मंगला गौरी व्रत पूजन विधि महत्व नियम और कथा
सावन का महीना भोलेनाथ का माना जाता है। लेकिन सावन के दौरान पड़ने वाले मंगलवार का दिन देवी पार्वती को भी अत्यंत प्रिय हैं। यही वजह है कि इस दिन मां गौरी का व्रत और पूजन किया जाता है और इसे मंगला गौरी व्रत कहा जाता है।
श्रावण मास में पड़ने वाले हर मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है, माँ पार्वती के मंगला गौरी स्वरुप के इस व्रत से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर की जा सकती है। विशेषकर यदि मंगल दोष समस्या दे रहा हो तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है। मंगला गौरी व्रत में 16-16 वस्तुओं का काफी महत्व होता है, मां की पूजा के बाद उनको सभी वस्तुएं जो सोलह की संख्या में होनी चाहिए अर्पित की जाती हैं। इस व्रत में एक समय ही अन्न ग्रहण किया जाता है और मां मंगला गौरी की कथा पढ़ी और सुनी जाती है। इस दिन
मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरी प्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये
मन्त्र के साथ व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
हमारी एक बहन ने भी कुछ दिनों पूर्व इस व्रत की महिमा और विधि के विषय में पूछा था। आइए जानते हैं इस व्रत की महिमा और विधिवत व्रत पालन और पूजन के विषय में ।
इस व्रत को सभी सुहागिन महिलाएं मनाती है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन माता गौरी की पूजा करने और कथा सुनने से मनचाहा फल मिलता है। माना जाता है कि श्रावण मास के इस मंगलवार को व्रत रखने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं।
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मंगला गौरी व्रत महत्व Mangala Gauri Vrat Significance in Hindi
मंगला गौरी व्रत को ज्यादातर सुहागिनें रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच तक रखा जाता है। हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार पड़ते हैं। सावन के आखिरी मंगला गौरी व्रत को उद्यापन का विधान है।
श्री मंगला गौरी व्रत पूजन व नियम
जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कमी हो या शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो। उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदाई है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली मे मांगलिक योग (मंगला +मंगली) योग है उस व्यक्ति को चाहे स्त्री हो या पुरुष, विवाहित हो या अविवाहित, श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत करना चाहिए इस बार सावन में 4 मंगलवार पड़ रहे हैं।
प्रातः काल सूर्योदय के पहले उठ कर नित्य क्रिया कर्म, स्नान इत्यादि करके एक पवित्र स्थान मे मां गौरी की स्थापना गणेश जी के साथ करिये, भगवान गणेश जी के दाहिना भाग मे मां गौरी जी की स्थापना करना चाहिए ,और एक कलश पंच पल्लव लगाकर नारियल रख कर स्थापित कीजिए और गाय के घी से दीपक जलायें दीपक मिट्टी या धातु की हो, (आटे का दीपक नहीं जलाना है।) इन सभी को स्थापित कर के पूजा करिये। इस पूजन में माता को सुहाग की सामग्री अर्पित करें। इस दिन मंगलागौरी की प्रतिमा को श्रृगार की सोलह चीजो से सजाकर 16 प्रकार के फूल, मेवा, सुपारी, लौंग, मेंहदी व चूड़ियां चढानी चाहिए।
इसमें फल, फूल, माला, मिठाई और सुहाग की वस्तुओं को शामिल करें। संख्या लेकिन 16 ही हो। तद्पश्चात श्री सुक्त, दिव्या कवच, गौरी स्तुति (रामचरित मानस की) या दुर्गा चालिसा, शिव चालीसा, इनमें से जो आप चाहें पाठन कर लीजिए ।
पूजन समाप्ति के बाद आरती पढ़ें। मां से अपनी मनोकामना पूर्ति होने का अनुनय-विनय करें। ज्योतिषियों के अनुसार इस व्रत में एक बार अन्न ग्रहण करने का प्रावधान है। मंगला गौरी व्रत मे फलाहार(कंद मूल ,फल, दूध) इत्यादि ही लेना है ।
मंगला गौरी व्रत कथा Mangala Gauri Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन संतान न होने के कारण वे दोनों काफी दु:खी रहा करते थे। हालांकि ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह शाप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता माता गौरी का मंगला गौरी व्रत किया करती थी। मां गौरी के इस व्रत के चलते उस महिला की कन्या को आशीर्वाद मिला था कि वह कभी विधवा नहीं हो सकती। कहते हैं कि अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहु को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई और उसके पति को 100 वर्ष की लंबी आयु प्राप्त हुई। तबसे ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है। मान्यता है कि यह व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही दांपत्य जीवन में प्रेम भी अथाह होता है।
माता पार्वती के इस व्रत का पूजन करने से व्रती का सौभाग्य अखंड होता है। यदि किसी के दांपत्य जीवन में कोई कष्ट होता है तो वह भी मां की कृपा से दूर हो जाता है। इसके देवी मां जीवन में सुख और शांति का आर्शीवाद देती हैं। यदि व्रती को संतान प्राप्ति की मनोकामना हो तो यह व्रत करने से उसकी यह भी कामना पूरी होती है। माता पार्वती भक्तों से अत्यंत शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं।
यहां केवल ध्यान इस बात का रखें कि यह व्रत पूरी श्रद्धा और निष्कपट भावना से करें। स्वयं की स्तुति, दूसरों की निंदा , दिन मे शयन, इन सबसे बचकर रहना चाहिए, तामसी भोजन, नशापान, का त्याग करना चाहिए , ब्रम्हचर्य का पालन करें।
जय माँ गौरी।
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