ऋषिओ के अनुसार यह मंत्र का बीज होता है यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है ऋषिओ का मानना हे की किसी भी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है जब भी हम मंत्र का जप करते हैं वह तभी प्रभावशाली होता है जब उसे हम योग्य बीज चुन कर करते हैं । मानना हे की बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है । प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं ।

उदाहरण के लिए– ॐ, ऐं, क्रीं, क्लीम् 

बीज मंत्रों से अनेक रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण से मनन-गुनन करने की है। पौराणिक, वेद, शाबर आदि मंत्रों में बीज मंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं उठते-बैठते, सोते-जागते उस मंत्र का सतत् शुद्ध उच्चारण करते रहें। आपको चमत्कारिक रुप से अपने अन्दर अन्तर दिखाई देने लगेगा।

बीज मंत्र की महिमा 

यह बात सदैव ध्यान रखें कि बीज मंत्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को एक निश्चित लय और ताल से करने में है। बीज मंत्र में सर्वाधिक महत्व उसके बिन्दु में है और यह ज्ञान केवल वैदिक व्याकरण के सघन ज्ञान द्वारा ही संभव है।

आप स्वयं देखें कि एक बिन्दु के तीन अलग-2 उच्चारण हैं।

गंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है।

गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है।

गंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है।

अर्थात इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्चारण हो रहा है।

कौमुदी सिद्धांत के अनुसार वैदिक व्याकरण को तीन सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है-

1 – मोनुस्वारः

2 – यरोनुनासिकेनुनासिको

तथा

3- अनुस्वारस्य ययि पर सवर्णे।

बीज मंत्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अन्तर को स्पष्ट किए बिना शुद्ध जाप असम्भव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता। इसलिए सर्वप्रथम किसी बौद्धिक व्यक्ति से अपनेअनुकूल मंत्र को समय-परख कर उसका विशुद्ध उच्चारण अवश्य जान लें। अपने अनुरूप चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते-फिरते उठते-बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इसका उद्देश्य केवल शुद्ध उच्चारण एक निश्चित ताल और लय से नाड़ियों में स्पदन करके स्फोट उत्पन्न करना है।

कां– पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आंतों की सूजन में लाभकारी।

गुं– मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी।

शं– वाणी दोष, स्वप्न दोष, महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार औेर हर्निया आदि रोगों में उपयोगी।

घं– काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के दुष्प्रभावके कारण जनित रोग-विकार को शांत करने मेंसहायक।

ढं– मानसिक शांति देने में सहायक। अप्राकृतिक विपदाओं जैसे मारण, स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी।

पं– फेफड़ों के रोग जैसे टी.बी., अस्थमा, श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी।

बं– शूगर, वमन, कफ, विकार, जोडों के दर्द आदि में सहायक।

यं– बच्चों के चंचल मन के एकाग्र करने में अत्यत सहायक।

रं– उदर विकार, शरीर में पित्त जनित रोग, ज्वर आदि में उपयोगी।

लं- महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म, उनके अनेक गुप्त रोग तथा विशेष रूप से आलस्य को दूर करने में उपयोगी।

मं– महिलाओं में स्तन सम्बन्धी विकारों में सहायक।

धं– तनाव से मुक्ति के लिए मानसिक संत्रास दूर करने में उपयोगी ।

ऐं- वात नाशक, रक्त चाप, रक्त में कोलेस्ट्राॅल, मूर्छा आदि असाध्य रोगों में सहायक।

द्वां– कान के समस्त रोगों में सहायक।

ह्रीं– कफ विकार जनित रोगों में सहायक।

ऐं– पित्त जनित रोगों में उपयोगी।

वं– वात जनित रोगों में उपयोगी।

शुं– आंतों के विकार तथा पेट संबंधी अनेक रोगों में सहायक ।

हुं– यह बीज एक प्रबल एन्टीबॉयटिक सिद्ध होता है। गाल ब्लैडर, अपच, लिकोरिया आदि रोगों में उपयोगी।

अं– पथरी, बच्चों के कमजोर मसाने, पेट की जलन, मानसिक शान्ति आदि में सहायक

इस बीज का सतत जप करने से शरीर में शक्ति का संचार उत्पन्न होता है।

विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं 

ॐ- परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है.

