राहु 19 वीं साल में फ़ल जरूर देता है.. 

यह एक अकाट्य सत्य है कि किसी कुन्डली में राहु जिस घर में बैठा है, 19 वीं साल में उसका फ़ल जरूर देता है,सभी ग्रहों को छोड कर यदि किसी का राहु सप्तम में विराजमान है, चाहे शुक्र विराजमान हो, या बुध विराजमान हो या गुरु विराजमान हो, अगर वह स्त्री है तो पुरुष का सुख और पुरुष है तो स्त्री का सुख यह राहु 19 वीं साल में जरूर देता है। और उस फ़ल को 20 वीं साल में नष्ट भी कर देता है। इसलिये जिन लोगों ने 19 वीं साल में किसी से प्रेम प्यार या शादी कर ली उसे एक साल बाद काफ़ी कष्ट हुये। राहु किसी भी ग्रह की शक्ति को खींच लेता है, और अगर राहु आगे या पीछे 6 अंश तक किसी ग्रह के है तो वह उस ग्रह की सम्पूर्ण शक्ति को समाप्त ही कर देता है।

राहु की दशा का समय 18 साल का होता है, राहु की चाल बिलकुल नियमित है, तीन कला और ग्यारह विकला रोजाना की चाल के हिसाब से वह अपने नियत समय पर अपनी ओर से जातक को अच्छा या बुरा फ़ल देता है, राहु की चाल से प्रत्येक 18 वीं साल में जातक के साथ अच्छा या बुरा फ़ल मिलता चला जाता है, अगर जातक की 19 वीं साल में किसी महिला या पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बने है, तो उसे 39 वीं साल में भी बनाने पडेंगे, अगर जातक किसी प्रकार से 18 वीं साल में जेल या अस्पताल या अन्य बन्धन में रहा है, तो उसे 39 वीं साल में, 57 वीं साल में भी रहना पडेगा। राहु की गणना के साथ एक बात और आपको ध्यान में रखनी चाहिये कि जो तिथि आज है, वही तिथि आज के १९ वीं साल में होगी।

what is rahu राहु क्या है ? 

Rahu राहु एक छाया ग्रह है, जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है, इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है, और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं, उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है, यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है।

राहु एक छाया ग्रह के रूप में माना जाता है। यह मनुष्य को अपने भावानुसार नशे में रखता है और उस नशे के द्वारा व्यक्ति को जीवन में किसी अन्य विषय मे सोचने की फ़ुर्सत नहीं देता है।

1. राहु जब लगन में होता है तो व्यक्ति को अपने पराक्रम और शिक्षा के साथ पति/पत्नी और धर्म के भाव का नशा होता है,

2. दूसरे भाव में वह धन और कुटुम्ब का नशा देता है,

3. तीसरे भाव में अचानक अपने पराक्रम को प्रदर्शित करने का नशा देता है,

4. चौथे भाव में मानसिक शक या शक्की मिजाज बनाने तथा अपने को ही सब कुछ मानने का नशा देता है,

5. पंचम भाव मे होने पर यह शिक्षा और सन्तान तथा जल्दी से धन कमाने वाले साधनों के साथ खेल कूद और मनोरंजन में घूमने का नशा देता है,

6. छठे भाव मे होने पर वह गूढ बातों कर्जा दुश्मनी और बीमारी पालने का नशा देता है

7. सप्तम में होने पर वह पति या पत्नी सुख को बहुत ही सर्वोपरि मानने लगता है और उसके खून के अन्दर के तरह का उबाल चलता रहता है तथा उसके लिये सबसे अच्छी बाते केवल पति पत्नी के सम्बन्धो से जुडी ही चला करती है,

8. अष्टम भाव मे होने पर खाने पीने या जीवन भर दवाइयों को लेते रहने का नशा चलता रहता है कब खुद मर जाये या किसी को मारडाले इसका पता नही होता है,

9. नवे भाव मे जाकर यह पठन पाठन और धर्म ज्योतिष आदि का नशा दे देता है, अपने पूर्वजों को हमेशा बखानता रहता है,

10. दसवें भाव में उसे काम का नशा होता है, वह काम करता है तो भूत की तरह से और नही करता है तो बिलकुल आलसी बन कर पडा रहता है।

11. ग्यारहवे भाव में वह मित्रों के लिये और हमेशा अपने लिये लाभ कमाने के रास्तों को सोचने के बारे मे ही नशा रखता है,

12. बारहवे भाव मे वह हमेशा किसी न किसी बात को दिमाग मे लेकर सोचता रहता है और रात रात भर सोता नही है,नींद नही आने की बीमारी की बजह से वह खाता पीता भी नही शरीर कमजोर होता जाता है,हमेशा बुरे सपने देखता है और डरता रहता है। इस प्रकार से राहु एक नशे की तरह से व्यक्ति के जीवन में अपने पैरों को जमाकर रहता है।

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