माता श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित 

मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के दिन माँ पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप के अवतरण दिवस को अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसी दिन मां पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण किया था। इस दिन माँ अन्नपूर्णा की आराधना करनी चाहिए, माँ की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नही होती है। अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव को अन्न दान की विशेष महिमा है अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव को मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है, जिससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों का घर अन्न, खाने-पीने की वस्तुओं और धन्य-धान से परिपूर्ण होता है। जब भगवान शिव, काशी में मनुष्य को मोक्ष प्रदान कर रहे थे, तब माता पार्वती, अन्नपूर्णा के रूप में जीवित जनों के भोजन की व्यवस्था स्वयं देखती थी।

जो ब्यक्ति अन्नपूर्णा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है उसके जीवन मे अनवरत खाद्य पदार्थ और सुख समृद्धि की प्राप्ति बनी रहती है।

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्य रत्नाकरी

निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी ।

प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 1 ॥ 

अर्थ आप नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली हैं, वर तथा अभय देनेवाली हैं, सौन्दर्यरूपी रत्नों की खान हैं, भक्तों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करके उन्हें पवित्र कर देनेवाली हैं, साक्षात् माहेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, [पार्वती के रूपमें जन्म लेकर] आपने हिमालय वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी (स्वामिनी) हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।1।।

नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमाम्बराडम्बरी

मुक्ताहार विलम्बमान विलसत्-वक्षोज कुम्भान्तरी ।

काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 2 ॥ 

अर्थ आप अनेकविध रत्नों के विचित्र आभूषण धारण करनेवाली हैं, आप स्वर्ण-वस्त्रों से शोभा पानेवाली हैं, आपके वक्ष स्थल का मध्यभाग मुक्ताहार से सुशोभित हो रहा है, आपके श्री अंग केशर और अगर से सुवासित हैं, आप काशीपुर की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।2।।

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी

चन्द्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी ।

सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 3 ॥ 

अर्थ आप योगीजन को योग का आनन्द प्रदान करती हैं, शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभाव- तरंगों के समान कान्तिवाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं। अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।। 3।।

कैलासाचल कन्दरालयकरी गौरी-ह्युमाशाङ्करी 

कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योङ्कार-बीजाक्षरी ।

मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 4 ॥

अर्थ आपने कैलास पर्वत की गुफा को अपना निवास स्थल बना रखा है, आप गौरी, उमा, शंकरी तथा कौमारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, आप वेदार्थ तत्त्व का अवबोध करानेवाली हैं, आप ‘ओंकार’ बीजाक्षर स्वरूपिणी हैं, आप मोक्षमार्गक कपाट का उद्घाटन करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।4।।

दृश्यादृश्य-विभूति-वाहनकरी ब्रह्माण्ड-भाण्डोदरी 

लीला-नाटक-सूत्र-खेलनकरी विज्ञान-दीपाङ्कुरी ।

श्रीविश्वेशमनः-प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 5 ॥

अर्थ आप दृश्य तथा अदृश्य रूप अनेकविध ऐश्वर्यरूपी वाहनों पर आसनस्थ होनेवाली हैं, आप अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करनेवाली हैं, माया प्रपंच के (कारणभूत अज्ञान) सूत्र का भेदन करनेवाली हैं, आप विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभूति) – रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान विश्वनाथ मन को प्रसन्न रखनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता है, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे शिक्षा प्रदान करें ।।5।।

उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता कृपासागरी 

वेणी-नीलसमान-कुन्तलधरी नित्यान्न-दानेश्वरी ।

साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 6 ॥

अर्थ आप पृथ्वी तल पर स्थित सभी प्राणियों की ईश्वरी (स्वामिनी) हैं, आप ऐश्वर्यशालिनी हैं, सभी जीवों में मातृभाव से विराजती हैं, अन्न से भण्डार को परिपूर्ण रखनेवाली देवी हैं, आप नील वर्ण की वेणी के समान लहराते केश-पाशवाली हैं, आप निरन्तर अन्न दानमें लगी रहती हैं। समस्त प्राणियोंको आनन्द प्रदान करनेवाली हैं। सर्वदा भक्तजनों का मंगल करनेवाली हैं, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपना आश्रय देनेवाले हैं, आप [ समस्त प्राणियों के माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।6।।

आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी 

काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी ।

स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 7 ॥

अर्थ आप ‘अ’ से ‘क्ष’ पर्यन्त समस्त वर्णमाला व्याप्त हैं, आप भगवान शिवके तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम) को प्रादुर्भूत करनेवाली आप केसर के समान आभावाली हैं, आप स्वर्गीय, पातालगंगा तथा भागीरथी – इन तीन जल – राशियों स्वामिनी हैं, आप गंगा, यमुना तथा सरस्वती – इन तीनों नदियों की लहरों के रूप में विद्यमान हैं। आप विभिन्न रूपों में नित्य अभिव्यक्त होनेवाली हैं, आप रात्रिस्वरूपा हैं, आप अभिलाषी भक्त जनों की कामनाएँ पूर्ण करनेवाली हैं, लोगों का अभ्युदय करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।7।।

देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुन्दरी 

वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।

भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 8 ॥

अर्थ आप सभी प्रकार के अद्भुत रत्नाभूषणों से सजी हुई देवी के रूप में शोभा पाती हैं, आप दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप में अपने वाम तथा स्वादमय पयोधरसे [भक्त शिशुओंका] प्रिय सम्पादन करनेवाली हैं, आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवाली और सदा उनका कल्याण करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [ समस्त प्राणियों की। माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।8।।

चन्द्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी चन्द्रांशु-बिम्बाधरी 

चन्द्रार्काग्नि-समान-कुण्डल-धरी चन्द्रार्क-वर्णेश्वरी 

माला-पुस्तक-पाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 9 ॥ 

अर्थ आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के समान जाज्वल्यमान प्रतीत होती हैं, आप चन्द्र किरणों के समान [शीतल] तथा बिम्बाफल के समान रक्त-वर्णक अधरोष्ठवाली हैं, चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करनेवाली हैं, आप चन्द्रमा तथा सूर्य के समान देदीप्यमान वर्णवाली ईश्वरी आपने अपने हाथों में माला, पुस्तक, पाश तथा अंकुश धारण कर रखा है, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं; आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।9।।

क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी 

सर्वानन्दकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।

दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी 

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 10 ॥

अर्थ आप घोर संकट की स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करती है, भक्तों को महान् अभय प्रदान करती हैं। आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं, आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं, आप सदा कल्याण करनेवाली हैं, आप भगवान् विश्वनाथका ऐश्वर्य धारण करनेवाली है यज्ञ का विध्वंस करके आप दक्ष को रुलानेवाली हैं, आप रोग से मुक्त करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता है आप भवगती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।10।।

अन्नपूर्णे सादापूर्णे शङ्कर-प्राणवल्लभे ।

ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ 11 ॥

अर्थ सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण रहनेवाली तथा भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हे अन्नपूर्णे! हे पार्वती!! ज्ञान तथा वैराग्यकी सिद्धिके लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।11।।

माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः ।

बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ 12 ॥

अर्थ भगवती पार्वती मेरी माता है, भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं। सभी शिवभक्त मेरे बन्धु – बान्धव हैं और तीनों लोक मेरा अपना ही देश है यह भावना सदा मेरे मन में बनी रहे। ।।12।।

इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्यविरचित श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

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