Dharmaraj Dashami धर्मराज दशमी का व्रत व त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी को है। धर्मराज को यमराज भी कहते हैं। यमराज को पितृपति और दण्डधर भी कहते हैं। चैत्र नवरात्र की दशमी तिथि को कुछ विशेष उपाय करके घर में हो रही दुखद घटनाओं को रोक सकते हैं। अकाल मौतें, दुर्घटनाएं, बीमारी आदि दिक्‍कतों को समाप्‍त कर सकते हैं। मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। भगवान धर्मराज यमराज का मानसिक पूजन करके उनका आशीर्वाद प्रात्‍प किया जा सकता है

धर्मराज दशमी लाभ तथा महत्त्व Dharmaraj Dashami Benefits and Importance in Hindi 

भगवान श्रीकृष्ण के मुख से इस कथा को सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे गोविन्द यह दशमी व्रत किस प्रकार और कैसे किया जाता है तथा इसके क्या लाभ हैं ? आप सर्वज्ञ हैं। आप इसे बतायें। युधिष्ठिर की बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस व्रत के प्रभाव से राजपूत्र अपना राज्य, कृषि, खेती, वणिक व्यापार में लाभ, पुत्रार्थी पुत्र तथा मानव धर्म, अर्थ एवं काम की सिद्धि प्राप्त करते हैं। कन्या श्रेष्ठ वर प्राप्त करती है। ब्राह्मण निर्विघ्र यज्ञ सम्पन्न कर लेता है।

असाध्य रोगों से पीड़ित रोगी रोग से मुक्त हो जाता है और पति के यात्रा-प्रवास पर जाने पर और जल्दी न आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकती है। शिशु के दन्तजनिक पीड़ा में भी इस व्रत से पीड़ा दूर हो जाती है और कष्ट नहीं होता। इसी प्रकार अन्य कार्यों की सिद्धि के लिए इसी दशमी व्रत को करना चाहिए। जब भी जिस किसी को कष्ट पड़े, उसकी निवृत्ति के लिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से करना चाहिए।

यह व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके देवताओं की पूजा कर रात्रि में पुष्प, अलक तथा चन्दन आदि से दस दिशाओ की पूजा करनी चाहिए। घर के आँगन में जौ से अथवा पिष्टातक से पूर्वादि दसों दिशाओं के अधिपतियों की प्रतिमाओं को उनके वाहन तथा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कर उन्हें ही ऐन्द्री आदि दिशा- देव देवियों के रूप मे मानकर पूजन करना चाहिए। सब को घृतपूर्ण नैवेद्य, पृथक-पृथक् दीपक तथा ऋतु फल आदि समर्पित करना चाहिए।

इस प्रकार विधिवत पूजा कर ब्राह्मण को दक्षिणा प्रदान कर प्रसाद ग्रहण करना चहिए। अनन्तर बन्धु-बान्धवों एवं मित्रों के साथ प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए। जो इस दशमी व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं.

धर्मराज दशमी पौराणिक कथा Dharmaraj Dashami Mythology in Hindi 

धर्मराज के बारे में एक कथा है कि गहन वन से तृषार्त पाण्डव गुजर रहे थे। पानी की तलाश में वे इधर-उधर घूम ही रहे थे कि अकस्मात उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव जल पीने के पूर्व ही मृत्यु का ग्रास बन गए। कारण यह था कि एक यक्ष ने उनसे प्रश्न किए थे, किंतु उन्होंने उस ओर ध्यान नहीं दिया और बिना जवाब दिए ही पानी पीने लगे,

जिससे वे यक्ष का कोपभाजन बने और उन्हें मृत्यु प्राप्त हुई। इतने में युधिष्ठिर आए और पानी पीने की कोशिश करने लगे। उनसे भी यक्ष ने प्रश्न किए, जिनके युधिष्ठिर ने समुचित उत्तर दे दिए। तब यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा, तुम जल पीने के अधिकारी हो। मेरी इच्छा है कि तुम्हारे चारों भ्राताओं में से किसी एक को जीवन दान दूं। बोलो, मैं किसे पुनर्जीवित करूं ?

प्रश्न बड़ा ही विचित्र था और साथ ही कठिन भी, क्योंकि युधिष्ठिर को चारों भाई एक समान प्रिय थे, तथापि एक क्षण भी सोचे बिना वे बोले, यक्षश्रेष्ठ आप नकुल को ही जीवन दान दें। यक्ष हंस पड़ा और बोला, धर्मराज, कौरवों से युद्ध में भीम की गदा और अर्जुन का गांडीव बड़ा ही उपयोगी सिद्ध होगा। इन दो सगे भाइयों को छोड़कर नकुल का जीवन क्यों चाहते हो। धर्मराज बोले, यक्षश्रेष्ठ हम पांचों भ्राता ही माताओं के स्नेह चिह्न हैं। माता कुंती के पुत्रों से मैं शेष हूं, किंतु माद्री मां के तो दोनों ही पुत्र मर चुके हैं। अतः यदि एक के ही जीवन का प्रश्न है, तो माद्री मां के नकुल का ही पुनर्जीवन इष्ट है।

