लग्न अनुसार अशुभ गुरु Ascendant inauspicious guru 

भारतीय ज्योतिष में, लग्न उस क्षण को कहते हैं जिस क्षण आत्मा धरती पर अपनी नयी देह से संयुक्त होती है। व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है। इन 12 भावों में से प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है।

इस लेख के माध्यम से हम लग्न के अनुसार अशुभ गुरु की चर्चा करेंगे जिससे आप स्वयं ही अपनी कुंडली में गुरु की स्थिति देख सके। इसमें आप केवल इस योग के आधार पर ही बिल्कुल शुभ या अशुभ न समझ लें अपितु अन्य योग भी देखें गुरु के साथ बैठे ग्रह को देखें तथा गुरु पर कौनसा ग्रह दृष्टि डाल रहा है ? यह देखें कि वह मित्र है अथवा शत्रु है। इसके बाद ही निष्कर्ष निकालें कि गुरु कितना अशुभ अथवा शुभ है।

मेष लग्न इस लग्न का स्वामी मंगल है जो गुरु का मित्र है परन्तु फिर भी लग्न में तृतीय, षष्ठम व एकादश भाव में तो बहुत ही अशुभ फल देता है। अनभव में द्वितीय तथा आय भाव में भी अशुभ फल देखे गये हैं।

वृषभ लग्न इस लग्न का स्वामी शुक्र है जो गुरु का परम शत्रु है, इसलिये गुरु के इस लग्न में अष्टम व दशम भाव में फिर भी कुछ फल मिल जाते हैं अन्यथा अन्य सभी भावों में अत्यधिक अशुभ होता है।

मिथुन लग्न इस लग्न का स्वामी स्वयं बुध होता है, इसलिये गुरु यहां धन भाव ततीय, चतुर्थ भाव, षष्ठम, अष्टम, नवम भाव व द्वादश भाव में अशुभ फल देता है।

कर्क लग्न इस लग्न का स्वामी चन्द्र है जो गुरु का परम मित्र है फिर भी गुरु लग्न, तृतीय, षष्ठम, अष्टम, व व्यय भाव में अशुभ होता है।

सिंह लग्न इस लग्न का स्वामी सूर्य गुरु का मित्र है फिर भी गुरु धन भाव, पराक्रम भाव, सुख भाव, रोग भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव तथा व्यय भाव में अधिक अशुभ फल देता है।

कन्या लग्न कन्या लग्न का स्वामी भी बुध होता है, इसलिये गुरु दशम भाव के अतिरिक्त प्रत्येक भाव में अशुभ फल देता है।

तुला लग्न इस लग्न का स्वामी शुक्र है जो गुरु का परम शत्रु है, इसलिये गुरु इस लग्न में प्रथम, तृतीय, षष्ठम, अष्टम, नवम तथा द्वादश भाव में विशेष अशुभ फल देता है।

वृश्चिक लग्न इस लग्न का स्वामी मंगल है जो गुरु का विशेष मित्र है फिर भी इस लग्न में गुरु अधिकतर भाव में अशुभ फल ही देता है जिसमें कि लग्न, तृतीय, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, एकादश तथा द्वादश भावों में विशेष अशुभ होता है।

धनु लग्न इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है परन्तु तृतीय, षष्ठम, सप्तम, अष्टम तथा एकादश घर में अत्यधिक अशुभ फल देता है।

मकर लग्न इस लग्न का स्वामी शनि है, इसलिये गुरु इस लग्न में केवल लग्न दशम, पंचम तथा नवम भाव में कुछ शुभ फल देता है अन्यथा अन्य सभी भावों में बहुत ही अधिक अशुभ फल देते देखा गया है।

कुंभ लग्न इस लग्न का स्वामी शनि है, इसलिये गुरु इस लग्न में केवल प्रथम व दशम भाव के अतिरिक्त अन्य सभी भावों में अशुभ फल देता है।

मीन लग्न इस लग्न का स्वामी भी स्वयं गुरु है परन्तु तृतीय, षष्ठम, अष्टम, एकादश तथा द्वादश भाव में अत्यधिक अशुभ फल देता है।

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