जाती है. शाम को कहानी सुनने से पहले अहोई माता के सामने एक कलश पानी का भरकर रखा जाता है. उस कलश पर रोली से तिलक करते हैं और मोली बाँधते हैं.

इस दिन कई माताएँ चाँदी की स्याहू माता भी गले में पहनती हैं और कहानी सुनकर फिर यह स्याहू माता कलश को पहना देते हैं. इस दिन कहानी सुनने के बाद बायना निकालकर सास अथवा ससुर को देते हैं. शाम को तारों को अर्ध्य देकर भोजन किया जाता है. जिस वर्ष घर में पहली संतान होती है तो संतान की पहली अहोई को ही अहोई का उद्यापन भी कर दिया जाता है.

अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) 

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami On 28th October) का व्रत इस साल 28 अक्टूबर को रखा जाएगा. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) करवा (Karwa Chauth) चौथ के तीन दिन बाद अष्टमी के दिन यह व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि ये व्रत काफी शुभकारी व बेहद फलदायी होता है. इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजन के साथ इसे व्रत को रखा जाता है और रात में तारों का अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है. कहीं-कहीं चांद देखकर भी इस व्रत को खोला जाता है.

अहोई अष्टमी तिथि (Ahoi Ashtami Tithi) 

अष्टमी तिथि प्रारंभ – 28 अक्टूबर 2021 गुरुवार, 12:49 PM से

अष्टमी तिथि समाप्ति – 29 अक्टूबर 2021 शुक्रवार, 2:09 PM तक

अहोई अष्टमी की कथा 

किसी नगर में एक साहूकार रहता था जिसके सात बेटे, सात बहुएं तथा एक बेटी थी. कार्तिक माह में दीवाली की पूजा से पहले घर की पुताई के लिए सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ मिट्टी खोदने गई. मिट्टी खोदते समय ननद की कुदाल स्याहू के बच्चे को लग जाती है जिससे वह मर जाता है. स्याहू माता कहती हैं कि मैं तेरी कोख बाँधूगी क्योंकि तूने मेरे बच्चे को मारा है. ननद अपनी भाभियों से अनुरोध करती हैं कि उसकी जगह वह अपनी कोख बँधा लें लेकिन सभी भाभियाँ मना कर देती है पर सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधाने के लिए तैयार हो जाती है. वह सोचती है कि अगर मैंने भी कोख नहीं बंधवाई तो मेरी सास नाराज हो जाएगी कि उसने अपनी ननद की मदद नहीं की.

कोख बंधवाने के बाद छोटी बहू को जो भी बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाता. एक बार दुखी होकर वह पंडित जी को बुलाकर पूछती है कि मेरी संतान जन्म के सातवें दिन मर जाती है? इसका कोई उपाय है आपके पास? सारी बातें सुनने के बाद पंडित जी कहते हैं कि तुम सुरही गाय की सेवा करो क्योंकि सुरही गाय स्याहू माता की भाएली (बहन) है. वह तुम्हारी कोख खुलवा देगी तभी तुम्हारा बच्चा जीएगा. पंडित जी की बात सुनकर छोटी बहू सुबह सवेरे उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे की साफ-सफाई कर आती.

सुरही गाय एक पैर से लंगड़ी थी वह सोचने लगी कि कौन है जो सुबह सवेरे रोज मेरी सेवा कर रहा है. आज मैं छिपकर देखूंगी और उसने देखा कि साहूकार की सबसे छोटी बहू यह काम कर रही है. गऊ माता ने उससे कहा कि तुझे क्या चाहिए? बहू ने कहा कि स्याहू माता आपकी भाएली है उसने मेरी कोख बाँध दी है, आप मेरी कोख खुलवा दो. गऊ माता ने कहा कि ठीक है तुम मेरे साथ चलो. दोनो स्याहू माता की ओर चल दिए लेकिन रास्ते में गरमी बहुत थी इसलिए कुछ देर के लिए वह दोनो एक पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं.

पेड़ के नीचे जब छोटी बहू बैठी तो उसने देखा कि एक साँप आ रहा है और पेड़ पर गरुड़ के घोंसलें में बैठे बच्चों को खाने जा रहा है. छोटी बहू ने तुरंत ही उस साँप को मार दिया और गरुड़ के बच्चों को बचा लिया. जब गरुड़ आया और उसने खून देखा तो वह समझा कि छोटी बहू ने उसके बच्चों को मार दिया है और वह उसे चोंच से मारने लगा. छोटी बहू ने कहा कि आपके बच्चों को साँप डसने वाला था, मैंने तो उनकी रक्षा की है और साँप को मार डाला. इस पर गरुड़ बोला कि माँग तू क्या माँगती है ? वह कहती है कि दूर सात समंदर पार स्याहू माता रहती है,

आप हमें वहाँ तक छोड़ दें. गरुड़ दोनों को अपनी पीठ पर बिठा स्याहू माता के पास छोड़ आता है. स्याहू माता अपनी बहन को देख कहती है कि आ बहन, बैठ बहुत दिनों में आई हो. दोनों बहनें बातें करने लगी तो बीच में स्याहू माता बोली कि बहन मेरे सिर में जुएँ हो गई हैं तू जरा देख दे. सुरही माता ने बहू को जुएँ देखने का इशारा किया और उसने स्याहू माता कि सारी जुएँ निकाल दी.

स्याहू माता यह देख बहुत खुश हुई और कहने लगी कि तुझे सात बेटे हों और उनकी सात बहुएँ हों. बहू कहने लगी कि मुझे तो एक भी बेटा नहीं है तो सात कहां से होगें ? स्याहू माता कहने लगी कि मैंने वचन दिया है और अगर मैं वचन से फिर जाऊँ तो धोबी के यहाँ कंकड़ बन जाऊँ. इस पर साहूकार की छोटी बहू बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है. इस पर स्याहू माता बोली कि तूने तो मुझे ठग लिया है. वैसे तो मैं तेरी कोख नहीं खोलती लेकिन अब खोलनी पड़ेगी

स्याहू माता कहती हैं कि जा तू घर जा, तुझे सात बेटे और सात बहुएँ होगी. तू जाकर उनके सात उद्यापन करना, सात होई बनाकर सात कड़ाही करना. जब वह घर वापिस आई तो देखा कि सात बेटे और सात बहुएँ बैठी हैं. वह सात अहोई बनाकर सात उद्यापन करती हैं और सात ही कड़ाही करती है. शाम के समय सारी जेठानियाँ कहती हैं कि जल्दी से धोक मार लो नहीं तो छोटी बच्चों को याद कर रोना शुरु कर देगी. कुछ देर बाद जेठानियाँ अपने बच्चों से कहती हैं कि जरा देख कर आओ कि आज तुम्हारी चाची के रोने की आवाज नहीं आई.

बच्चों ने आकर बताया कि चाची तो होई बना रही है और उद्यापन कर रही है. यह सुन जेठानियाँ भागकर आती हैं और कहती हैं कि तूने अपनी कोख कैसे खुलवाई? उसने जवाब दिया कि तुमने तो कोख बँधवाई नही थी तो मैने बँधवा ली लेकिन स्याहू माता ने मुझ पर दया कर मेरी कोख खोल दी है. कहानी सुनकर सबको प्रार्थना करनी चाहिए कि हे, स्याहू माता जैसे आपने साहूकार की छोटी बहू की सुनी वैसे ही आप सबकी सुनना.

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