वामन अवतार जन्मोत्सव वामन अवतार पूजन विधि और कथा
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन ही माता अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में अवतरण लिया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में वामन भगवान का अवतार हुआ है । वामन भगवान के उपनयन संस्कार में ऋषि आंगिरस ने वस्त्र, अगस्त्य ने मृगचर्म, सूर्य ने छत्र, गुरु देव नें जनेऊ तथा कमण्डल, मरीचि ने पलाश दण्ड, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, कुबेर ने भिक्षा पात्र तथा देवी सरस्वती ने रुद्राक्ष माला दी है। इसके बाद वामन भगवान पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के पास गए। श्रीमद भागवत पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है।
प्राचीन धर्मग्रंथ शास्त्रों के अनुसार इस शुभ तिथि को श्री विष्णु के रूप भगवान वामन का अवतरण हुआ था धार्मिक शास्त्र, पुराणों तथा मान्यताओं के अनुसार भक्तों को इस दिन व्रत-उपवास करके दोपहर (अभिजित मुहूर्त) में भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए। भगवान वामन की संभव हो तो स्वर्ण प्रतिमा नही तो पीतल की प्रतिमा का पंचोपचार सहित पूजा करनी चाहिए।
भगवान वामन को पंचोपचार सामर्थ्य हो तो षोडषोपचार पूजन करने से पहले चावल, दही आदि जैसी वस्तुओं का दान करना सबसे उत्तम माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस दिन भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
वामन अवतार की पूजा विधि
वामन जयंती पर विष्णु जी के वामन अवतार की पूजा की जाती है. दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध मिलाकर वामन देव की प्रतिमा का अभिषेक करना चाहिए. भगवान को रोली, मौली, पीले फूल, नैवेद्य अर्पित करें. वामन देव को दही और मिश्री का भोग अवश्य लगाएं. पूजन करने के बाद कथा सुनें और बाद में आरती करें. अंत में चावल, दही और मिश्री का दान कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं.
आज कर लें इन मंत्रों का जाप मिलेगा मनचाहा वरदान
वामन अवतार पूजन मंत्र
देवेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे।
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः।।
अर्ध्य मंत्र
नमस्ते पदमनाभाय नमस्ते जलः शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि वाल यामन अप्रिणे।।
नमः शांग धनुर्याण पाठ्ये वामनाय च।
यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः।।
जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था। विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से सुख, आनंद, मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
Mythology of Vamana Avatar वामन अवतार की पौराणिक कथा
वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है. वामन अवतार कथा अनुसार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।
देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं। असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।
तब उनके व्रत, आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु जी प्रकट हुये और बोले देवी व्याकुल मत हो मैं तुम्हारे ही पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उनका हारा हुआ राज्य दिलाऊंगा। तब समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से जन्म लेकर वामन के रूप में अवतार लिया। तब उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे।
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि स्वर्ग पर अपना स्थायी अधिकार प्राप्त करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव वहां पहुंचे गये। उनके तेज से यज्ञशाला स्वतः प्रकाशित हो उठी।
बलि ने उन्हें एक उच्च आसन पर बिठाकर उनका आदर सत्कार किया और अंत में राजा बली ने वामन देव से इक्षीत भेंट मांगने को कहा। इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब रजा बलि उनसे बार-बार अनुरोध करने लग गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में देने को कहा। तब राजा बलि ने उनसे और अधिक कुछ मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन देव अपनी बात पर अड़े रहे।
तब राजा बलि ने अपने दायें हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। जेसे ही संकल्प पूरा हुआ वेसे ही वामन देव का आकार बढ़ने लगा और वे बोने वामन से विराट वामन हो गए। तब उन्होंने अपने एक पग से पृथ्वी और अपने दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए तो कुछ बचा ही नही तब राजा बलि ने तीसरे पग को रखने के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया।
तब राजा बली बोले- हे प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। आप तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दो। सब कुछ दान कर चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन देव प्रसन्न हो गए। तब बाद में उन्हे पाताल का अधिपति बनाकर देवताओं को उनके भय से मुक्त कराया।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।
वामन देव की आरती
ओम जय वामन देवा, हरि जय वामन देवा!
बली राजा के द्वारे, बली राजा के द्वारे संत करे सेवा,
वामन रूप अनुपम छत्र, दंड शोभा, हरि छत्र दंड शोभा !!
तिलक भाल की मनोहर भगतन मन मोहा,
अगम निगम पुराण बतावे, मुख मंडल शोभा,
हरि मुख मंडल शोभा।
कर्ण, कुंडल भूषण, कर्ण, कुंडल भूषण, पार पड़े सेवा,
परम कृपाल जाके भूमी तीन पगा, हरि भूमि तीन पड़ा
तीन पांव है कोई, तीन पांव है कोई बलि अभिमान खड़ा।
प्रथम पाद रखे ब्रह्मलोक में, दूजो धार धरा, हरि दूजो धार धरा।
तृतीय पाद मस्तक पे,
तृतीय पाद मस्तक पे बली अभिमान खड़ा।
रूप त्रिविक्रम हारे जो सुख में गावे,
हरि जो चित से गावे।
सुख सम्पति नाना विधि,
सुख सम्पति नाना विधि हरि जी से पावे।
ॐ जय वामन देवा हरि जय वामन देवा।
Must Read ज्योतिष अनुसार साधना: जानें ज्योतिष अनुसार साधना चयन कैसे करें
Leave A Comment