अष्टमी व्रत विधि महत्व और कथा 

हिन्दू पंचांग के अनुसार, दूर्वा अष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन दूर्वा घास का पूजन करने की परंपरा है। मान्यता है कि, दूर्वा अष्टमी के दिन दूर्वा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और परिवार व कुल की वृद्धि होती है। दूर्वा घास का प्रयोग हिन्दू अनुष्ठानों में किया जाता है, इसलिए इसे बहुत ही शुभ माना गया है। भगवान गणपति जी को भी दूर्वा अति प्रिय है, दूर्वा के बिना भगवान गणेश जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। दूर्वा घास को समृद्धि का प्रतीक माना गया है, इस दिन व्रत रखकर दूर्वा की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है

इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा, बालको की मुर्तिया, सर्पों की मूर्ति, एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल, जल, दूध, रोली, आटा, घी, चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। गंध, पुष्प, धुप, दीप, खजूर, नारियल, अक्षत, माला आदि से मन्त्रो से पूजा करे।

त्वं दूर्वे अमृत जन्मासि वन्दिता व सुरसुरे:।

सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्यकरी भव।।

यथा शाखाप्रशाखाभिविरस्त्रितासी महीतले।

तथा ममामी संतानं देहि त्वमजरामरे।।

मीठे बाजरे का बायना निकाल कर दक्षिणा ब्लाउज पिस सासुजी को पाँव लग कर दे। फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर इस दिन ठंडा भोजन करना चाहिये।

पूजन का शुभ मुहूर्त 

द्रूवड़ी के दिन महिलाएं और नवविवाहिता, इस व्रत को करती है और सरोवर अथवा बहते पानी वाले स्थानों पर जाकर पूजन करती हैं। संतान एवं परिवार की सुख समृद्धि मांगती है। इसमें पारंपरिक गीत गाती हैं। इसके अलावा पूजन में मीठे रोट, दूर्वा, अंकुरित मोठ, मूंग, चने फल एवं वस्त्र आदि चढ़ाया जाता है। पूजन में छोटे बच्चों को पूजन स्थल पर उठाकर परिक्रमा करवाते है। इस व्रत में श्रीगणेश जी एवं श्री लक्ष्मीनारायण का पूजन किया जाता है। दूर्वाष्टमी का व्रत करने से सुख, सौभाग्य व दूर्वा के अंकुरों के समान उसके कुल की वृद्धि होती हैं।

द्रूवड़ी पूजन के लिए मूंग,चने आदि भिगोने शुभ है। यह व्रत विशेष रुप से स्त्रियों का पर्व होता है। इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है। प्रसाद रूप में इन्हें ही चढाया जाता है। सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में पूजन कर फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर भोजन करें।

दूर्वा अष्टमी का महत्व 

हिंदू धर्म में दूर्वा घास का विशेष धार्मिक महत्व है। यह समृद्धि का प्रतीक है। इसका इस्तेमाल धार्मिक और मांगलिक कार्यों में किया जाता है। दूर्वा घास का महत्व भी स्वयं भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को समझाया था। भगवान कृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति धार्मिक रूप से दूर्वा अष्टमी पूजा करता है, उसे अपनी विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने का आशीर्वाद मिलेगा। किंवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि भगवान विष्णु की बांह से कुछ बाल गिरे थे,जो दूर्वा घास बन गए।

ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब असुर और देवता ‘अमृत’ ले जा रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें दूर्वा घास पर गिर गई और तब से यह शुभ और अमर हो गई। जो व्यक्ति दूर्वा अष्टमी के दिन पूरे समर्पण भाव से दूर्वा घास की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र 

1. इदं दूर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः

2. ओम् गं गणपतये नमः

3. ओम् एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्

4. ओम् श्रीं ह्रीं क्लें ग्लौम गं गणपतये वर वरद सर्वजन जनमय वाशमनये स्वाहा तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुंडाय धिमहि तन्नो दंति प्रचोदयत ओम शांति शांति शांतिः

