भाद्रपद मास का महत्व और कथा
सावन महीने से लेकर कार्तिक मास तक सनातन धर्म में पर्वों का चरणबद्ध क्रम रहता है। शिवमास सावन के बाद, भाद्रपद (भादो) महीने की शुरुवात होती है, इस महीने को कल्याणकारी परिणाम देने वाले व्रतों का महीना कहा जाता है। इस महीने में जहां हम लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण सहित राधा व बलराम जी का जन्मोत्सव मनाते हैं, वहीं महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्यवती हरितालिका तीज का व्रत भी इसी महीने में पड़ता है। इसके साथ ही अनंत पुण्य फल प्रदान करने वाले अनंत चतुर्दशी व गणेश चतुर्थी पर्व भी इसी महीने में पड़ते हैं।
भाद्रपद मास का महत्व
भगवान शिव को समर्पित सावन माह बीतने के बाद हिन्दु पंचांग का छठा भाद्रपद मास जिसे भादौं भी कहते हैं, प्रारम्भ हो चुका है। सावन की तरह ही भादौं का महीना धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाद्रपद मास में हिन्दु धर्म के अनेक बड़े व्रत, पर्व, त्यौहार पड़ते हैं जिनमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेशोत्सव, ऋषि पंचमी प्रमुख हैं। भादौं मास में पड़ने वाले इन विशिष्ट उत्सवों ने सदियों से भारतीय धर्म परम्पराओं और लोक संस्कृति को समृद्ध किया है।
हिन्दु धर्म परम्पराओं में इस माह में जहां कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम पूज्य देवता श्रीगणेश का जन्मोत्सव होता है। इस प्रकार भादौं मास कर्म और बुद्धि के समन्वय और साधना से जीवन में सफलता पाने का मार्ग दिखलाता है। भाद्रपद मास, चातुर्मास के चार पवित्र माहों का दूसरा माह है जो धार्मिक तथा व्यावहारिक नजरिए से जीवनशैली में संयम और अनुशासन को अपनाना दर्शाता है।
इस माह में अनेक लोक व्यवहार के कार्य निषेध होने के कारण यह माह शून्य मास भी कहलाता है, इसमें नए घर का निर्माण, विवाह, सगाई आदि मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते, इसलिए यह माह भकित, स्नान-दान के लिए उत्तम समय माना गया है। उत्तम स्वास्थ्य की दृषिट से भादौं मास में दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जाते हैं।
व्यक्तित्त्व निखारना सीखें भाद्रपद के महीने से
हिन्दु पंचांग में जितनी भी तिथि और माह बताए गए हैं, वे सब कोई संदेश जरूर देते हैं। भाद्रपद शब्द संस्कृत के भद्र शब्द से बना है, जिसका अर्थ है सभ्य। दरअसल यह महीना व्यक्तित्व निखारने का महीना है। भाद्रपद मास से पहले पड़ने वाला माह सावन शिव भकित का महीना होता है,
जिस तरह सावन रिमझिम बरसता है और इसका पानी धरती के भीतर तक उतरता है, ऐसे ही भकित हमारे भीतर तक बस जाती है। जब इंसान के भीतर तक भकित उतर जाती है तो उसके व्यकितत्व में अपने-आप ही विनम्रता, अपनत्व और समत्व जैसे भाव आ जाते हैं, सभ्यता हमारे व्यकितत्व में उतर जाती है। भादौं का महीना तेज बौछारों वाली बारिश का होता है, यह सिखाता है कि जब भी कोई काम करो, जम कर करो। भादौं समय की कीमत बताता है, जैसे तेज पानी तत्काल बह जाता है, ऐसे ही वक्त भी लगातार गुजर रहा है।
भाद्रपद मास महात्म्य कथा (Great story of Bhadrapada month in Hindi)
एक समय नारदजी तीनों लोकों में भ्रमण करते-करते एक तेजस्वी ऋषि के यहां पहुंचे, ऋषि के आग्रह करने पर नारदजी ने भादौं मास का महत्व सुनाया। भादौं मास का महत्व ब्रहमा जी के प्रार्थना करने पर स्वयं भगवान विष्णु ने सुनाया था, इसलिए उत्तम, मध्यम अथवा अधम किसी भी प्रकार का मनुष्य क्यों न हो, इस उत्तम भादौं माह में व्रत कर महात्म्य सुनने से अतिपवित्र होकर बैकण्ठ में निवास करता है। प्राचीन काल की बात है, एक दम्पति, शम्बल और सुमति, को देवयोग से कोई संतान नहीं थी। एक समय भाद्रपद मास आने पर नगर के बहुत से स्त्री-पुरूष भादौं स्नान के लिए तैयार हुए,
सुमति ने भी भाद्रपद स्नान करने का निश्चय किया परन्तु उसका पति शम्बल बहुत समझाने के बाद ही तैयार हुआ। पहले दिन तो उसने स्नान किया परन्तु दूसरे दिन शम्बल को तीव्र ज्वर हो गया जिसके फलस्वरूप पूरे भाद्रपद माास वह स्नान न कर पाया और अंतत: उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद नरक की यातनाऐं भोगकर उसने कुत्ते की योनि में जन्म लिया। इस योनि में भूख और प्यास से वह अति दुर्बल हो गया, कुछ काल व्यतीत होने पर वह वृद्ध हो गया जिससे उसके सभी अंग शिथिल हो गए। एक दिन उसे कहीं से मांस का एक टुकड़ा मिला, अचानक वह टुकड़ा उसके मुंह से छूटकर जल में गिर गया।
देवयोग से उस समय भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष चल रहा था। उस टुकड़े को पाने के चक्कर में वह भी जल में कूद गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसी समय भागवान के पार्षद दिव्य विमान लेकर आए और उसे बैकुण्ड ले गए। तब उसने कहा, ”मैंने तो किसी भी जन्म में कोर्ई पुण्य कर्म नहीं किया, फिर बैकुण्ठ कैसा ? पार्षदों ने कहा, ”तुमने अन्जाने में भी भाद्रपद मास में स्नान करके अपने प्राण गंवाऐ हैं, इसी पुण्य के प्रताप से तुम्हें बैकुण्ठ प्राप्त हुआ है। तब नारद जी बोले, ”जब अज्ञात स्नान करने का फल उसे इस प्रकार प्राप्त हुआ, तब भाद्रपद मास में श्रद्धा से स्नान तथा दान आदि किया तो जाए तो पुण्य फल अत्यधिक प्राप्त होता है।
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