ह्रीं- माया बीज,

श्रीं- लक्ष्मी बीज,

क्रीं- काली बीज,

ऐं- सरस्वती बीज,

क्लीं- कृष्ण बीज

बीजमंत्र के लाभ

कं- मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त- विकृति में..

ह्रीं- मधुमेह हृदय की धड़कन में

घं- स्वप्नदोष व प्रदररोग में

भं- बुखार दूर करने के लिए

क्लीं– पागलपन में

सं- बवासीर मिटाने के लिए

वं- भूख प्यास रोकने के लिए

लं- थकान दूर करने के लिए

बं– वायु रोग और जोदो के दर्द के लिये

बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं 

इनका व्यापक अर्थ होता है बीज मंत्रों के उच्चारण से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है.. क्योंकि, यह विभिन्न देवी-देवताओं के सूचक है

ह्रीं इस मायाबीज में ह्= शिव, र= प्रकृति, नाद= विश्वमाता एवं बिंदु=

दुखहरण है इस प्रकार मायाबीज का अर्थ है- शिवयुक्त जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर करें

श्री [श्री बीज या लक्ष्मी बीज]:

इस लक्ष्मी बीज में श्= महालक्ष्मी, र= धन संपत्ति, ई= महामाया, नाद= विश्वमाता एवं बिन्दु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस का अर्थ है धन संपत्ति की अधिष्ठात्री जगजननी मां लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें।

ऎं [वाग्भव बीज या सारस्वत बीज]: 

इस वाग्भव बीज में ऎ= सरस्वती, नाद= जगन्माता और बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- जगन्माता सरस्वती मेरे ऊपर कृपा करें

क्लीं [कामबीज या कृष्णबीज]: 

इस कामबीज में क= योगस्त या

श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई= योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु= दुखहरण इस प्रकार इस कामबीज का अर्थ है- राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें कृष्णबीज का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें

क्रीं [कालीबीज या कर्पूरबीज]:

इस बीज मंत्र में क= काली, र= प्रकृति,

ई= महामाया, नाद= विश्वमाता, बिंदु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस बीजमंत्र का अर्थ है, जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें…

गं [गणपति बीज]: 

इस बीज में ग्= गणेश, अ= विƒननाशक एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ विƒननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।

दूं [दुर्गाबीज]: 

इस दुर्गाबीज में द्= दुर्गतिनाशनी दुर्गा, = सुरक्षा एवं बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इसका अर्थ है दुर्गतिनाशनी दुर्गा मेरी रक्षा करे और मेरे दुख दूर करे…

हौं [प्रसादबीज या शिवबीज]: 

इस प्रसाद बीज में ह्= शिव, औ= सदाशिव एवं बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इस बीज का अर्थ है,भगवान शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें

इस प्रकार बीज मंत्रों की शक्ति इतनी असीम होती है, कि देवताओं को भी अपने वशीभूत कर लेती है, तथा जप अनुष्ठान द्वारा देवता का साक्षात्कार करा देती है बीज मंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति मिलकर देवता के विराट् स्वरूप का संकेत देती है

मंत्रों का प्रयोग मानव ने अपने कल्याण के साथ-साथ दैनिक जीवन की संपूर्ण समस्याओं के समाधान हेतु यथासमय किया है, और उसमें सफलता भी पाई है परंतु आज के भौतिकवादी युग में यह विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु बनकर रह गई है मंत्रों में छुपी अलौकिक शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाया जा सकता हैं सबसे पहले प्रश्न यह उठता है, कि ‘मंत्र’ क्या है, इसे कैसे परिभाषित किया जा सकता है इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है

किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह मंत्र कहलाता है जो शब्द जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है, उसे उस देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं मंत्र एक ऐसी गुप्त ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं

मंत्रों में देवी-देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे राम के लिए ‘रां’, हनुमानजी के लिए ‘हं’, गणेशजी के लिए ‘गं’, दुर्गाजी के लिए ‘दुं’ का प्रयोग किया जाता है… इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार या अनुनासिक (जं) संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें ‘नाद’ कहते हैं.. नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट शक्ति को प्रकट किया जाता है