यक्ष ने सुना, तो भावविह्वल हो बोला, युधिष्ठिर तुम धर्मतत्व के ज्ञाता हो, मैं तो सिर्फ तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम वास्तव में धर्म के अवतार हो या नहीं। अतएव मैं चारों भाईयों को जीवन देता हूं। तब से धर्मराज दशमी व्रत कि शुरुआत हुई.. इस व्रत के करने वाले व्रती को अपने आँगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा करनी चाहिए। दशमी का व्रत के करने से व्यक्ति की सभी कामना पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत को पूर्ण करने से कन्या श्रेष्ठ वर प्राप्त करती है। पति के यात्रा-प्रवास पर जाने और जल्दी लौट कर न आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकती है। शिशु के दन्तजनिक पीड़ा में भी इस व्रत के करने से पीड़ा दूर हो जाती है।

धर्मराज दशमी व्रत कथा Dharmaraja Dashami Vrat Katha in Hindi 

पुराणों में धर्मराजजी की कई कथाएं मिलती हैं उनमें से एक कथा ज्यादा प्रचलित है। कहते हैं कि एक ब्राह्मणी मृत्यु के बाद यम के द्वारा पहुंची। वहां उसने कहा कि मुझे धर्मराज के मंदिर का रास्ता बताओ। एक दूत ने कहा कि कहां जाना है? वो बोली मुझे धर्मराज के मंदिर जाना है। वह महिला बहुत दान पुण्य वाली थी। उसे विश्वास था कि धर्मराज के मंदिर का रास्ता अवश्‍य खुल जाएगा। दूत ने उसे रास्ता बता दिए। वहां देखा कि बहुत बड़ा सा मंदिर है।

वहां हीरे मोती जड़ती सोने के सिंहासन पर धर्मराज विराजमान है और न्यायसभा ले रहे हैं। न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे। यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे। ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं। धर्मराजजी ने चित्रगुप्त से कहा लेखा–जोखा सुनाओ। चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया। सुनकर धर्मराजजी ने कहां तुमने सब धर्म किए पर धर्मराजजी की कहानी नहीं सुनी। वैकुण्ठ में कैसे जाएगीए ?

महिला बोली– ‘धर्मराजजी की कहानी के क्या नियम हैं? धर्मराजजी बोले– ‘कोई एक साल, कोई छ: महीने, कोई सात दिन ही सुने पर धर्मराजजी की कहानी अवश्य सुने। फिर उसका उद्यापन कर दें। उद्यापन में काठी, छतरी, चप्पल, बाल्टी रस्सी, टोकरी, लालटेन, साड़ी ब्लाउज का बेस, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, छ: मोती, छ: मूंगा, यमराजजी की लोहे की मूर्ति, धर्मराजजी की सोने की मूर्ति, चांदी का चांद, सोने का सूरज, चांदी का सातिया ब्राह्मण को दान करें। प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर कहानी सुने।

यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली भगवान मुझे सात दिन वापस पृथ्वी लोक पर जाने दो में कहानी सुनकर वापस आ जाऊंगी। धर्मराजजी ने उसका लेखा–जोखा देखकर सात दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया। ब्राह्मणी जीवित हो गई। ब्राह्मणी ने अपने परिवार वालों से कहा की मैं सात दिन के लिए धर्मराजजी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूं। इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता हैं। उसने चावल का सातिया बनाकर परिवार के साथ सात दिन तक धर्मराजजी की कथा सुनी। सात दिन पूर्ण होने पर वापस धर्मराजजी का बुलावा आया और ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्रीहरी के चरणों में स्थान मिला।

धर्मराज महाराज की आरती Aarti of Dharmaraj Maharaj in Hindi 

धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हु तेरी

पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी

धर्म लोक के तुम हो स्वामी श्री यमराज कहलाते हो

जो जो प्राणी कर्म करते तुम सब लिखते जाते हो

अंत समय में तुम सबको दूत भेज बुलवाते हो

पाप पुण्य का सारा लेखा उनको बांच सुनाते हो

भुगताते हो प्राणी को तुम लख चौरासी की फेरी से

धर्मराज कर सिद्ध काज ….

पड़ी नाव मंजधार भवन में ….

चितरगुप्त है लेखक तुम्हारे फुर्ती से तो लिखने वाले

अलग अलग से सब जीवो का लेखा -जोखा लेने वाले

पापी जन को पकड़ बुलाते नरको में ढाने वाले

बुरे काम करने वालो को खूब सजा तो देने वाले

कोई नहीं तुमसे बच पाता यह न्याय नीति ऐसी तेरी

धर्मराज कर सिद्ध काज ..

प्रभु में शरणागत हु तेरी ..

दूत भयंकर तेरे स्वामी बड़े बड़े डर जाते है

पापी जन तो जिन्हे देखते वे भय से थर्राते है |

बांध गले में रस्सी वे पापी जन को ले जाते है

चाबुक मार लाते जरा रहम नहीं मन में लाते है |

धर्म राज कर सिद्ध काज ….

पड़ी मंज धार भवन में ….

धर्मी जन को धर्मराज तुम खुद ही लेने आते हो

सादर ले जाकर उनको तुम स्वर्गधाम पहुंचाते हो

जो जन पाप कपट से डरकर तेरी भक्ति करते है

नर्क यातना कभी ने पाते भवसागर से तरते है

कपिल मोहन पर कृपा करके जपती हु में माला तेरी

धर्म राज कर सिद्ध काज प्रभु में शरनागत हु तेरी

पड़ी नाव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी

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