5. ओम् वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा

दूर्वाष्टमी की कहानी (दुबडी आठे की कहानी) 

एक साहूकार था उसके आठ बेटे थे। बेटे विवाह योग्य हुये तो सबसे बड़े बेटे का विवाह तय कर दिया। विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला। जब विवाह होने लगा तो फेरो के समय एक सर्प वहाँ आया और दुल्हे को डस लिया और साहूकार के बेटे की मृत्यु हो गई। सभी लडको के विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला और इसी तरह साहूकार के सात बेटों को सर्प ने डस लिया। आठवे बेटे का विवाह तय हुआ। लडके की बहन का ससुराल किसी गाँव में था। वह उसको लेने गया लेकर जब वापस आने लगा तो बहन को प्यास लगी बहन एक कुँए पर गई।

वहाँ बेमाता कुछ बना रही थी और बार बार बिगाड़ रही थी। बहन ने पूछा, ”आप यह क्या कर रही हैं ?” तब बेमाता ने बताया की एक साहूकार हैं जिसके सात बेटे मर चुके हैं और आठंवा भी मरने वाला हैं सो उसके लिए ढकनी दे रही हूँ” क्यू बहन ने पूछा उसको बचाने का कोई उपाय हैं क्या मैं उस भाई की अभागन बहन हूँ। अगर उसकी बहन, भुआ यदि दूर्वाष्टमी का व्रत एवं पूजन करती हो तो वह हर काम उल्टा करे और भाई को ताने मारे और बारात में साथ जावे , कुम्हार से हांड़ी ढक्कन सहित लावे कच्चा करवा में दूध लावे जब सर्प ढसने आवे और दूध पीने लगे तब हांड़ी का ढक्कन बंद कर उस पर कच्चा सूत लपेट कर बांध देवे तो काल की घड़ी टल जावेगी तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती हैं।

बस फिर क्या था बहन उसी समय से ही ताने मारना शुरू हो गई। भाई ने सोचा बहन पानी पिने गई तब ठीक थी शायद बहन को चोट फेट हो गई। बहन भाई को गालिया बकती रही बड़ी मुश्किल के बाद दोनों घर पहुंचे। भाई का बिन्द्याक बैठाने लगे इस करम फूटे को चौकी पर मत बैठाओ सिला पर बैठाओ जिद्द करने लगी तो सिला पर बैठा कर बिन्द्याक बैठाया। भाई की निकासी होने लगी तो बहन बोली “ इसकी निकासी हवेली के पीछे के दरवाजे से करो सामने से नही करने दूँगी। सबने बहुत समझाया पर वह नहीं मानी चिल्लाने लगी सबने कहा यह बीमार हो जायेगी इसकी बात मान लो पीछे के दरवाजे से निकासी करवाई तभी सामने का दरवाजा गिर गया सबने कहा बहन ने भाई को बचा लिया, नहीं तो आज मर गया होता।

अब गाजे बाजे से बारात जाने लगी तो बहन बोली मैं भी बारात में जाउंगी सब ने समझाया तेरी तबियत ठीक नहीं हैं, ओरते बारात में नहीं जाती पर वह नही मानी साथ गई। रास्ते में विश्राम करने के लिए बारात बरगद के पेड़ के नीचे रुकने लगी तो बहन बोली इसकी बारात धुप में रुकवाओ सबने समझाया पर वह नहीं मानी तंग आकर धुप में बारात रुकवाई तभी बरगद का पेड़ गिर गया सबने कहा बहन की जिद्द ने सब बारातियों व भाई के जीवन कि रक्षा की भगवान जों करता हैं अच्छे के लिए करता हैं।