लिंगों के अनुसार मंत्रों के तीन भेद होते हैं 

पुर्लिंग : जिन मंत्रों के अंत में हूं या फट लगा होता है

स्त्रीलिंग : जिन मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है

नपुंसक लिंग : जिन मंत्रों के अंत में ‘नमः’ प्रयुक्त होता है

अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है

मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है… मंत्र की

साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है

तथा मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है मंत्र लय, नादयोग के

अंतर्गत आता है मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैनिक,

भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है रोग

निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है मानव

शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण

मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है

शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है.. मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं.. मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं :

मूलाधार 4×125=500

स्वधिष्ठान 6×125=750

मनिपुरं 10×125=1250

हृदयचक्र 13×125=1500

विध्रहिचक्र 16×125=2000

आज्ञाचक्र 2×125=250

कुल योग 6250 (विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की संख्या)

भारतीय कुंडलिनी विज्ञान के अनुसार मानव के स्थूल शरीर के साथ-साथ 6 अन्य सूक्ष्म शरीर भी होते हैं विशेष पद्धति से सूक्ष्म शरीर के फोटोग्राफ लेने से वर्तमान तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों या रोग के बारे में पता लगाया जा सकता है

सूक्ष्म शरीर के ज्ञान के बारे में जानकारी न होने पर मंत्र शास्त्र को जानना अत्यंत कठिन होगा मानव, जीव-जंतु, वनस्पतियों पर प्रयोगों द्वारा ध्वनि परिवर्तन (मंत्रों) से सूक्ष्म ऊर्जा तरंगों के उत्पन्न होने को प्रमाणित कर लिया गया है

मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें ‘धी’ ऊर्जा कहते हैं जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है मंत्रों का प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ता है जैसा कि बताया गया है कि चारों वेदों में कुल मिलाकर 20 हजार 389 मंत्र हैं, प्रत्येक वेद का अधिष्ठाता देवता है ऋग्वेद का अधिष्ठाता ग्रह गुरु है। यजुर्वेद का देवता ग्रह शुक्र, सामवेद का मंगल तथा अथर्ववेद का अधिपति ग्रह बुध है मंत्रों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भ में अशुभ ग्रहों द्वारा उत्पन्न अशुभ फलों के निवारणार्थ किया जाता है

ज्योतिष वेदों का अंग माना गया है। इसे वेदों का नेत्र कहा गया है भूत ग्रहों से उत्पन्न अशुभ फलों के शमनार्थ वेदमंत्रों, स्तोत्रों का प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली माना गया है  उदाहरणार्थ आदित्य हृदयस्तोत्र सूर्य के लिए, दुर्गास्तोत्र चंद्रमा के लिए, रामायण पाठ गुरु के लिए, ग्राम देवता स्तोत्र राहु के लिए, विष्णु सहस्रनाम, गायत्री मंत्रजाप, महामृत्युंजय जाप, क्रमशः बुध, शनि एवं केतु के लिए, लक्ष्मीस्तोत्र शुक्र के लिए और मंगलस्रोत मंगल के लिए मंत्रों का चयन प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों से किया गया है वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है, कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान की 72 नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान क्रियाशील रहते हैं

मंत्र विज्ञान मंत्र एक गूढ़ ज्ञान है.. सद्गुरु की कृपा एवं मन को एकाग्र कर जब इसको जान लिया जाता है, तब यह साधक की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है मंत्रागम के अनुसार दैवी शक्तियों का गूढ़ रहस्य मंत्र में अंतर्निहित है व्यक्ति की प्रसुप्त या विलुप्त शक्ति को जगाकर उसका दैवीशक्ति से सामंजस्य कराने वाला गूढ़ ज्ञान मंत्र कहलाता है यह ऐसी गूढ़ विद्या है, जो साधकों को दु:खों से मुक्त कर न केवल उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है, बल्कि उनको परम आनंद तक ले जाती है मंत्र विद्या विश्व के सभी देशों, मानवजाति, धर्मों एवं संप्रदायों में हजारों-लाखों वर्षो से आस्था एवं विश्वास के साथ प्रचलित है

मंत्रों के प्रकार 

मंत्र दो प्रकार के होते हैं

वैदिक मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र

वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मंत्र कहलाती हैं, और तंत्रागमों में प्रतिपादित मंत्र तांत्रिक मंत्र कहलाते हैं  तांत्रिक मंत्र तीन प्रकार के होते हैं 

बीज मंत्र, नाम मंत्र एवं माला मंत्र..

