जानें भगवान शिव के रुद्र रूप
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है. कहा जाता है कि अगर सोमवार को भगवान की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामना पूरी होती है. शिव सदा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए सोमवार को सुबह-सुबह उठकर स्नान करके उनकी आराधना करनी चाहिए सोमवार के दिन सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान शिव को स्वंयभू कहा जाता है. भगवान शिव सृष्टि के संहारक है. उनके संहारक स्वरूप को रुद्र कहा जाता है. रुद्र के रूपों की कथा वेद-पुराणों में वर्णित है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान शिव के रुद्र रूपों के बारे में
1. शम्भु
ब्रह्मविष्णुमहेशानदेवदानवराक्षसाः ।
यस्मात् प्रजज्ञिरे देवास्तं शम्भुं प्रणमाम्यहम् ॥
अर्थात जिनसे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश और सभी देव, दानव, राक्षस, आदि की उत्पत्ति हुई है और जिन से सभी देवों का भी जन्म हुआ है, ऐसे प्रभु परम पावन शंभू को मैं प्रणाम करता हूं।
भगवान शंभू रुद्र देव का साक्षात ब्रह्म स्वरूप हैं और वही जगत के कर्ता, भर्ता और हर्ता हैं अर्थात जगत का निर्माण करने वाले, उसका पालन पोषण करने वाले और उसका संहार करने वाले हैं। वास्तव में रूद्र तो एक ही हैं, जो समस्त लोगों को अपनी शक्ति और ऊर्जा से संचालित करते रहते हैं। वही शंभू हैं, जिन्हें शिव और महादेव आदि के नाम से भी जाना जाता है। साक्षात रूप में शंभू ही महादेव हैं जो हमारे अंतर्मन में सभी के भीतर स्थित है। उनके शंभू स्वरूप को विभिन्न वेदों एवं पुराणों में स्थान दिया गया है।
2. पिनाकी
क्षमारथसमारूढ़ं ब्रह्मसूत्रसमन्वितम् ।
चतुर्वेदैश्च सहितं पिनाकिनमहं भजे ॥
अर्थात जो क्षमा रूपी रथ पर विराजमान हैं और ब्रह्मसूत्र से समन्वित हैं, चारों वेदों को धारण करते हैं, ऐसे पिनाकी भगवान का मैं ध्यान करता हूं।
पिनाकी के रूप में दूसरे मित्र को मान्यता दी गई है चारों वेदों के रूप में शक्ति स्वरुप भगवान बिना की रुद्र के रूप में समस्त कष्टों का शमन करते हैं। शैवागम के अनुसार दूसरे रूद्र पिनाकी हैं और चारों वेद इनके रूद्र स्वरूप ही हैं।
3. गिरीश
कैलासशिखरप्रोद्यन्मणिमण्डपमध्यमगः ।
गिरिशो गिरिजाप्राणवल्लभोऽस्तु सदामुदे ॥
अर्थात कैलाश पर्वत के सबसे ऊँचे शिखर पर मणि मंडप के बीच में स्थित माता पार्वती के प्रमाण प्रिय अर्थात प्राण वल्लभ भगवान गिरीश सदा हमें आनंद प्रदान करते रहें।
शैवागम के अनुसार तीसरे रुद्र भगवान गिरीश हैं, जो कैलाश पर निवास करते हैं और इस रूप में सभी को सुख और आनंद देते हैं। भगवान शिव को कैलाश अत्यंत प्रिय है और इसलिए विभिन्न प्रकार की लीलाऐं कैलाश पर्वत पर भगवान गिरीश द्वारा की जाती हैं।
4. स्थाणु
वामांगकृतसंवेशगिरिकन्यासुखावहम् ।
स्थाणुं नमामि शिरसा सर्वदेवनमस्कृतम् ॥
अपने वाम भाग में अर्थात वामांग में माता पार्वती को स्थान देकर सुख प्रदान करने वाले तथा संपूर्ण देव मंडल के प्राण स्वरूप भगवान स्थाणु को मैं सिर से नमन करता हूं।
शैवागम के अनुसार भगवान रुद्र का चौथा स्वरूप स्थाणु कहा जाता है। यही रुद्र आत्मलीन होने तथा समाधि और तप करने के कारण स्थाणु कहलाते हैं। भगवान स्थाणु के वाम भाग में माता पार्वती विराजमान रहती हैं। भगवान रूद्र के चौथे स्वरूप में स्थाणु रूद्र ने ही संसार के कल्याण के लिए सभी देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और पर्वतराज हिमावन की पुत्री पार्वती, जोकि माता आदिशक्ति का स्वरूप हैं, उन्हें अपने वाम भाग में धर्म पत्नी के रूप में स्थान दिया और समस्त संसार का कल्याण किया।