बारात पहुची भाई तोरण मारने लगा तो बहन गालिया बकने लगी इस करमफूटे का तोरण सामने के दरवाजे से नहीं करने दूँगी और आरती चौमुखे दीपक से नही करने दूँगी पीछे के दरवाजे से तोरण मारो और जगमग खीरे की थाली भरकर आरती करो। सब ने लडकी वालो को कहा जों ये कहे वही करो ये लाडली बहन हैं। तोरण मारते वक्त सामने का दरवाजा गिर गया। आरती करते समय ऊपर से सर्प आकर गिरा तो जगमगाते खीरे में जल गया। सब ने कहा खीरे नहीं होते तो सर्प काट खाता फिर बहन जिद्द करके फेरो में बैठी। दो फेरे होते ही सर्प आया बहन ने पहले से ही करवे में कच्चा दूध रखा था।

सर्प जैसे ही दूध पीने लगा तो बहन ने सर्प को हांड़ी में डालकर ऊपर से कच्चे सूत की तांती बांध दी और गौडे के नीचे दबा लिया। उसी समय नागिन आई और कहने लगी, “पापन हत्यारन छोड़ मेरे सर्प राज को” तब बहन बोली तेरे नागराज ने तो मेरे सातों भाइयो को डस लिया पहले उन सब को जीवित कर तू तो एक घड़ी में ही व्याकुल हो गई मेरी सात भाभिया कब से दुखी हैं। नागिन ने सातों भाइयो को जीवन दान दिया पीछे बहन ने सर्पराज को छोड़ दिया।

गाजे बाजे से दुल्हन लेकर सातों भाइयो के साथ बारात रवाना हुई। रास्ते में दूर्वाष्टमी का व्रत आया बहन ने बारात रुकवाई सातों भाई भाभियों के साथ पूजा कर विधि विधान से कथा सुनाई फिर भीगे मीठे बाजरे का बायना निकाला बहन ने भाभियों से कहा, “हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दूर्वाष्टमी का व्रत किया जाता हैं। इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा अर्थात बालको की मुर्तिया, सर्पों की मूर्ति, एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल, जल, दूध, रोली, आटा, घी, चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। बायना चरण स्पर्श कर सासुजी को देवे। उधर साहूकार साहुकारनी बारात की राह देख रहे थे। पनिहारिनों ने आकर बताया बहन भाई भाभियों को लेकर आ रही हैं स्वागत की तैयारी करो।

स्वागत के बाद बहन अपने घर जाने लगी माँ ने कहा तेरे दूर्वाष्टमी के व्रत के फल के कारण सातों भाइयो को लाई हैं अब कुछ दिन अपनी भाभियों के साथ मौज मना। बहन ने कहा माँ में अपने घर बच्चो को देखूंगी कब से छोड़ा हैं। उसके भाइयो ने गाँव में हेला फिरा दिया की सब कोई दुबडी आठे (दूर्वाष्टमी) का व्रत करना सब मेहमानों ने बहन की बढाई की, बहन को ढेर सारे उपहार कपड़े देकर मंगल गीत गाकर विदा किया। हे दूर्वाष्टमी माता जैसे उसके भाई को जीवन दान दिया वैसे सबको देना।

दूर्वा अष्टमी का महाउपाय 

दूर्वा अष्टमी के दिन अगर आपने ये उपाय कर लिया तो ना सिर्फ आपकी आर्थिक तंगी दूर होगी बल्कि आपकी समस्त समस्याओं का भी निवारण हो जाएगा. गणेश जी को दूर्वा घास अर्पित करते समय आप 108 बाद गणेश गायत्री मंत्र – ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात्। का जाप करें. जाप पूरा होने के बाद आप उसने अपनी मनोकामना कहकर आशीर्वाद लें.

गणपति बप्पा की कृपा से आपके घर में चारों ओर से खुशियां आनी शुरु हो जाएंगी. बप्पा एक बार अगर आप पर मेहरबान हो गए तो आपके जीवन के सारे दुख दर्द समाप्त हो जाएंगे.

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