बीज मंत्र भी तीन प्रकार के होते हैं

मौलिक बीज, यौगिक बीज तथा कूट बीज

इसी तरह माला मंत्र दो प्रकार के होते हैं

लघु माला मंत्र एवं बृहद माला मंत्र बीज मंत्र दैवी या आध्यात्मिक शक्ति को अभिव्यक्ति देने वाला संकेताक्षर बीज कहलाता है इसकी शक्ति एवं रूप अनंत हैं.. बीज मंत्र विभिन्न देवताओं, धर्मो एवं उनके संप्रदायों की साधनाओं के माध्यम से साधक को भिन्न-भिन्न प्रकार के रहस्यों से परिचित करवाता है। शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन एवं बौद्ध धर्मो के सभी संप्रदायों में ‘ह्रीं’, ‘कलीं’ एवं ‘श्रीं’ आदि बीजों का मंत्रसाधना में समान रूप से प्रयुक्त होना इसका साक्ष्य है। बीज मंत्र समस्त अर्थो का वाचक एवं बोधक होने के बावजूद अपने आपमें गूढ़ है।

अपने आराध्य देव का समस्त स्वरूप इसके बीज मंत्र में निहित होता है।

ये बीज मंत्र तीन प्रकार के होते हैं मौलिक, यौगिक व कूट। इनको कुछ आचार्य एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं.. जब बीज अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि जब यह बीज दो वर्षो के योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है,

जैसे- ह्रीं, क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्ष्रौं आदि इसी तरह जब बीज तीन या उससे अधिक वर्षो से बनता है

तब यह कूट बीज कहलाता है बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है..नाम मंत्र -बीज रहित मंत्रों को नाम मंत्र कहते हैं, जैसे-

ॐ नम: शिवाय, ॐ नमो नारायणाय एवं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय आदि. इन मंत्रों के शब्द उनके देवता, उनके रूप एवं उनकी शक्ति को अभिव्यक्ति देने में समर्थ होते हैं इसलिए इन मंत्रों को भक्तिभाव से कभी भी सुमिरन किया जा सकता है माला मंत्र कुछ आचार्यो के अनुसार 20 अक्षरों से अधिक और अन्य आचार्यो के अनुसार 32 अक्षरों से अधिक अक्षर वाला मंत्र माला मंत्र कहलाता है, जैसे

ऊँ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते,

देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:

माला मंत्रों के वर्णो की पूर्व मर्यादा 20 या 32 अक्षर हैं, लेकिन इनकी उत्तर मर्यादा का मंत्रशास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता इसलिए माला मंत्र कभी कभी छोटे और कभी-कभी अपेक्षाकृत अधिक लंबे होते हैं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे जितनी प्रगति कर ली हो पर बीमारियों पर नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है आंकड़े तो यहां तक बयान करते हैं, कि दवाओं के अनुपात में रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से हो रही है किन्तु ऐसी विकट स्थिति में भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है.. प्राचीन समय में भारत में यंत्र-तंत्र और मंत्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन रहा है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी है.. आज जिन बीमारियों को लाइलाज माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई निवारण संभव है

कहा जाता है कि यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है…

हमारे चार वेदों में से एक ऋग्वेद में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार दिया गया है 

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

इस मंत्र को संपुटयुक बनाने के लिए के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है 

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है 

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाए

यही नियम ओर तथ्य ग्रह आराधन में भी लागू होती है मंत्र से बीज जोड़ा जाने पर इसका प्रभाव अनेकों गुना बढ़ जाता है

नवग्रहों के मूल मंत्र 

सूर्य : ॐ सूर्याय नम:

चन्द्र : ॐ चन्द्राय नम:

गुरू : ॐ गुरवे नम:

शुक्र : ॐ शुक्राय नम:

मंगल : ॐ भौमाय नम:

बुध : ॐ बुधाय नम:

शनि : ॐ शनये नम: अथवा ॐ शनिचराय नम:

राहु : ॐ राहवे नम:

केतु : ॐ केतवे नम:

नवग्रहों के बीज मंत्र 

सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:

चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:

गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:

शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:

मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:

राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

साथ ही समझे तो सर्व प्रचलित शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमःशिवाय अथवा दुर्गा का नवारण मंत्र अपने मे अनेकों अद्भुत रहस्य समाये हुये है

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