5. भर्ग
चंद्रावतंसो जटिलस्रिणेत्रोभस्मपांडरः ।
हृदयस्थः सदाभूयाद् भर्गो भयविनाशनः ॥
चंद्र का आभूषण जटाओं को धारण करने वाले त्रिनेत्र, भस्म लगाने से उज्जवल हैं तथा भय का नाश करने वाले भर्ग सदैव ही हमारे हृदय में निवास करें।
6. भव
योगीन्द्रनुतपादाब्जं द्वंद्वातीतं जनाश्रयम् ।
वेदान्तकृतसंचारं भवं तं शरणं भजे ॥
जिनके चरण कमलों की वंदना करते हैं जो द्वंद्वों से अतीत तथा भक्तों के आश्रय हैं और जिनसे वेदांत का प्रादुर्भाव हुआ हैं मैं उन भव की शरण-ग्रहण करता हूँ।
7. सदाशिव
ब्रह्मा भूत्वासृजंल्लोकं विष्णुर्भूत्वाथ पालयन् ।
रुद्रो भूत्वाहरन्नंते गतिर्मेऽस्तु सदाशिवः ॥
यही सदाशिव छठे रूद्र के रूप में जाने जाते हैं। भगवान सदाशिव का स्वरूप निराकार ब्रह्म के साकार रूप में जाना जाता है। यह सभी को वैभव प्रदान करते हैं सुख समृद्धि और आनंद की प्राप्ति भी इन्हीं के माध्यम से होती है।
8. शिव
गायत्री प्रतिपाद्यायाप्योंकारकृतसद्मने ।
कल्याणगुणधाम्नेऽस्तु शिवाय विहितानतिः ॥
गायत्री जिनका प्रतिपादन करती है, ओंकार ही जिनका भवन है, ऐसे समस्त कल्याण और गुणों के धाम शिव को मेरा प्रणाम है। शैवागम में रुद्र के सातवें स्वरूप को शिव कहा गया है। शिव शब्द नित्य विज्ञानानन्दघन परमात्मा का वाचक है। इसीलिए शैवागम भगवान शिव को गायत्री द्वारा प्रतिपाद्य एवं एकाक्षर ओंकार का वाच्यार्थ मानता है। शिव शब्द की उत्पत्ति ‘वश कान्तौ’ धातु से हुई है, जिसका तात्पर्य यह है कि जिसको सब चाहते हैं, उसका नाम शिव है।
9. हर
आशीविषाहार कृते देवौघप्रणतांघ्रये ।
पिनाकांकितहस्ताय हरायास्तु नमस्कृतः ॥
जो भुजंग- भूषण धारण करते हैं, देवता जिनके चरणों में विनित होते हैं, उन पिनाकपाणि हर को मेरा नमस्कार है।’ भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप का नाम हर है। भगवान हर को सर्पभूषण कहा गया है। इसका अभिप्राय यह है कि मंगल और अमंगल सब कुछ ईश्वर-शरीर में है। दूसरा अभिप्राय यह है कि संहारकारक रुद्र में संहार सामग्री रहनी ही चाहिए। समय पर सृष्टि का सृजन और समय पर उसका संहार दोनों भगवान रुद्र के ही कार्य हैं। सर्प से बढ़कर संहारकारक तमोगुणी कोई हो नहीं सकता क्योंकि अपने बच्चों को भी खा जाने की वृत्ति सर्प जाति में ही देखी जाती है।
10 शर्व
तिसृणां च पुरां हन्ता कृतांतमदभंजनः ।
खड्गपाणिस्तीक्ष्णदंष्ट्रः शर्वाख्योऽस्तु मुदे मम ॥
त्रिपुरहंता, यमराज के मद का भंजन करने वाले, खंगपाणि एवं तीक्ष्णदंष्ट्र शर्व हमारे लिए आनंददायक हों। भगवान रुद्र के नौवें स्वरूप का नाम शर्व है। सर्वदेवमय रथ पर सवार होकर त्रिपुर का संहार करने के कारण भी इन्हें शर्व रुद्र कहा जाता है। शर्व का एक तात्पर्य सर्वव्यापी, सर्वात्मा और त्रिलोकी का अधिपति भी होता है।
11. कपाली
दक्षाध्वरध्वंसकरः कोपयुक्तमुखाम्बुजः ।
शूलपाणिः सुखायास्तु कपाली मे ह्यहर्निशम् ॥
‘दक्ष-यज्ञ का विध्वंस करने वाले तथा क्रोधित मुख-कमल वाले शूलपाण कपाली हमें रात-दिन सुख प्रदान करें।’ शैवागम के अनुसार दसवें रुद्र का नाम कपाली है। पद्मपुराण (सृष्टिखंड-17) के अनुसार एक बार भगवान कपाली ब्रह्मा के यज्ञ में कपाल धारण करके गए, जिसके कारण उन्हें यज्ञ के प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया गया। उसके बाद भगवान कपाली रुद्र ने अपने अनंत प्रभाव का दर्शन कराया। फिर सब लोगों ने उनसे क्षमा माँगी और यज्ञ में उन्हें ब्रह्मा के उत्तर में बहुमान का स्थान प्रदान किया।
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